मेडिकल की पढ़ाई कर रहा चिंदावरम का लक्ष्मण बना बच्चों के लिए प्रेरणा स्रोत

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करीम खान – जगदलपुर

बस्तर संभाग के अति नक्सल संवेदनशील जिले के रूप में सर्वज्ञात सुकमा के घोर नक्सल प्रभावित आंतरिक ग्रामीण क्षेत्र के एक युवा ने सभी प्रतिकूल परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना करते हुए चिकित्सा शिक्षा को अपना लक्ष्य बनाया और आज मेडिकल काॅलेज में अध्ययनरत है, यह बात उस छात्र के लिए ही नही वरन् सम्पूर्ण बस्तर के लिए अत्यन्त गौरव एवं महत्व की बात है. उसकी इस सफलता से उसके गांव के बच्चों में आगे पढ़ने की प्रेरणा जागी और उनके पालकों में अपने बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अभिरूचि भी पैदा हुई नतीजतन उस गांव के प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक शाला में उपस्थिति 35-40 से बढ़कर 100 का आकड़ा लांघ चूकि है. इस जिज्ञासु, अध्येता – छात्र का नाम है – लक्ष्मण मंडावी.


लक्ष्मण मंडावी, सुकमा के नक्सली दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्र के एक गांव चिंदावरम का रहने वाला है, वह आदिवासी गोंड समुदाय से है. इस गांव की आबादी कुल 120 घरों की है. और वह डाॅक्टरी की पढाई एम.बी.बी.एस. प्रथम वर्ष के छात्र के रूप में जगदलपुर स्थित शासकीय मेडिकल काॅलेज से कर रहा है. इस गांव में दस से पन्द्रह युवा जिन्हें सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा कहा जा सकता है, ने ज्यादा से ज्यादा दसवी या बारहवी तक की पढ़ाई कर पढ़ना छोड़ दिया है. उसके पिता माड़वी मुक्का की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर है कमाने या आमदनी का कोई खास जरिया भी उनके पास नहीं है. उसके गांव में प्राईमरी और मिडिल स्कूल हैं.


परंतु नक्सलियों द्वारा विगत दो दशकों से संचालित हिंसक घटनाओं और पुलिस, नक्सल मुठभेड़ों जैसी घटनाओं के साथ ही नक्सलियों द्वारा शालाए बंद कराये जाने जैसी परिस्थतियां लगातार बनी रही है. फिर भी लक्ष्मण मंडावी की पढ़ाई के प्रति रूचि को उसकी बड़ी मां स्व. हिड़मी कुंजाम, जो स्वयं दसवीं तक पढ़ी लिखी थी, व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ग्राम भुसारास में कार्यरत रही है, ने पहचाना और नक्सली दबाव व हिंसा के साये से उसे हटाकर शांत स्थल पर लक्षमण को भेजना उचित समझा क्योंकि नक्सली गांव में बच्चांे को स्कूलों में पढ़ने नही दे रहे थे और आंतकी गतिविधियों से बाधा पहुंचा रहे थे. और उसने जिंगावरम में प्राइमरी स्कूल पास करने के बाद लक्ष्मण को गीदम स्थित मिडिल स्कूल में भर्ती करा दिया, दसवीं तक गीदम में लक्ष्मण ने पढ़ायी की, हाॅस्टल में रहता था तथा उसे छात्रवृत्ति मिलती थी जो अपर्याप्त थी. अतः पढ़ाई के साथ ही छुटटी के दिनों में लक्ष्मण मजदूरी करने जाते थे. ताकि वह अपने लिए किताब, कापी आदि खरीद सके और अच्छे अध्ययन कर सके. तथा जरूरत का सामान भी वह अपने मजदूरी के पैसों से खरीदा करता था. उसके स्कूल में एक बार दंतेवाड़ा जिले के पूर्व कलेक्टर देव सेनापति आये उन्होंने छू- लो आसमान कोंचिग क्लास शुरू होने की जानकारी छात्रों को दी और कहां कि बच्चे इस खुले आसमान में प्रवेश लें. लक्ष्मण मंडावी छू लो आसमान मंे दसवीं बारवीं के साथ एन.इ.इ.टी. और पी.ए.टी तथा पी.एम.टी. की तैयारी की. 2017 में बारहवी पास किया इसके साथ ही सन् 2017-18 में पी.ए.टी. एन.इ.इ.टी. व पी.एम.टी. की परीक्षा दी. जिसमे उसका एम.बी.बी.एस. हेतु चयन नहीं हो पाया उस समय उसका चयन डेन्टल तथा आयुर्वेदिक चिकित्सा शिक्षा लिए हुआ अतः वह नहीं गया, क्योंकि वह एम.बी.बी.एस. पास कर गांव के व आसपास के क्षेत्रों के ग्रामीणों का ईलाज करने हेतु स्वयं को तैयार करना चाहता था. क्योंकि उसने स्वयं अपने पिता और चाचा की बीमारियां झेली थी और अपने आसपास के ग्रामीणों को गंभीर बिमारी की दशा में भी ईलाज के लिए दर-दर भटकते देखते चला आ रहा है. इसी उद्वेश्य से उसने पुनः 2018 की परीक्षा में उसका चयन एम.बी.बी.एस. के लिए हुआ, और वह वर्तमान में डिमरापाल जगदलपुर स्थित मेडिकल काॅलेज में एम.बी.बी.एस. प्रथम वर्ष का छात्र है.


लक्ष्मण ने बताया कि गत 24 नवंबर को अपने गांव भतीजे की छट्टी मनाने के लिए गया हुआ था जहां एक झोपड़ी में एक पादरी को बुलवाकर प्रार्थना सभा आयोजित की गयी थी. वहां गावं वाले आकर मारपीट किये इसी घटना के दौरान पिता को काफी चोटंे आयीं और वह सुकमा अस्पताल में भर्ती थे. लक्ष्मण माड़वी के पिता माड़वी मुक्का के परिवार में एक लड़की और तीन लड़के है परिवार की स्थिति अच्छी नहीं है इसी दौरान 2013 को पिता की तबीयत अचानक खराब हो गई इलाज के लिए पैसे नहीं थे उसके चाचा ने सलाह दी कि प्रार्थना सभा कराने से तबीयत ठीक हो जायेगी इसी उद्ेश्य से प्रार्थना सभा आयोजित की गई और कुछ दिनों बाद उसके पिता स्वस्थ्य हो गए इसके पहले काफी झाड-फूक भी कराया गया था पर वे ठीक नही हो पाये थे. इसके पूर्व लक्ष्मण के चाचा मंडावी नंदा बीमार हो गये थे. वो भी प्रार्थना सभा में शामिल होकर ठीक हो गए इस प्रार्थना से ठीक होने के बाद पिता की आस्था पादरी पर और किृश्चन धर्म पर हो गयी. अतः अपनी पारंपरिक आदिवासी संस्कृति को बचाते हुए क्रिश्चन समाज में वे शामिल हो गये. आसपास के कई रिश्तेदार भी बीमार होने से प्रार्थना सभा में शामिल होकर ठीक होने लगे उनकी भी आस्था क्रिश्चन समाज पर होने लगी. इस संदर्भ में लक्ष्मण का कहना है कि यद्यपि उन लोगों के मन में आस्था उत्पन्न होने के फलस्वरूप वे लोग किृश्चन धर्म का अनुशरण करने लगे है. परंतु इसके बावजूद भी वे लोग अपनी सदियों पुरानी आदिवासी संस्कृति, परम्परा और रिवाज को किसी भी स्तर पर छोड़ने की कल्पना भी नही कर सकते.


लक्ष्मण छुट्टियां मिलने पर अपने गांव जाता है तब गांव के बड़े बुजुर्ग उससे उसकी डाॅक्टरी की पढ़ाई के बारे में चर्चा करते है और वे अपने बच्चों को भी लक्ष्मण का उदाहरण देकर उच्च शिक्षा के लिए पे्ररित करते है दूसरी ओर बच्चे भी लक्ष्मण से उसकी पढ़ाई की सफलता की बात सुनकर उत्साहित होते है और उनके मन में भी अब आगे पढ़ाई करने की ईच्छा पनपने लगी है. इसी बात का नतिजा है कि उसके गांव के मेडिकल एवं प्राईमरी स्कूल की कक्षाओं में छात्रों की संख्या बढ़ी है. स्वयं लक्ष्मण भी बच्चों को पढ़ने लिखने में मदद करता है एवं उन्हें आवश्यक जानकारियां देते रहता है. कहा जा सकता है कि घोर नक्सल प्रभावित गांव के लोगों के मन में बारूदों से आतंक का भय की भावना पर अपने बच्चों को उच्च शिक्षित कर आगे बढ़ाने की भावना प्रबल होने लगी है. जो निश्चय ही एक सकारात्मक संकेत है ।