बस्तर में मखमली बिस्तर पर करवटें बदलने का दौर, मिलकर चलें तो मिलेगा ठौर…

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(अर्जुन झा)

जगदलपुर। कांग्रेस को सभी बारह विधानसभा सीटें देने वाले बस्तर के मखमली बिस्तर पर विधायकों के करवटें बदलने का दौर शुरू हो गया है। जब से राज्य की सभी 90 विधानसभा क्षेत्र में भेंट मुलाकात कार्यक्रम के तहत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बस्तर नापकर गए हैं तब से कई विधायकों को ढंग से नींद नहीं आ रही। बस्तर परिक्रमा में जनता से मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री ने केवल नौकरशाही का ही फीडबैक नहीं लिया है। लगे हाथ लोकशाही का हाल भी देख, सुन, समझ लिया है। जिनमें कमजोरी नजर आई, उन्हें फिलहाल सियासी सेहत सुधारने का मौका दिया गया है। सुधार कर लिया तो ठीक वरना बंटाधार तय है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस संगठन वह गलती नहीं करना चाहेंगे जो भाजपा ने 2018 में की थी। जिन विधायकों और मंत्रियों से जनता संतुष्ट नहीं थी, कार्यकर्ता खिसियाये हुए थे, उन्हें भाजपा ने चुनावी समर में उतार दिया था। नतीजा सामने है। बस्तर में भाजपा पूरी तरह साफ हो गई। लोकसभा चुनाव में भी बस्तर संसदीय क्षेत्र की जनता ने भाजपा को माफ नहीं किया और कार्यकर्ताओं ने भी उत्साह नहीं दिखाया। जबकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सीधा सा मंत्र है कि काम बोलना चाहिए। वे जानते हैं कि जंग लगी तलवार से जंग नहीं जीती जाती। इसलिए वे तलवार की तेज धार बनाये रखना चाहते हैं। हाल ही बस्तर सांसद दीपक बैज उदयपुर मंथन का हवाला देते हुए यह इशारा कर चुके हैं कि पांच साल पूरे कर चुके संगठन के जिला गद्दीदार बदले जाएंगे। उन्होंने नए चेहरों को मौका देने की हिमायत की है तो साफ है कि बस्तर सांसद अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में थके हुए लोगों की जगह नई चेतना को पसंद करेंगे। गहराई से देखा जाय तो यह इशारा जिला संगठन के साथ साथ कहीं और भी है।

चुनावी तैयारी के लिहाज से सबसे पहले संगठन की मैदानी मजबूती जरूरी है। इसलिए बस्तर सांसद ने अभी संगठन के स्तर पर संदेश दिया है। संगठन में कसावट के बाद जब चुनाव के लिए उम्मीदवार स्तर पर मजबूती की सबसे अहम जरूरत पर फोकस होगा तो यह तय है कि जिनके सीने की आग बुझ गई है, उनकी चुनावी धड़कन भी थम जायेगी।इसलिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम भी कई दफा विधायकों के प्रदर्शन पर नसीहत दे चुके हैं और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी अपने विधायक दल के एक एक सदस्य को हर स्तर पर परखने में कोई कमी नहीं रखेंगे।कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ की सत्ता का रास्ता बस्तर से होकर गुजरता है। तब बस्तर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कोई जोखिम क्यों लेना चाहेंगे? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर विकास को प्राथमिकता में शामिल कर रखा है। उन्होंने अब तक बस्तर के चप्पे चप्पे को जितनी सौगात दी है, वह अगले चुनाव के लिए कांग्रेस का प्लस पॉइंट है लेकिन विधायकों का अपने स्तर पर कैसा प्रदर्शन है, जनता के बीच कैसी छबि है, कार्यकर्ता के बीच कैसी स्थिति है, यह ज्यादा महत्व रखता है। अकेले मुख्यमंत्री के काम को जनता चुनावी सौ नम्बर नहीं देती। अब यहां इस पर विचार किया जाय कि बस्तर में सत्ता संगठन विधायक और सांसद के बीच कैसा तालमेल है तो नजर आता है कि बस्तर सांसद दीपक बैज अपने तौर पर सबको साथ लेकर बस्तर संसदीय क्षेत्र के विकास के प्रयास कर रहे हैं। उनके संसदीय क्षेत्र में कोंटा विधायक कवासी लखमा भी आते हैं, जो वरिष्ठ जुझारू नेता के साथ साथ वरिष्ठ मंत्री हैं। इनके अलावा बस्तर संसदीय क्षेत्र में कोंडागांव विधायक मोहन मरकाम भी आते हैं जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं। इनके बीच बेहतर तालमेल के साथ ही बस्तर संसदीय क्षेत्र के शेष विधायकों के बीच सुर ताल मिलने से बस्तर में कांग्रेस की मजबूती को अनुकूल वातावरण मिलने की संभावना से भला कौन इंकार कर सकता है? विधायक मजबूत होंगे तो सांसद भी मजबूत होंगे। सांसद काम कर रहे हैं तो उनके संसदीय क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों में काम हो रहा है तो इसका फायदा विधायक को भी मिलना है। पते की बात यह है कि बस्तर में संगठन, विधायक और सांसद मिलकर चलते रहें तो ठौर ठिकाना कायम रह सकता है। मौजूदा स्थिति यह है कि कहीं कहीं तालमेल चल रहा है तो कहीं कहीं घालमेल चल रहा है।