ग्राम अरमरीकला की निवासियों ने एकादशी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जिसमें ग्राम अरमरीकला के पुरोहित के सुपुत्र भागवताचार्य पंडित सौरभ शर्मा जी ने कहा कि एवं एकादशी के बारे में बताया कि प्रबोधिनी एकादशी और निर्जला एकादशी ये दो एकादशी को सब एकादशी में महत्वपूर्ण बताया गया है इस दिन को देवउठनी भी कहते हैं क्यो प्रभु नारायण इस दिन चातुर्मास विश्राम के पश्चात शयन से उठते हैं और इसी दिन से शुभ कार्य जैसे शादी विवाह प्रारंभ होता है ,,, देवउठनी एकादशी की कथा आती है कि जालन्धर नाम का एक राक्षस था जिसकी पत्नी का नाम वृंदा था वृंदा बड़ी सती नारी थी इनके सतीत्व के कारण जालन्धर को युध्द में कोई हरा नई सकते थे जब देवताओं से जालन्धर का युध्द हो रहा था तो सब सोच में पड़ गए देवता की इसे हराये कैसे सब देवता प्रभु नारायण के पास गए प्रभु से प्रार्थना किये इस राक्षस का उद्धार करे वृंदा के सतीत्व के कारण ये बलशाली हो गया है तब सर्वेश्वर भगवान जालन्धर का रूप लेके गए वृंदा अपने पति को देख प्रसन्न हुई और इधर युध्द में जालन्धर की मृत्यु हो गयी उसका शीश आ गिरा वृंदा के सम्मुख वृंदा तब नारायण से कहने लगी तुम कौन हो अपने रूप में आओ तब नारयण अपने रूप में आये वृंदा ने उसी समय श्राप दे दिया तुम पत्थर के हो जाओ तो प्रभु भक्त के मान के लिए पत्थर के बनगए और वही पत्थर शालिग्राम भगवान कहलाने लगे सब देवता मा वृंदा से प्रार्थना किये तब माता ने छमा कर दिया और स्वयं प्राण त्याग दिए उसी समय नारायण ने आशीर्वाद स्वरूप कहा वृंदा अगले जन्म में तुलसी तुम बनोगी तो मैं तुमसे विवाह करूँगा और इसी एकादशी में तुलसी से प्रभु का विवाह होता हैं नारायण ये भी आशीर्वाद दिया कि सदैव तुलसी मेरी पूजा में आवश्यक रहेगी मेरे शीश पर चढाये जाएंगे बिना तुलसी के मैं भोग भी ग्रहण नही करूँगा ऐसी माँ तुलसी की महीमा हैं ऐसी कथाओं का वर्णन मिलता हैं।।