करपावंड में लूट का बांध: करोड़ों डकार गए अफसर, आदिवासी किसानों की जमीन कब्जाई, बयान वापस लेने दबाव-धमकी का सहारा

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  •  बांध के नाम पर हजम कर गए 30 लाख, किसानों की जमीन हड़पी, अफसरों ने दबाया सच 

-अर्जुन झा-

 बकावंड बस्तर जिले के बकावंड विकासखंड अंतर्गत करपावंड वन परिक्षेत्र से एक गंभीर और चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने शासन-प्रशासन के सुशासन तिहार के दावों की पोल खोल दी है। डिमरापाल नाले पर बांध निर्माण में भारी भ्रष्टाचार, किसानों की जमीन पर अवैध कब्जा और मुआवज़ा न देने के आरोप लगे हैं।

यह परियोजना वर्ष 2023-24 में डिमरापाल के लिए केम्पा मद से नरवा विकास योजना के तहत स्वीकृत की गई थी। इस योजना के लिए 30 लाख 52 हजार 574 की राशि स्वीकृत हुई थी। लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह बांध न डिमरापाल में बना, न निर्धारित समय में। इसके बजाय समय सीमा खत्म होने के बाद सतोषा, चालानगुड़ा के बीट कक्ष क्रमांक 1174 में एक घटिया किस्म का चेक डैम बना दिया गया, वह भी आदिवासी किसानों की पट्टे की जमीन पर। स्थानीय किसान बुदरू कश्यप ने बताया-“मेरे खेत में बिना अनुमति के तालाब बना दिया गया है। रेंजर और डिप्टी रेंजर ने मछली पालन के लिए मदद का वादा किया था, लेकिन बाद में मुकर गए। प्रेम कश्यप, तुलाराम कश्यप, समदु राम, जुगसाय कश्यप, दयमन नेताम, धनसाय कश्यप जैसे दर्जनों किसानों ने बताया कि उन्हें मुआवज़ा या सहायता राशि नहीं मिली और न ही कोई लिखित अनुबंध उनसे किया गया। गांव वालों का कहना है कि इस निर्माण में लगे मजदूरों, ट्रैक्टरों और मशीनों का भी भुगतान नहीं किया गया है। इसके बावजूद वन विभाग के अधिकारियों ने किसानों से जबरन हस्ताक्षर करवाने और बयान बदलवाने का सिलसिला जारी रखा।

बयान बदलने दबाव

किसानों ने जब मीडिया के जरिए आवाज़ उठाई, तो विभाग के अधिकारियों ने दबाव डालकर बयान वापसी करा ली। बुदरू कश्यप ने बताया, “मेरे घर बीट गार्ड देवा आया, कोरे कागज पर साइन करवाया और वीडियो में बयान दिलवाया कि मेरी पहली बात गलत थी। बीट गार्ड ने खुद स्वीकार किया कि यह सब रेंजर सौरभ रजक और डीएफओ उत्तम कुमार गुप्ता के आदेश पर हुआ। इस मामले को लेकर जब रेंजर सौरभ रजक से हमारे संवाददाता ने फोन पर बात की तो उन्होंने चौंकाने वाला बयान दिया और कहा कि डिमरापाल बांध का डिमरापाल में बनना जरूरी नहीं है। उन्होंने इसे “चेक डैम कहकर मामले को टालने की कोशिश की।

विभाग जुटा लीपापोती में

घोटाला उजागर होने के बाद विभाग में हड़कंप मच गया। लेकिन सफाई की जगह अब बयानबाज़ी और दबाव की रणनीति अपनाई जा रही है।यह मामला राज्य सरकार द्वारा आयोजित सुशासन तिहार की पारदर्शिता और जवाबदेही के दावों पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। इतने बड़े भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई नहीं होने से जनता में आक्रोशहै। बकावंड जनपद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व अन्य जनप्रतिनिधियों को मामले से अवगत कराया गया था, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।

डीएफओ ने भी नहीं लिया संज्ञान

स्थानीय पत्रकारों द्वारा वन मंडलाधिकारी बस्तर को भी लिखित शिकायत पत्र 2 जनवरी को देकर उच्चस्तरीय जांच हो और दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की गई थी। लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

ग्रामीण यह जानना चाहते हैं कि जब डिमरापाल नाले के लिए राशि स्वीकृत हुई थी, तो बांध वहीं क्यों नहीं बना? और अब जो चेक डैम बना है, उसका निर्माण घटिया, अधूरा और नुकसानदेह है।अनुमान के अनुसार चेक डैम की लागत बमुश्किल 2 से 3 लाख है, फिर शेष राशि कहां गई?

आंदोलन की चेतावनी

अब ग्रामीण वन मंत्री केदार कश्यप, बस्तर सांसद महेश कश्यप, कलेक्टर और कमिश्नर को शिकायत करने की तैयारी में हैं। मामला दिन-ब-दिन विराट रूप लेता जा रहा है, और आंदोलन की संभावना बन रही है। इस मामले ने स्पष्ट कर दिया है कि बस्तर जैसे संवेदनशील आदिवासी अंचल में परियोजनाओं के नाम पर भ्रष्टाचार किस कदर हावी है। यदि शासन ने अब भी गंभीरता नहीं दिखाई, तो यह सुशासन तिहार ‘घोटालों का महापर्व सिद्ध होगा। बकावंड ब्लॉक में सुशासन तिहार का शुक्रवार को समापन किया गया। जनप्रतिनिधि को अवगत होने के बाद भी नहीं हुआ समाधान।