शासकीय भूखंडों पर अतिक्रमण या पैतृक संपत्ति बताकर ख़रीदी बिक्री ..? किसी पक्ष का नुकसान ना हो कलेक्टर महोदय को न्याय करना चाहिए..

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पूर्व सरपंचों या किसी जनप्रतिनिधियों द्वारा पहले तो स्टाम्प पेपर में लिखापढ़ी करके अपने अधिकार की किसी भूखंड को पैतृक सम्पती बताते हुए गांव के ही या आसपास के ऐसे लोगों को बेंच दिया जाता है, जो अपना स्वयं का घर हो जाये इस आशा से जमापूंजी एकत्रित करते रहते हैं। वे लोग जिनके सर पर छत नही है, पेट काटकर भूखंड को विश्वास में ख़रीद लेते हैं और जमा पूंजी खर्च करके ब्याज़ लेकर मकान बनाकर रहने लगते हैं। पंचायत बिजली के लिए एनओसी जारी करती है, नल कनेक्शन लगवाती है टैक्स लेती है।

अब जब सत्ता परिवर्तन हो जाता है, नए सरपंच या किसी अन्य जनप्रतिनिधियों द्वारा उस भूखंड पर कच्चा पक्का मकान बनवाकर निवास करने वालों को शासकीय भूमि पर अतिक्रमणकारी बताकर कार्यवाही की मांग किया जाता है। तब प्रशासन भी इस शिकायत पर उक्त भूखंड पर पटवारी भेजकर माप करके नक्शा जांच करके ऐसे लोगों को तहसील कार्यालयों में बार बार पेशी करवाकर अंत में अवैध कब्ज़ा बताकर अतिक्रमण हटाने का सरकारी निर्देश दे देती है।

इन सबके बीच ऐसे ग़रीब भूखंड ख़रीद कर मकान बनवाकर उसमें परिवार सहित निवासरत लोगों से उन्ही सरपंच या जनप्रतिनिधियों द्वारा लगातार संपर्क रखा जाता है.. तहसील कार्यालय के चक्कर काट काट कर परेशान ग़रीब लोगों को भूखंड को सरकारी दस्तावेज़ से हटवाकर उनके नाम दर्ज़ करवाने के सरकारी काम को कटवाने के एवज में 20 – 30 हजार और ले लिया जाता है, ये लोग उदशर लेकर या आभूषण इत्यादि गिरवी रखकर दे भही देते हैं, न्यायलयिक परेशानी जो झेल कर परेशान हो चुके रहते हैं।

अब वास्तविक अतिक्रमणकारी कौन है और उसपर कार्यवाही करने से प्रशासन क्यों बचती है..? किसी सीधे साधे ग़रीब ने जो स्वयं की छत हो जाये इस कारण ज़मीन ख़रीदी किया था उसे गई अतिक्रमण कारी साबित कर दिया जाता है, उसका पैसा भी गया मकान भी और जमापूंजी भी..! ज़िला दंडाधिकारी को समुचित न्याय करना चाहिए जिससे किसी पक्ष का नुकसान ना हो..

ज़मीन बेचने वाले और ख़रीदने वाले को कानून के नियमों का पालन करना चाहिए.. जानकारी के अभाव में य्या विश्वास में ठीक है नही किया। तब इस सौदे की लिखापढ़ी जिस नोटरी के समक्ष किया गया, चूंकि वे तो क़ानून के जानकार होते हैं तब क्या इस तरह के ख़रीदी बिक्री की सूचना प्रशासन को देना उनकी जिम्मेदारी हो ऐसा प्रावधान नही होना चाहिए..?

अनेकों लिखापढ़ी इसीतरह नोटरी के समक्ष हो जाते हैं जो बाद में गैरकानूनी साबित होते हैं या उनपर क़ानूनी कार्यवाही होती है। ग्रामीण भोलेभाले लोग स्टांप की लिखापढ़ी पर विश्वास रखकर किसी तरह के सौदा आज भी करते हैं उनके क़ानून के प्रति इस विश्वास को कायम रखने की जिम्मेदारी किसकी है..?