भारतीय मजदूर संघ राजहरा शाखा के अध्यक्ष किशोर कुमार मायती ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि संघ ने 23-03-2022 को उपमहाप्रबंधक कार्मिक राजहरा खदान समूह को पत्र लिखकर राजहरा खदान के ठेके में कार्य किए हुए श्रमिकों का वेतन बोनस दिलाने की मांग की थी।मगर आज लगभग 45 दिन बीत जाने के बाद भी श्रमिकों का वेतन और बोनस की राशि का भुगतान ठेकेदार द्वारा नहीं किया गया है। जबकि यह कार्य समाप्त हुए भी महीनों बीत चुके हैं। उसके बाद भी श्रमिकों के वेतन का भुगतान न होना काफी शर्मनाक है।और यह कार्मिक विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है। कि जिस कार्मिक विभाग के ऊपर पूरे खदान के श्रमिकों के वेलफेयर की जिम्मेदारी है वह खुद के विभाग द्वारा संचालित एक छोटे से ठेके में श्रमिकों को उनका अधिकार दिलाने में पूरी तरह विफल हैं।
ये सुनकर बहुत हास्यास्पद लगता होगा किन्तु यह पूरी तरह सत्य है।कि कार्मिक विभाग द्वारा संचालित केंटीन के ठेके में खदान श्रमिक कल्याण सहकारी समिति को पहले लगभग 30 प्रतिशत कम दर पर कार्य को अवार्ड कर दिया गया जो समझ से परे है।अब ठेकेदार श्रमिकों को वेतन नहीं दे रहा है और कार्मिक विभाग किसी तरह की कार्यवाही करने में पूरी तरह से अक्षम नजर आ रहा है। इस मामले में संघ के प्रतिनिधिमंडल ने उपमहाप्रबंधक कार्मिक आईओसी राजहरा से भी चर्चा की जिसमें उन्होंने बताया कि चूँकि ठेकेदार को बीएसपी द्वारा बिल का भुगतान नहीं किया गया था अतएव श्रमिकों को वेतन भुगतान नहीं किया गया। लेकिन अब ठेकेदार के बिल के भुगतान हेतु अनुमोदन दे दिया गया है और शीघ्र ही उनका वेतन भुगतान ठेकेदार द्वारा कर दिया जावेगा।
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किन्तु उक्त ज्ञापन और चर्चा के लगभग डेढ़ माह बीतने के बावजूद श्रमिकों का भुगतान नहीं होना यही दर्शाता है कि या तो उपमहाप्रबंधक महोदय द्वारा संघ के प्रतिनिधियों को गलत जानकारी दी गयी है या फिर बिल भुगतान के बावजूद ठेकेदार द्वारा श्रमिकों का भुगतान नहीं किया जा रहा है। दोनों ही स्थिति के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वो है राजहरा खदान समूह का कार्मिक विभाग क्योंकि दूसरे ठेके में अगर कर्मियों का वेतन भुगतान लंबित होता है तो इसी विभाग के अधिकारी अत्यधिक सक्रीय होकर कर्मियों का भुगतान विभागीय तौर पर करवाकर ठेकेदार से दंड वसूलते करते हैं लेकिन वर्तमान प्रकरण में ऐसा न करना यही दर्शाता है कि कार्मिक विभाग के अधिकारी भी संभवतः श्रमिकों के शोषण में बराबर के भागिदार हैं क्योंकि उक्त ठेकेदार को एक ऐसे श्रम संगठन का साथ है जो कि एक तरफ अपने आपको श्रमिकों का मसीहा साबित करने के लिए हर तरह के अवैधानिक मांगें करता है और श्रमिकों को बरगलाकर औद्योगिक अशांति फ़ैलाने का काम करता है तो दूसरी तरफ श्रमिकों का शोषण करने वाले ठेकेदारों और कंपनी के साथ धोखाधड़ी करने वाले ठेकेदारों के साथ हमदर्दी दिखते हुए ऐसे गलत ठेकेदारों को अपना संरक्षण देता है। अब श्रमिकों को यह सोंचना है कि वे ऐसे श्रमिक नेताओं के साथ रहकर अपना कितना भला करवा सकते हैं?
दूसरी तरफ इस प्रकरण में कार्मिक विभाग द्वारा श्रमिकों के वेतन भुगतान के लिए विभागीय प्रक्रिया न अपनाना कार्मिक विभाग की भाई भतीजावाद की कार्यशैली को पूरे खदान के नियमित और ठेका श्रमिकों के सामने उजागर करता है।