अर्जुन झा
जगदलपुर। अगर जिलाधीश और पुलिस कप्तान के बीच बेहतर तालमेल हो तो कानून और व्यवस्था की गाड़ी पटरी पर तेज रफ्तार से दौड़ती है। विकास कार्यक्रम सलीके से संचालित होते हैं। अपराधों पर अंकुश लगता है और जनता की समस्याओं का सरलता से समाधान होता है। इन दिनों बस्तर जिले के प्रशासनिक मुखिया और जिला पुलिस प्रमुख के बीच ऐसी ही आपसी समझ की चर्चा आम है। ये आला अफसर अफसरी रुतबा दिखाने की बजाय कभी पैदल तो कभी सायकिल पर चल कर जनता के बीच सामान्य इंसान की तरह पहुंच रहे हैं।
निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की जांच हो या अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में रात गुजार कर जनता के साथ जुड़ाव की मिशाल बन रहे हैं जिससे लोग इनकी तारीफ के पुल बांधते नहीं थकते। ये दोनों सोशल मीडिया में जनता की समस्याओं का निराकरण करने का वादा करते हैं और इसका निपटारा भी कर रहे हैं। किसी भी सरकार की छवि बनाने व बिगाड़ने में आला प्रशासनिक अधिकारियों की अहम भूमिका रहती है , जिसे बस्तर में यह साबित कर रहे हैं। लाल फीताशाही के कड़वे अनुभव से तंग रहे बस्तर में वर्तमान कलेक्टर और एसपी ने यहां की रंगत ही बदल दी है। यह जनभावनाओं के अनुरूप सरल, सहज व सुलभता से लोगों से मिल रहे हैं। दोनों प्रमुख अधिकारियों के पास जो भी व्यक्ति पहुंचता है उसकी समस्या का यथा संभव समाधान करते हैं।आम धारणा है कि सरकार के प्रतिबिंब कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक होते हैं।
बस्तर जिले के सुदूर अंचल हों या नगर पालिका क्षेत्र, लगातार कलेक्टर और एसपी का दौरा हो रहा है और इसका फायदा भी जनता को मिल रहा है जिसके कारण बस्तर में कोई भी बड़ा बखेड़ा खड़ा करने की मंशा रखने वालों की तमाम कोशिशें विफल हो रही हैं। बस्तर ने पूर्व में भी इतने कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक देखे जिनसे मिलने के लिए कई बार चक्कर लगाने पड़ते थे लेकिन मुलाक़ात नहीं हो पाती थी। अगर मेहरबानी करके मुलाकात का मौका दे भी दिया तो समस्या का समाधान देने की जगह अपने व्यवहार से एक नया तनाव दे दिया जाता था। जनता के सेवक जनता के प्रतिनिधियों तक को कुछ नहीं समझते थे तो जनता की क्या सुनवाई होगी, यही सोचकर लोग व्यवस्था के इन दोनों प्रमुख केंद्रों से दूरियां बनाए रखना ही बेहतर समझते थे। लेकिन अब बस्तर जिला कलेक्टर और एसपी की कार्य संस्कृति और सद्व्यवहार से खुश है। जनता के दिल पर लगे पुराने जख्म भरने लगे हैं।
दोनों की छवि आम जनता के रखवाले के तौर पर उभर रही है। दोनों प्रमुख अधिकारियों का सामंजस्य बरकरार रहता है तो इससे सरकार की छवि पर भी अच्छा असर पड़ना स्वाभाविक है। अन्यथा प्रशासन, पुलिस और जनता के बीच की दूरी का बुरा असर सरकार की साख पर भी पड़ता रहा है। जनता जब प्रशासनिक और पुलिस अफसरों से त्रस्त होती है तो वह सरकार को ही कोसती है। कोई भी सरकार किसी भी जिले की व्यवस्था कलेक्टर और एसपी के जरिए ही सम्हालती है। बेहतर प्रशासन और जनमित्र पुलिस ही किसी जिले को खुशहाल बना सकती है। यही कारण है कि सरकार समय समय पर कलेक्टर और एसपी कॉन्फ्रेंस के जरिए हालात से वाकिफ होती है। अब से पहले बस्तर जिला ही नहीं, समूचे बस्तर अंचल में प्रशासनिक और पुलिस के स्तर पर जनता से सीधे जुड़ाव का माहौल अपेक्षित रहा है। सरकार ने प्रशासनिक और पुलिस प्रमुख के गांवों में रात गुजारने की जो व्यवस्था दी है, उसका बस्तर जिला कलेक्टर और एसपी बेहतर तालमेल के साथ निर्वाह कर रहे हैं। यदि सरकार इस मामले में बस्तर के सातों जिलों की समीक्षा करते हुए सभी जगह बस्तर जैसा समन्वय स्थापित कर दे तो बस्तर अंचल के विकास को पंख लग जाएंगे और लाल आतंक की समस्या से निजात दिलाने मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। बहरहाल बस्तर जिले की जनता अपने जिलाधीश और पुलिस कप्तान की जोड़ी को दुआ दे रही है कि सलामत रहे दोस्ताना तुम्हारा..!