मां दंतेश्वरी की धरा पर पुरंदेश्वरी का स्वागत है, करें वही जो बस्तर चाहे …

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(अर्जुन झा)

जगदलपुर। भारतीय जनता पार्टी की छत्तीसगढ़ प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी अगले साल के आखिरी में होने वाले चुनाव के लिए बस्तर में सक्रिय हैं। वे लगातार यहां का दौरा कर रही हैं। वे 14 मार्च से 17 मार्च तक बीजापुर, नारायणपुर, सुकमा और बस्तर जिले में दौरा करेंगी। बस्तर में पुरंदेश्वरी की अकेले अकेले यानि बिना बड़े नामधारी नेताओं के सतत सक्रियता राजनीति में कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे रही है। वे बस्तर दौरे के दौरान प्रदेश भाजपा के स्वनामधन्य नेताओं को दरकिनार कर रही हैं तो इस पर भाजपा को कांग्रेस के व्यंग्य बाण झेलने पड़ते हैं। अब तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी इस मामले में कह रहे हैं कि डी. पुरंदेश्वरी छत्तीसगढ़ आती हैं तो अच्छा लगता है। वह यहां आकर बड़े-बड़े भाजपा नेताओं को उनकी औकात दिखा जाती हैं। भाजपा इसका तथ्यात्मक जवाब देने से बचती है और उसकी तरफ से पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का राजनीतिक जवाब है कि भूपेश बघेल हंटर वाली से डर गए हैं। वैसे भूपेश बघेल हंटर वाली से डरते हैं या नहीं डरते हैं अथवा कितना डरते हैं, यह राजनीतिक नोंकझोंक है लेकिन भाजपा के बस्तरिया नेता हंटर वाली के लिए कितने सजग हैं, यह भी बस्तर में देखा जा रहा है।

पुरंदेश्वरी के दौरे की तैयारी चल रही है। कैसी तैयारी है, इसकी बानगी सामने आई है कि बैठक में प्रदेश महामंत्री किरणदेव बौद्धिक देते रहे और प्रदेश मंत्री श्रीनिवास मद्दी अपनी धुन में मस्त रहे। यदि अपनी ही प्रदेश प्रभारी के बस्तर दौरे के मद्देनजर होने वाली महत्वपूर्ण बैठक में भाजपा के प्रदेश पदाधिकारी तक का ऐसा व्यवहार सामने आएगा तो आम कार्यकर्ता तक आखिर क्या पैगाम जाएगा? अब यदि भाजपा की मौजूदा स्थिति की बात करें तो ऐसा जान पड़ता है कि प्रदेश प्रभारी ने रणनीति के तहत ही छत्तीसगढ़ भाजपा के बड़े बड़े महारथियों को राजधानी तक सीमित कर रखा है। वे संगठन की रणनीतिक बैठकों में तो सभी नामी नेताओं से चर्चा करती हैं लेकिन बस्तर से उन्हें दूर रखती हैं, जैसे कह रही हों कि भैया लोग यहां आपकी जरूरत नहीं है। कार्यकर्ता ही आप लोगों के नाम से बिदकते हैं तो जनता आपके नाम पर क्या खाक समर्थन देगी। दरअसल पुरंदेश्वरी उन जमीनी कार्यकर्ताओं को जगा रही हैं, काम पर लगा रही हैं, जिसकी मेहनत की दम पर नेताओं ने पंद्रह साल तक सत्ता की भरपूर मलाई खाई लेकिन यही कार्यकर्ता वंचित और उपेक्षित रह गया। जब भाजपा नेताओं ने मैदानी कार्यकर्ताओं से दूरी बना रखी थी तो जनता के काम कैसे होते। यही वजह है कि भाजपा का देवदुर्लभ कार्यकर्ता रूठ गया। नतीजा सामने है कि बस्तर भाजपा के लिए उजड़ा चमन हो गया और कांग्रेस के लिए मखमली बिस्तर सज गया।

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पुरंदेश्वरी अब रूठे कार्यकर्ता को मना रही हैं, बदरंग चेहरों से परहेज कर रही हैं और कह रही हैं कि नए और युवा चेहरे सामने लाये जायेंगे तो एकदम से भरोसा नहीं होता किंतु भाजपा के शिखर नेतृत्व ने जिस तरह लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ भाजपा के सारे के सारे बल्व बदल डाले थे, उसे देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि अगले विधानसभा चुनाव में कार्यकर्ता ही आगे लाये जा सकते हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जो प्रयोग किया, वह उम्मीद से बहुत ज्यादा सफल रहा। अनजान से चेहरों ने धुरंधरों को धूल चटा दी। कदाचित पुरंदेश्वरी की रणनीति यही है लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि भाजपा को नेतावाद से मुक्त किया जाय। मां दंतेश्वरी की धरा में पुरंदेश्वरी का स्वागत है लेकिन चुनाव में होगा वही, जो बस्तर चाहेगा। बस्तर क्या चाहता है, यह पुरंदेश्वरी शोध कर रही हैं, बस्तर की चाहत समझ रही हैं, बस्तर के अनुकूल तैयारी करेंगी तो भाजपा के वीराने में बहार आने की उम्मीद भाजपा कर सकती है।