श्रीमद्भगवद्गीता क्या है – संत राम बालक दास जी

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श्रीमद्भगवद्गीता क्या है, भगवत गीता स्वयं भगवान कृष्ण की वाणी है जग कल्याणी है स्वयं श्री राधा रानी है विश्व कल्याण की भावना है, संतों की वाणी है हमारे सभी पूर्वजों सनातन ऋषि-मुनियों के द्वारा स्थापित की गई वह परपाटी है जिसे आगे बढ़ाना हमारा एकमात्र उद्देश्य और लक्ष्य भी है |

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इस तरह के ज्ञान से परिपूर्ण ऑनलाइन सत्संग का आयोजन जिसमें प्रतिदिन गीता चर्चा श्री संतराम बालक दास जी के द्वारा की जा रही है ऑनलाइन सत्संग आयोजन सीता रसोई संचालन वाट्सएप ग्रुप में प्रतिदिन किया जाता है आज की गीता परिचर्चा में संत राम बालक दास जी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण जी के अनुसार चार प्रकार के भक्त होते हैं आर्त,अथार्थी, जिज्ञासु एवं ज्ञानी, आर्त भक्त वे हैं जब वे कष्ट में आते हैं तो भगवान का स्मरण करते हैं अथार्थी वे भक्त हैं जिन्हें भगवान से कुछ पाने की कामना होती है और जिज्ञासु वे भक्त होते हैं जो भगवान के रहस्य को जानने के लिए तत्पर रहते हैं उनके हृदय में भगवान के हर विषय को जानने की उत्कृष्ट भावना हमेशा बनी रहती है, ज्ञानी भक्त वे होते हैं जो भगवान के संपूर्ण स्वरूप को जानते हैं केवल और केवल भगवान को पाने की निष्काम भावना को रखते हुए भगवान के प्रेमी होते हैं |

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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन मुझे अत्यधिक ज्ञानी भक्त प्रिय हैं तो परमात्मा हमें स्पष्ट रूप से संकेत दे रहे हैं कि हम अपने आप को ज्ञानी व परिपक्व बनाए ताकि जीवन के हर संघर्ष को हर कठिनाई को हम सहन करते हुए कभी उसमें विचलित ना हो कुछ पाने पर हम अत्यधिक उत्साहित ना हो ऐसे थोडे आवेशों में बहकर हम अपने जीवन को ना डगमगाते हुए समभाव से संपूर्ण जीवन को संतुलित रख सके जिसमें जीवन को जीते हुए परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखकर यह माने कि हम उस सर्वशक्तिमान के अंश है जिस पर हमारी पूर्ण आस्था है और यह मानकर जीवन जीये वही भक्त ज्ञानी भक्त हैं अपने आप को ज्ञानी बनाएं, और पूर्ण प्रेम भाव से परमात्मा पर विश्वास अटल रखें |

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आज की सत्संग परिचर्चा में प्रतिदिन की भांति ऋचा बहन के द्वारा मीठा मोती का सुंदर प्रसारण किया गया जो कि सभी के ज्ञान का केंद्र है –
” अपने मन को सुमन बनाने के लिए रोज़ सोने से पहले अपने दिन भर के कर्मो का हिसाब ईश्वर को सौप कर उसकी याद में सोना है ।”

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इस पर अपने भाव रखते हुए बाबाजी ने बताया कि अपने मन को सुमन बनाने के लिए अर्थात फूल जैसा हल्का पुष्प जैसा सुशोभित सुगंधित और पुलकित बनाने के लिए हमें प्रतिदिन भगवत कार्य करना आवश्यक है जिसमें अपना एवं सब का कल्याण हित होना चाहिए जिसमें हमारे द्वारा किसी को हानि या कष्ट पहुंचाने की भावना नहीं होनी चाहिए दिन भर के बाद रात्रि में जब हम थक कर चूर हो जाए और हम अपने कार्यों की समीक्षा करने बैठे तो हमें ज्ञात होना चाहिए कि ईश्वर परम परमात्मा है और वह हमारे सभी कार्यों को निरीक्षण कर रहे हैं इसलिए अपने कार्यों को अच्छा हम बनाएं हम कभी किसी का गलत नहीं कर रहे हैं और अपने रात्रि की निद्रा को भी भजन स्वरूप रखें इसी तरह से हमें जीवन जीना चाहिए |

आज की सत्संग परिचर्चा में गिरधर सोनवानी जी ने जिज्ञासा रखी की ध्यान के लिए साधन की आवश्यकता क्यों होती है, साधना के महत्व से अवगत कराते हुए बाबाजी ने बताया कि, निश्चित ही ध्यान के लिए साधन अति आवश्यक है यदि हमारे पास साधन नहीं है तो हमारा मन ध्यान करते समय उन्हीं प्रपंचो में फंस कर रह जाएगा जिसमें हम अपना प्रतिदिन व्यतीत करते हैं, ध्यान में बैठने के लिए आचार विचार की शुद्धता मन से वचन से शरीर से भोजन से शब्दों के चयन.से प्रत्येक स्थिति में पवित्रता का होना आवश्यक है,ध्यान के लिए श्री कृष्ण जी ने गीता में कहा है कि ध्यान के लिए आसन न अधिक ऊंचा होना चाहिए ना ही नीचा होना चाहिए हवादार वातावरण का और स्वच्छ वातावरण का चयन किया जाना चाहिए ध्यान के बाद धारणा फिर समाधि आती है धारणा से मन पक्का होता है व समाधि से परमात्मा का मिलन प्राप्त होता है तो ध्यान वह द्वार है जिससे हम धारना व समाधि को प्राप्त करते हैं, साधन के लिए संत कबीर जी कहते हैं कि यह सहज रूप से प्राप्त होने वाला विषय है जो परमात्मा के प्रति प्रेम व सबके कल्याण की भावना अपने सभी दायित्व कर्तव्यों का पालन करते हुए सत पुरुष के सारे गुण जब हमें विदित हो जाते हैं तो हम साधन को निश्चित रूप से प्राप्त करते हुए समाधि के ओर गतिशील हो जाते हैं |

इस प्रकार आज का ज्ञानपूर्ण सत्संग संपन्न हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम