पहले वाह, बाद में आह, ऐ साहिब ये ठीक नहीं…

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(अर्जुन झा)

जगदलपुर। राजनीति में मौके का फायदा उठाकर बाद में कसूर निकालने का चलन बहुत पुराना है लेकिन जगदलपुर में यह तीखे तेवर के साथ नए कलेवर में सामने आ रहा है। प्रियदर्शिनी इंदिरा स्टेडियम में करोड़ों रुपयों की लागत से जब कायाकल्प हो रहा था तब सभी दलों के नेता तत्कालीन कलेक्टर रजत बंसल की स्तुति कर रहे थे लेकिन उनके जाते ही अब विपक्षी दल के लोगों को इस काम में खोट नजर आ रही है और वे कह रहे हैं कि करोड़ों रुपए लगाकर खिलाड़ियों के लिए नहीं ,बल्कि भ्रष्टाचार के लिए मैदान तैयार किया गया। ये नेता काम की जांच कराने की मांग कर रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि जब यही नेता इसी काम की तारीफ कर रहे थे, तब उन्होंने कौन सा सीरा पी रखा था जो उनके होंठ चिपक गए थे। अब आरोप लगाये जा रहे हैं कि लगभग 15 करोड़ रुपया ख़र्च करने के बाद दो माह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मैदान का उद्घाटन करते हुए बहुत वाहवाही लूटी थी लेकिन पहली ही बारिश में मैदान जिस प्रकार से बर्बाद हो गया, उसने निर्माण कार्य में हुए भारी भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया है। अब यहां सवाल यह उठ रहा है कि भारी बरसात में खेल मैदान का क्या हाल हो सकता है? जब तेज बारिश में खेल मैदान की सेहत पर असर पड़ रहा था तब ये नेता कहां गायब हो गए थे? अब विपक्षी नेता कह रहे हैं कि इस मैदान को बनाने में बहुत अनियमितता की गई है।निर्माण एजेंसी के ठेकेदार, अधिकारियों और नेताओं ने अपनी जेब भरने में किसी प्रकार की कमी नहीं की है । मैदान के निर्माण के प्रारंभ से ही अपने द्वारा चयनित ठेकेदार को फ़ायदा दिलाने को ध्यान में रखकर निविदाएँ बार बार बदली जाती रही तथा निविदा में ऐसी शर्तें जोड़ी गईं जिससे छत्तीसगढ़ के सभी ठेकेदार निविदा में भाग लेने से वंचित हो गये। विपक्ष के नेताओं को अब जो ब्रम्हज्ञान हुआ है, वह तब क्यों नहीं हुआ, जब यह कथित धांधली हो रही थी? पहले वाह और अब आह, यह बात लोगों को कुछ हजम नहीं हो रही। यहां विपक्ष के नेताओं को अब सुध आ रही है कि अपने पसंद के ठेकेदार से कार्य कराने के चक्कर में अधिकारियों ने यह ध्यान नहीं दिया कि जिस निविदाकार को लगभग 7 करोड़ का ग्रास सिंथेटिक टर्फ़ बिछाने का काम दिया , उसके पास इस कार्य का पर्याप्त अनुभव भी नहीं था। यह रिसर्च तब क्यों नहीं की गई? अब कहा जा रहा है कि जो टर्फ बाज़ार में 25-26 सौ रुपये में उपलब्ध है, उसे लगभग 6 हज़ार रुपये प्रति मीटर से ख़रीदा गया है तो इतने दिनों तक ये खामोश क्यों थे? क्या कोई उम्मीद थी, जिसके टूटने के बाद अब भ्रष्टाचार का शोर मचाया जा रहा है?