(अर्जुन झा)
जगदलपुर। भारत त्योहारों का देश है। छत्तीसगढ़ त्योहारों का प्रदेश है तो राज्य के आदिवासी अंचलों बस्तर और सरगुजा में भी लोक त्योहारों की धूम मची रहती है। छत्तीसगढ़ में सभी त्योहार और लोक पर्व भरपूर उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। खास तौर पर गणेश पूजा और दुर्गा पूजा सार्वजनिक जीवन में व्यापक प्रभाव रखते हैं। बस्तर का दशहरा पर्व तो सारी दुनिया में मशहूर है।। ऐसे मे अब मूर्ति पूजा को लेकर विवाद खड़ा हो रहा है। कहा जा रहा है कि रक्षाबंधन, गणेश-दुर्गा प्रतिमा स्थापना आदिवासी विरोधी उत्सव हैं! इस मसले पर आदिवासी दो खेमों में बंट गए, बताए जा रहे हैं। सवाल यह है कि अगर आदिवासी इन पर्वों को आदिवासी विरोधी मान रहे हैं तो ऐतिहासिक बस्तर दशहरा क्या है? बस्तर का सबसे बड़ा लोक पर्व तो बस्तर का दशहरा ही है। सदियों से तीज त्यौहार न केवल सांस्कृतिक विरासत हैं बल्कि इनसे रोजगार भी जुड़ा हुआ है। अब खबर है कि उत्तर व दक्षिण बस्तर में आदिवासियों के दो समूह मूर्ति पूजा का जमकर विरोध कर रहे हैं जिसके कारण आदिवासी दो खेमों में बंट गए हैं । ऐसे में जिसके फलस्वरूप बस्तर में विवाद बढ़ सकता है। हाल ही रक्षाबंधन पर इसका असर देखा जाना कोई अच्छा संकेत नहीं है।
अब गणेश पूजा शुरु होने के बाद दुर्गा पूजा का पर्व भी निकट आ जायेगा। कभी गणेश पंडालों में भारी रौनक हुआ करती थी। मगर आदिवासी समाज के कुछ लोगों द्वारा सामाजिक बैठकों में इसका विरोध किया जा रहा है। इस मतभेद का असर उत्तर बस्तर कांकेर में पहले से ही देखा जा रहा था। अब मध्य बस्तर के साथ दक्षिण बस्तर में भी मूर्ति पूजा विरोध की दस्तक चिंता का विषय बन रही है। क्योंकि हमेशा से यहां सभी पर्व मिल जुलकर मनाए जाते रहे हैं। आदिवासी सामाजिक सूत्रों के अनुसार आदिवासी पूजा-पाठ के विरोध में नहीं हैं। पत्थर, कडरी व ग्राम गुड़ियों में पूजा-अर्चना करते हैं लेकिन मूर्ति स्थापना आदिवासी परंपराओं के विरुद्ध है। खबर है कि उत्तर बस्तर में सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारियों ने फरमान जारी किया है। मध्य बस्तर व दक्षिण बस्तर में कुछ लोग फरमान जारी कर सोशल मीडिया पर धमकी दे रहे हैं और अर्थदंड वसूलने की बात कर रहे हैं। इस तरह आदिवासी वर्ग विभाजित हो रहे हैं और यह उनकी एकता के लिए काफी बड़ा खतरा है।। त्योहारों को लेकर मचे इस धमाल से चिंतित छोटे छोटे कारोबारियों से लेकर समान्य मध्यम व्यवसायियों का कहना है कि दो-तीन साल से ग्रामीण अंचलों में मूर्ति स्थापना के प्रति लोगों की रुचि घटने के कारण मूर्ति लेने वाले कम हो गयें हैं तो साज-सज्जा के सामानों की बिक्री भी ठप है जिसके कारण नुकसान उठाना पड़ रहा है। त्योहारों से जिनका रोजगार जुड़ा है, वे सवाल कर रहे हैं कि सामाजिक सौहार्द को किसकी नजर लग गई है?