ठेका कार्यों में पारदर्शिता लाने एवं दस वर्षों अथवा उससे अधिक समय तक कार्य करने वाले ठेका श्रमिकों को डीपीआर करने की मांग को लेकर राजहरा खदान समूह के श्रम संगठनों द्वारा डायरेक्टर इंचार्ज भिलाई इस्पात संयंत्र के नाम मुख्य महाप्रबंधक को ज्ञापन सौंपा

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आज राजहरा खदान समूह के श्रम संगठन एटक के सचिव कमलजीत सिंह मान, इंटक के संगठन सचिव अभय सिंग और खदान मजदूर संघ भिलाई के महामंत्री एम पी सिंग ने संयुक्त रूप से एक ज्ञापन डायरेक्टर इंचार्ज भिलाई इस्पात संयंत्र के नाम मुख्य महाप्रबंधक राजहरा खदान समूह के कार्यलय भवन में सौंपकर ठेका कार्यों में पारदर्शिता लाने एवं दस वर्षों अथवा उससे अधिक समय तक लगातार कार्य करने वाले सभी ठेका श्रमिकों को पूर्व की तरह डीपीआर करने की मांग की और तीनों श्रमिक संगठन के नेताओं ने बताया कि

(१) वर्तमान में ऐसे कई ठेके हैं जिनमे पहले नियमित कर्मी कार्य करते थे। नियमित कर्मियों की संख्या कम होने से विगत एक दशक से अधिक समय से ऐसे कार्यों को प्रबंधन ठेका पद्धति से करा रहा है जैसे – प्लांट मेंटेनेंस, टिपर मेंटेनेंस, अस्पताल में एम्बुलेंस ड्राइवर, खदान में टिप्पर, जीप आदि के ड्राइवर्स, नाम बदलकर प्लांट में मक क्लीनिंग इत्यादि।

(२) इसके अलावा नित्य नए कार्य ठेके हेतु निविदा बुलाई जाती है।

(३) इन कार्यों में कार्य करने हेतु श्रमिकों को लेकर श्रम संगठनों एवं प्रबंधन के बीच विवाद होना देखा जा रहा है। उक्त विवाद के लिए हम सभी श्रम संगठन प्रमुख रूप से प्रबंधन को जिम्मेदार मानते हैं।

(४) महोदय, राजहरा की प्रचलित परंपरा के अनुसार अगर किसी कार्य के लिए रिपीट टेंडर होता है तो पहले से ही उक्त कार्य में कार्यरत श्रमिकों को प्राथमिकता के आधार पर कार्य पर लिया जाता है। इस परंपरा का लगभग सभी श्रम संगठन पालन करते आ रहे हैं।

(५) किन्तु विगत कुछ समय से यह देखने में आ रहा है कि प्रबंधन के कतिपय अधिकारी विशेष रूप से एक वर्ग विशेष के लोगों को ही काम पर रखने हेतु दवाब बनाने का प्रयास करता आ रहा है। ठेका श्रमिकों के निविदा में ऐसे नियम और शर्त डाले जाते हैं जो कानूनन गलत हैं। जैसे, कुछ निविदाओं में कामगारों के लिए दस वर्ष का अनुभव चाहिए होता है, तो कुछ निविदाओं में अप्रत्यक्ष रूप से नियम और कानून का गलत सहारा लेते हुए वरिष्ठता को प्राथमिकता दिए जाने की बात कही जाती है।

(६) किसी भी कार्यरत ठेके में धीरे धीरे तय संख्या से अधिक श्रमिकों को रख लिया जाता है और उनसे विविध विविध कार्य कराये जाते हैं। कुछ समय के बाद इन श्रमिकों के लिए प्रबंधन द्वारा एक ठेका निकल दिया जाता है और फिर अपने चाहते को रखने के लिए दवाब बनाया जाता है। पूछने पर अधिकारीयों द्वारा यह कहा जाता है कि उक्त श्रमिक पुराने हैं यह कहा जाता है कि ये श्रमिक खली बैठे हैं इसलिए इन्हे काम पर रखना होगा।

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(७) इसी तरह के और भी अन्य कई दृष्टान्तहैं जिनमे कुछ अधिकारी विशेष लगाओ दर्शाते हुए अपने चहेतों के लिए हर संभव तरीके अपनाते हैं चाहे वो तरीका गलत या गैरकानूनी ही क्यों न हो।

(८) महोदय, आज कई ठेके बंद पड़े हैं और उन ठेकों में कार्यरत श्रमिक भूखे मर रहे हैं। लेकिन प्रबंधन उनके लिए रिपीट निविदा निकलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती है लेकिन अपने चहेते आदमियों के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाने से कोई परहेज ना करनेवाले अधिकारीगण अपने चहेतों के लिए सभी नियम और कानून ताक पर रख देते हैं। माइंस ऑफिस में रूम सर्विस का ठेका, टाउनशिप में डोर तो डोर क्लीनिंग का ठेका, पूर्व में हुए कैंटीन का ठेका, आदि आदि ऐसे कई कार्य हैं जो बंद पड़े हैं लेकिन प्रबंधन को उन्हें शुरू करने में कोई रूचि नहीं है।

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(९) इसके अलावा लगभग अधिकांश ठेकों में ठेका कर्मियों का शोषण होता है। किसी ठेके में अंडर पेमेंट की समस्या, किसी में भत्ते न मिलने की समस्या, कई ठेकों में ठेका समप्थी के बावजूद २-३ महीने का वेतन अप्राप्त होना, किसी ठेके में बोनस राशि का भुगतान न होना, आदि आदि ऐसी समस्याएं हैं जिनकी जानकारी देने के बाद भी अधिकारीगण सिवाय आश्वासन देने के औरकुछ नहीं करते हैं।

(१०) महोदय दिनांक २०.०४.२०१५ को हुए त्रिपक्षीय समझौते में सेवाकाल के आधार पर एक उच्च ग्रेड देने की ही बात हुई थी।किसी भी कार्य में सेवाकाल के आधार पर, या गलत निविदा प्रक्रिया के द्वारा अपने किसी चहेते आदमी को ही कार्य पर रखने हेतु अनुचित दवाब डालने की कोई बात नहीं हुई थी। प्रबंधन के कुछ अधिकारीयों द्वारा इस तरह के गैर कानूनी हथकंडों से इन अधिकारीयों की मंशा पर कई सवाल खड़े होते हैं और लोगों को कंपनी की निविदा प्रक्रिया पर ऊँगली उठाने का मौका मिलता है जिससे कंपनी की छवि ख़राब होती है।

(११) महोदय, इस तरह के विवादस्पद मुद्दों में घिरकर कंपनी और अधिकारीयों की छवि तो धूमिल होती ही है साथ में नगर में बैठे बेरोजगार नवयुवकों में कंपनी एवं प्रबंधन के अधिकारीयों के विरुद्ध आक्रोश पनप रहा है जो कभी भी कानून व्यवस्था का रूप ले सकता है जिसके लिए प्रबंधन के चुनिंदा अधिकारी ही जिम्मेदार होंगे।

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(१२) इन सभी अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए हम सभी अधोहस्ताक्षरकर्ता यह मांग करते हैं कि किसी भी ठेके कार्य में दस वर्ष या उससे अधिक समय से कार्यरत सभी कर्मियों को पूर्व की तरह उन्हें डीपीआर के रूप में नियुक्ति दे दी जावे। इसके पूर्व भी वर्षों से कार्यरत ठेका श्रमिकों को डीपीआर के रूप में नियुक्ति दी गयी थी जिससे जहाँ एक तरफ कंपनी के उत्पादकता में वृद्धि हुई थी वहीँ दूसरी तरफ श्रमिकों एवं उनके आश्रितजनों को काफी सुविधा उपलब्ध हो गयी थी। साथ ही हम सभी यह मांग भी करते हैं कि ठेकों के माध्यम से अपने चहेते आदमियों को काम पर रखने के प्रयास पर अंकुश लगाया जावे और भारतीय संविधान के अनुछेद 16 का पालन करते हुए सभी को काम के सामान अवसर उपलध कराया जावे। अगर प्रबंधन द्वारा हमारी इन उचित मांगों को नजरअंदाज किया जाता है तो मजबूरन हम सब अधोहस्ताक्षरित श्रम संगठन को कड़े कदम उठाने पड़ेंगे जिसकी जिम्मेदारी स्थानीय राजहरा खदान समूह और बीएसपी प्रबंधन की ही होगी। इन मुद्दों पर प्रबंधन से चर्चा हेतु हम सभी हमेशा तैयार हैं।