दूध तो गया, दुहना भी फूटा, मलाई खा रहे बाहरी लोग, स्थानीय हकदार हड़ताल करने मजबूर

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  • जमीन ले ली, नौकरी देने का वादा नहीं निभाया
  • भूमि प्रभावित लोगों को नगरनार प्लांट में नौकरी नहीं दी एनएमडीसी ने

अर्जुन झा

नगरनार एक कहावत है – दूधो जाए, दुहना भी गयो। यानि पूरा दूध तो गिरा ही, दूध का बर्तन भी टूटकर हाथ से निकल गया। कुछ यही हाल नगरनार और आसपास के लगभग दर्जन भर गांवों के ग्रामीणों का हो गया है। बेचारे ग्रामीणों को दूध तो मिला नहीं, उनके जीने का सहारा जो खेत रूपी बर्तन थे, वे भी हाथ से निकल चुके हैं और मलाई बाहरी लोग खा रहे हैं। अब स्थानीय ग्रामीण बेचारे हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें अपने हक के लिए अनशन करना पड़ रहा है।

हम बात कर रहे हैं नगरनार में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम यानि एनएमडीसी द्वारा स्थापित इस्पात संयंत्र की। मसला इस्पात संयंत्र में स्थानीय लोगों को नौकरी से जुड़ा हुआ है। नगरनार में इस्पात संयंत्र स्थापना के लिए नगरनार समेत आसपास की दर्जन भर ग्राम पंचायतों की कृषि और गैर कृषि भूमि अधिग्रहित की गई है। भूमि अधिग्रहण के दौरान प्रशासन, एनएमडीसी और ग्राम पंचायतों के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। समझौते के अनुसार हर भूमि प्रभावित परिवार के सदस्यों को इस्पात संयंत्र में नौकरी देने, क्षेत्र के ग्रामीणों को अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल खोलने और स्थानीय बच्चों की उत्कृष्ट शिक्षा के लिए स्कूल खोलने, संयंत्र में माल परिवहन का काम स्थानीय ट्रांसपोर्टरों को देने समेत कई मुद्दे थे। एनएमडीसी समझौते के ज्यादातर मुद्दों से मुकर गया है। स्थानीय लोगों को रोजगार देने के बजाय बाहरी लोगों को नौकरियां दी जा रही हैं। ट्रांसपोर्टिंग का मसला लंबे समय तक लटका रहा, जो कुछ दिनों पहले ले देकर सुलझा है, मगर इसमें भी संशय नजर आ रहा है। प्रबंधन ने स्कूल, अस्पताल खोले ही नहीं। उल्टे संयंत्र के प्रदूषण से लोग बीमार हो रहे हैं, ध्वनि प्रदूषण से सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं हो पा रही है और संयंत्र से निकलने वाले केमिकल युक्त वेस्टेज का समुचित निपटान न कर खुले में बहा दिए जाने से खेत बंजर हो रहे हैं और निस्तारी तालाब का पानी प्रदूषित हो रहा है। ग्रामीणों ने सोचा था अपने गांव में भर भर कर दूध देने वाली गाय आ रही है, सभी को पर्याप्त दूध मिलेगा। गाय तो आ गई, मगर उसने ऎसी दुलत्ती मारी कि ग्रामीणों के अरमानों का पूरा दूध बह गया उनका खेत रूपी दुहना हाथ से निकल गया। मलाई बाहरी लोग खा रहे हैं। कई वर्ष बीत जाने के बाद भी एनएमडीसी ने कई प्रभावित परिवारों के युवाओं को अब तक नौकरी नहीं दी है। प्रबंधन उन्हें बार बार गुमराह कर रहा है, जिला प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है। नौकरी के लिए कई दिनों से पीड़ित परिवारों के लोग इस्पात संयंत्र से कुछ दूर पंडाल लगाकर आमरण अनशन पर बैठे हैं। उनकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही है, मगर उनकी चिंता किसी को नहीं है। अनशन पर योगिता बाला प्रकाश, फूलमती बघेल, अन्नपूर्णा पटनायक और अरुणा पटनायक लगातार डटी हैं। उनका कहना है कि एनएमडीसी प्रबंधन ने हमसे छल किया है।