नारायणपुर। मंडी बोर्ड के निर्माण कार्य में रिंग बनाकर चारामा और केशकाल के दलाल ऑडियो मामले के बाद अब खबर गर्म है कि नारायणपुर मंडी में भी निविदा लेने के लिए चहेते ठेकेदारों की राह आसान करने के लिए नए नियम कानून गढ़े जा रहे हैं। आरोप लगाया जा रहा है कि अपने खास ठेकेदारों को काम मिलना तय कराने की खातिर अन्य ठेकेदारों को टेंडर फॉर्म नहीं दिया जा रहा। बताया जा रहा है कि नारायणपुर मुख्य मंडी नवीन प्रांगण में 10 दुकान तथा अन्य कार्यों के लिए 43 लाख, 39 हजार की निविदा आमंत्रित की गई। इसके साथ ही पुरानी मंडी प्रांगण बखरूपारा नारायणपुर में 45 लाख, 39 हजार की लागत से 10 दुकान तथा अन्य कार्य हेतु निविदा आमंत्रित किए जाने के साथ ही 1 लाख 81हजार की लागत से नवीन मंडी प्रांगण नारायणपुर में भवन छत प्लास्टर मरम्मत आदि के काम के लिए निविदा आमंत्रित की गई। निविदा प्रपत्र विक्रय करने के लिए पूर्व में 2 अगस्त 2022 की तिथि निर्धारित की गई थी लेकिन इसे संशोधित कर 8 अगस्त तक के लिए बढ़ाया गया। लिपिकीय त्रुटि/ अपरिहार्य कारणों से संशोधन करने का इश्तहार जारी किया गया। चर्चा है कि यह लिपिकीय त्रुटि है या कुछ खास अपरिहार्य कारण से ऐसा हुआ है? तिथि बढ़ाये जाने के बाद भी यह शिकायत सामने आ रही है कि इच्छुक ठेकेदारों को निविदा प्रपत्र से वंचित करने के बहाने तैयार किये जा रहे हैं ताकि निविदा में प्रतिस्पर्धा न हो और चारामा व केशकाल वाले खेल का मैदान तैयार किया जा सके।
इसके पहले मंडी बोर्ड की टेंडर प्रक्रिया की पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले एक ऑडियो ने तहलका मचा दिया था कि मंडी बोर्ड के निर्माण कार्य में निविदा प्रक्रिया को प्रभावित कर दलाल किस तरह सरकारी खजाने में सेंध लगा रहे हैं। चर्चित आडियो में एक तथाकथित ठेकेदार मंडी बोर्ड के निर्माण कार्य में स्वतंत्र रूप से निविदा जमा करने पर एक निविदाकार को मिलकर काम करने के लिए कथित तौर पर दबाव पूर्वक आग्रह कर रहा था। बताया जा रहा है कि यह आडियो चारामा और केशकाल से लेकर मंडी बोर्ड के गलियारों और ठेकेदारों के बीच चर्चा का विषय बन गया था। उस कथितऑडियो में दो लोगों के बीच हुए संवाद से यह सवाल पैदा हुआ कि क्या मंडी बोर्ड में इस तरह रिंग बनाकर निविदा प्रक्रिया प्रभावित की जा रही है? क्या स्पर्धा रोकने का यह प्रयास इसलिए हो रहा है कि अधिक दर पर काम लिया जा सके और सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा सके? जानकारों का कहना है कि यह सामान्य सी बात है कि जब किसी निर्माण कार्य की निविदा रिंग बनाकर प्रभावित की जायेगी तो स्पर्धा के अभाव में ऊंची बोली भी नीची जान पड़ेगी। ऐसी स्थिति में निविदा न्यूनतम दर की अनिवार्यता पूरी करती तो दिखेगी लेकिन असल में ऐसा है नहीं। सरकार के खजाने में सेंध लगाने के लिए ही इस तरह रिंग बनाये जाते हैं। जानकारों का कहना है कि स्थानीय ठेकेदार और दलाल मिलकर रिंग बनाते हैं और बाहरी ठेकेदारों को तरह तरह से प्रभावित करते हैं ताकि निर्माण कार्यों का ठेका मिलीभगत से लिया जा सके और सरकार के खजाने को लूटा जा सके।