पिता के मिलनसारिता वर्चस्व को नहीं रख पाए बरकरार
जगदलपुर। जनजातीय सुरक्षा मंच के बैनर तले कल पंद्रह वर्षों बाद आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए केदार कश्यप दिखाई दिए किंतु सभी लोग पूछ रहे हैं कि केदार तीन वर्षों में आदिवासी समाज के लिए क्यों कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पाए और ना ही वह अपने पिता के विरासत को संभालकर रख पाए।
बस्तर के स्व. बलीराम कश्यप अविभाजित मध्यप्रदेश समय के साथ छत्तीसगढ़ के राजनीति के धुरी थे और वह सभी लोगों से सहज ही सुलभ हो जाते थे तथा पटवा सरकार हो या रमन सरकार हो सभी को आंखें दिखाने में परहेज नहीं करते थे किन्तु उनके परिवार के मंत्री पुत्र पर कई प्रकार के आरोप भी लगाया गया है जिन पर अपने ही आदिवासी समाज के उपेक्षा के आरोप लगे। कल आयोजित पत्रकार वार्ता के बाद केदार कश्यप फिर आदिवासियों के निशाने पर आ गए हैं। जनजातीय सुरक्षा मंच के संरक्षक बतौर केदार कश्यप ने वर्तमान राष्ट्रपति द्रुपदी मुर्मू के बहाने भाजपा की राजनीति को संवारने की कोशिश कर रहें हैं।
बस्तर जिले के आदिवासी समाज से जुड़े प्रमुखों ने कहा कि अजीत जोगी शासनकाल में आदिवासियों ने कांग्रेस पार्टी से दूरी बनाई और भाजपा के हो लिए किंतु आदिमजाति कल्याण विभाग मंत्री केदार कश्यप उन्हें अपने साथ जोड़ नहीं पाए। बड़ी- बड़ी घटनाएं आदिवासियों पर हुए उस दौरान भी वह सत्ता की चकाचौंध में रहें क्योंकि तब तक स्वास्थ्यगत कारणों से बलीराम कश्यप युग का समापन हो गया था और सत्ता हस्तांतरण केदार कश्यप के गल्ले में आई थी जिसने आदिवासी धर्म भुला दिया।कल की पत्रकार वार्ता जनजातीय सुरक्षा मंच के बैनर तले हुई और इसके नेता राजाराम तोड़ेम पंद्रह वर्षों तक केदार के कारण लुप लाईन में रहे तथा पार्टी से उन्हें खदेड़ कर महेश गागड़ा को तरजीह देते थे किन्तु अब क्या हुआ कि केदार के साथ महेश मंच साझा करने से कतराते हैं जिसकी बानगी तोकापाल के संभाग स्तरीय भाजपाई कार्यक्रम में देखने को मिला। लिखने का गर्ज यह है कि केदार इन दिनों ऐसे लोगों के मकड़जाल में फंसे हैं जोकि उनके कान भरते हुए रहते हैं। जनजातीय सुरक्षा मंच के संरक्षक भले ही हो किंतु वह आदिवासियों के भलाई के कोई बड़ा आंदोलन तीन वर्षों में खड़ा नहीं कर पाए जबकि अपनी भुल सुधारकर सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करना था क्योंकि कई प्रकार की समस्यायों का अंबार यहां बिखरा हुआ है।