अक्षय तृतीया के उपलक्ष्य में बस्तर में मनाया गया आमा पंडूम

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बस्तर में जब तक स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा फलों का राजा कहा जाने वाला आमा तिहार अक्षय तृतीया में मनाया जा रहा है । कहा जाता है कि नया फल आम की रस्म पूर्ण नहीं कर ली जाती तब तक पेड़ों से आम तोड़ना वर्जित माना जाता है। बस्तर की संस्कृति का यह पहलू काफी रोचक है। जहां ग्राम देवताओं और पूर्वजों को सबसे पहले फल अर्पित किया जाता है। उसके बाद ही उसे जनसामान्य में खाने के उपयोग में लाया जाता है।

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बस्तर में इन दिनों नदी नालों के किनारे आम के पेड़ लगाने वाले अपने पूर्वजों को याद कर आमा तिहार मनाया जा रहा है। इस आमा तिहार द्वारा पेड़ लगाकर सदा के लिये अमर होने की बात बस्तर में अक्षरशः सिद्ध हो रही है।
अपने पूर्वजों के सम्मान में आमा तिहार जैसा उत्सव आपको और कहीं भी दिखाई नहीं देगा। आमा तिहार में किसी एक आम पेड़ के नीचे सभी ग्रामीण एकत्रित होते है। उस पेड़ की पूजा करते है। फिर पहली बार उस पेड़ से आम तोड़े जाते है। वहीं पूजा स्थल पर महिलायें आम की फाकियां बनाकर इसमें गुड़ मिलाती है। फिर सभी को आम की फांकियां प्रसाद स्वरूप वितरित की जाती है।

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तथाकथित लोगों का मानना है कि ब है कि जब तक आम, महुआ या ईमली जैसे फलों के तोड़ने लिये ऐसे तिहार (त्यौहार) ना मना लिया जाये तब तक पेड़ो से इन फलों को तोड़ा नहीं जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि बिना पूजा किये फल तोड़ने से ग्राम देवता नाराज हो जायेंगे। महामारी फैल जायेगी। सारे पशु मर जायेंगे। इसलिये पहले पूर्वजों को फल अर्पित करने एवं ग्राम देवता की पूजा के बाद ही पेड़ो से फल तोड़ा जाता है।
आमा तिहार में पूर्वजों की श्राद्ध करने की पंरपरा भी यहां प्रचलित है।

गांव के सभी लोग किसी नाले के पास एकत्रित होकर पूर्वजों के याद में वहां आम की फांकियां नाले में विसर्जित करते है। फिर वहां जामून की लकड़ी गाड़कर उसके नीचे धान से भरे दोने रखते है। उन दोनो पर दीपक जलाये जाते है। फिर अपने पितरों को याद करते हुये सुख समृद्धि की कामना करते है।

बस्तर के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग समाजों द्वारा विभिन्न तिथियों को आमा तिहार मनाते है। सामान्यतः आमा तिहार के लिये अक्षय तृतीया अंतिम दिन होता है। इस दिन जो ग्रामीण आमा तिहार नहीं मना पाते है वे पुरे साल भर आम नहीं खा पाते है। आमा तिहार को आमा जोगानी के नाम से भी जाना जाता है।