1 जनवरी हमारा नववर्ष नही यह अंग्रेजी नववर्ष है ..राम बालक दास

0
634

1 जनवरी हमारा नववर्ष नही यह अंग्रेजी नववर्ष है ..राम बालक दास
प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी द्वारा सीता रसोई संचालन ग्रुप में किया गया जिसमें सभी भक्तजन जुड़कर अपनी जिज्ञासाओ का समाधान प्राप्त कीये |

This image has an empty alt attribute; its file name is image-21.png

पुरषोत्तम अग्रवाल जी ने दान दक्षिणा पर प्रकाश डालने की विनती बाबाजी से की, इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि कलयुग में कहा गया है कि धर्म के चार पद में एक ही पद है दान, कलयुग में ज्यादा बड़ा यज्ञ नहीं कर सकते, तन को सुखाने वाला व्रत नहीं कर सकते क्योंकि, अन्न में प्राण हैँ, कलयुग में ऐसे बहुत से साधन है जो कि हम नहीं कर सकते, ध्यान धारणा समाधि भी,उचित अवस्था मे ही सम्भव हैँ, कलयुग के दूषित वातावरण मे नही|, तो ऐसी स्थिति मे क्या करें, संसार मे व्याप्त, संसार के जीव जगत में व्याप्त परमपिता परमात्मा को देखते हुए दान करें,जितना हो सके दान करें, चित्त की बुराइयों का दान करें अपने स्वयं के अहंकार का दान करें अन्न का दान करें भूखों को भोजन प्रदान करें अर्थ उपार्जन का

This image has an empty alt attribute; its file name is image-11.png

दसवाँ हिस्सा दान करें धर्म समाज परिवार के कल्याण में लगा सके ऐसा कर अपने धन का सदुपयोग करें, दान के बाद आता है दक्षिणा कई लोग समझते हैं कि यजमान का मन हो ना हो दक्षिणा मांग लो किसी का मन दुखा कर दक्षिणा लेना सर्वथा अनुचित है दक्षिणा का अर्थ होता है धन्यवाद, कार्य का आभार मानना, दक्षिणा अर्थात किसी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना दक्षिणा का अर्थ पहले होता था कि जब ब्राम्हण आपके घर आकर पूजा अर्चना करते थे तो यथाशक्ति यजमान उन्हें दक्षिणा प्रदान करता था यह उनका आभार व्यक्त करने हेतु किया गया एक सम्मान पूर्ण राशि होती थी, राजा यदि होता था तो वह मणि माणिक्य का दान करता था

This image has an empty alt attribute; its file name is image-3.png

किसान हो तो अन्न का दान करता था व्यापारी है तो वह द्रव्य और पैसे देकर के दक्षिणा देता था कुछ किसान तो चावल सब्जी देकर भी आभार व्यक्त करते थे और महाराज भी संतुष्ट हो जाते थे इसी प्रकार अपने गुरूजी जब अपने शिष्य को शिक्षा प्रदान कर देता है तो गुरु दक्षिणा भी दी जाती है जैसे शिष्य लकड़ी जंगल से उन्हें लाकर गुरु दक्षिणा में दे दिया करते थे अपने घर से अन्य वस्त्र गाय आदि का दान दिया करते भूमि भी दान की जाती थी परंतु इसमें कोई भी जबरदस्ती नहीं होती थी जैसे कि आज देखने को मिल रही है, इस प्रकार दक्षिणा भी कभी भी जोर जबरदस्ती से नहीं ली जानी चाहिए यथाशक्ति तथा भक्ति के अनुसार ही कार्य किया जाना चाहिए |

सत्संग परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए रामफल जी ने रामचरितमानस के सुंदरकांड की चौपाई “सचिव वैद्य गुरु….. को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की, चोपाई के भाव को व्यक्त करते हैं बाबा जी ने बताया कि सचिव मंत्री वैद्य गुरु जो हमारे पथ प्रदर्शक होते हैं यदि यह असत्य बोलते हैं किसी के दबाव में आकर बोलते हैं तो राज्य धर्म और शरीर तीनों का ही नाश है राज्य का नाश मंत्री के कारण, धर्म का नाश गुरु के कारण और वैद्य अर्थात डॉक्टर के कारण हमारे शरीर का नाश निश्चित होता है इसीलिए गुरु को निश्चल और निष्कपट हो कर बात करना चाहिए चाहे उस सामने वाले को अच्छा लगे या बुरा लगे साथ ही जो मंत्री होता है उसे हमेशा सत्य बोलना चाहिए प्रजा का हितेषी होना चाहिए उसी प्रकार डॉक्टर को भी कभी किसी भी दवाब वश कोई भी बात को हम से नहीं छुपाना चाहिए अपने मन को निर्भीक होकर हर बात को हम से प्रकट करना चाहिए |

इस प्रकार आज का अति सार्थक ज्ञानपूर्ण सत्संग पूर्ण हुआ
जय गो माता जय गोपाल जय सियाराम