दल्लीराजहरा – बालोद जिले का सबसे बड़ा शहर दल्लीराजहरा जिसके लौह अयस्क से इस्पात निर्माण कर भिलाई इस्पात संयंत्र देश के नवरत्नों में शामिल हुआ है | यहाँ की जनता वर्षों से धुल मिटटी खाकर भिलाई इस्पात संयंत्र को लौह अयस्क की आपूर्ति करती रही है इस धुल मिट्टी के कारण कई नागरिक एवं मासूम बच्चे गंभीर बिमारियों के कारण अपनी जान भी गवां चुके है | खदान खुलने के समय प्रबंधन द्वारा सैकड़ों वादे किये गए थे जिसमे शिक्षा स्वास्थ्य एवं रोजगार के साथ साथ शहर के विकास के अलावा आसपास के 25 किमी के ग्रामीण आदिवासी अंचल के विकास की जवाबदारी ली थी किन्तु जैसे जैसे लौह अयस्क की कमी होती जा रही है वैसे वैसे प्रबंधन भी रोजगार स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर कमी करती जा रही है | पूर्व में कम से कम बीएसपी अस्पतालों में अच्छे डोक्टरों की सुविधा प्रदान की गई थी एवं शिक्षा के लिए कई प्राथमिक एवं हाई स्कूल बनाये गए थे कर्मचारियों की संख्या के अलावा मजदूरों की संख्या मिलाकर दल्लीराजहरा शहर की कुल आबादी लगभग डेढ़ लाख के आसपास थी किन्तु सुविधाओं में कटौती के कारण स्थानीय कर्मचारियों एवं दैनिक मजदूरों की संख्या में भारी कमी की गई | वर्तमान समय में शहर की आबादी 40 हजार में सिमित हो गई है | बीएसपी प्रबंधन द्वारा चलाये जा रहे समस्त प्राथमिक विद्यालय बंद कर दिए गए एवं हायर सेकेंडरी स्कूल को भी निजी हाथों में सौंप कर हिंदी माध्यम के स्कूल को बंद कर दिया गया | इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में बीएसपी माइंस का अस्पताल सफ़ेद हाथी ही साबित हो रहा है इसकी स्थिति केवल एक रेफ़र सेंटर बन कर रह गई है | इस भवन का 70 प्रतिशत भाग आज बंद स्थिति में रहता है डोक्टरों के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई है | आपातकालीन चिकित्सा सेवा (आईसीयू) के नाम पर केवल खानापूर्ति है | बड़े बड़े श्रमिक संगठन अपने कर्मचारियों के हित को छोड़ केवल आपसी प्रतिद्वंदिता एवं संगठन के नाम पर अपने को सेट करने में जुटे हुए है | इसके अलावा रोजगार के नाम पर ज्यादा से ज्यादा ठेका श्रमिकों को अपने यूनियन में जोड़कर अपना सीना चौड़ा कर रहे है | वे यह भूल जा रहे है कि इन ठेका श्रमिकों के चक्कर में स्थायी कर्मचारियों की संख्या निरंतर कमी हो रही है | जो कि भविष्य में प्रबंधन को माइंस बंद करने के लिए खुला मैदान दे देगी | कहा तो यह भी जा सकता है कि पैलेट प्लांट जैसी योजना भी इन्ही यूनियन के दबाव के कारण ठन्डे बस्ते में जा सकती है |
शर्म का विषय है कि 40 हजार की आबादी वाले शहर में एक भी शासकीय अस्पताल आज तक नहीं खुल सका | चिकित्सा के नाम पर शहर को हमेशा ही ठगा गया | वर्षों से लंबित मांग 100 बिस्तर अस्पताल हर चुनावी घोषणा पत्र में सुनने को मिली किन्तु लम्बे समय के बाद बीएसपी प्रबंधन की भूमि आबंटन की लम्बी प्रक्रिया के बाद हवा हवाई हो गई |
इसी प्रकार 2016 में तात्कालीन जिलाधीश राजेश सिंह राणा द्वारा झरणदल्ली की शासकीय भूमि खसरा न 45 रकबा 6.51 हेक्टयर में से 8 एकड़ जमीन चयनित कर केंद्र को जानकारी भेजकर
केंद्रीय विद्यालय को खोलने के लिए बालोद जिले के तत्कालीन कलेक्टर राजेश सिंह राणा द्वारा झरणदल्ली की शासकीय भूमि को वर्ष 2016 को पूर्व सांसद विक्रम उसेंडी के समय प्रस्ताव बनाकर भेजा गया था, जो सांसद मोहन मंडावी के प्रयास से स्वीकृत हो चुका है। लेकिन बालोद जिले के कुछ जन प्रतिनिधि अपने अपने क्षेत्रों में खुलवाने के लिए जी जान लगा रहे हैं सभी इलाको में जमीन देने की प्रक्रिया चल रही हैं। लेकिन सन 2016 में तत्कालीन कलेक्टर ने झरंनदल्ली (दल्लीराजहरा) की शासकीय भूमि 8.51 हेक्टेयर में से 8 एकड़ जमीन केंद्रीय विद्यालय के नाम से खसरा नं सहित प्रस्ताव भेजा गया था। लेकिन जब यह केंद्रीय विद्यालय दल्ली राजहरा के नाम पर पास हो गया है तो इसको विवादित किया जा रहा है। जबकि जहां के लिए प्रस्ताव गया था वहीं खुलना चाहिए।यही राजहरा के निवासियों की मांग है जिसे लोगों ने सांसद के समक्ष रखा जिस पर उन्होंने बताया है कि जमीन चयन करके देने का अधिकार राज्य सरकार का है। सन2016 से जब दल्ली राजहरा के लिए केन्द्रीय विद्यालय के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं तो राजनीति के चलते इस विद्यालय को अन्यत्र ले जाने का प्रयास किया जा रहा है।