मां’ की भूमिका में मुख्यमंत्री के सपने को साकार कर रही हैं डीईओ

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  • कोरोना के चलते बेसहारा हुए बच्चों के लिए मसीहा बन गईं जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान
  • छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप किया है बच्चों की शिक्षा दीक्षा का प्रबंध

अर्जुन झा

जगदलपुर. बस्तर की जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान उन दर्जनों अभागे बच्चों के लिए वात्सल्यमयी मां की भूमिका निभा रही हैं, जिनके सिर से कोरोना महामारी ने मां या बाप का साया उठा लिया है। ऐसे हतभागी बच्चों पर भारती प्रधान ममत्व उंडेलने में कोई कसर बाकी नहीं रख रही हैं. श्रीमती प्रधान इन बच्चों की शिक्षा दीक्षा व अन्य जरूरतों की पूर्ति के समुचित प्रबंध कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सपने को धरातल पर साकार करने में भी अहम भूमिका निभा रही हैं. दुर्भाग्य की बात है कि बेसहारा बच्चों की निस्वार्थ सेवा जतन में जुटी यह ममतामयी मां आज भाजपा व कांग्रेस के कुछ स्वार्थी नेताओं की क्षुद्र राजनीति का शिकार बन गई हैं। यह घटिया राजनीति अब बेसहारा बच्चों की जिंदगी और भविष्य से खिलवाड़ करने पर आमादा हो गई है।
डेढ़ – दो साल पहले कोरोना महामारी ने समूची दुनिया में कहर बरपा रखी थी। लोग इस संकट से तेजी के साथ उबरने लगे हैं। बस्तर में पचासों लोग कोरोना से प्रभावित होकर जान गंवा चुके हैं। इस महामारी ने दर्जनों बच्चों के सिर से माता – पिता का साया उठा लिया। किसी मासूम को मां के प्यार से वंचित होना पड़ा, तो किसी मासूम को पिता के दुलार से सदा सदा के लिए मोहताज होना पड़ गया है। कई बच्चे तो माता – पिता दोनों को खो चुके हैं। ऐसे बदनसीब बच्चों के लिए बस्तर की जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान मसीहा बनकर सामने आईं। श्रीमती प्रधान ने इन बच्चों के लिए मां की भूमिका निभाने के संकल्प के साथ अपने कदम आगे बढ़ाए। उनके नेक कदमों को गति प्रदान की छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा ऐसे अभागे बच्चों के हितार्थ शुरू की गई महतारी दुलार योजना ने। इस योजना के तहत माता या पिता अथवा दोनों को खो चुके बच्चों की पढ़ाई लिखाई, खानपान की व्यवस्था शासन द्वारा की जाती है। जिला शिक्षा अधिकारी के मिशन को आगे बढ़ाने में महतारी दुलार योजना बड़ी ही सहायक बन रही है। जिला शिक्षा अधिकारी श्रीमती प्रधान ने महतारी दुलार योजना को मूर्तरूप देते हुए शिक्षकों, मातहत अधिकारियों और ग्रामीण जनप्रतिनिधियों की मदद से कोरोना काल में बेसहारा हुए बच्चों को ढूंढ – ढूंढ कर उनकी पढ़ाई लिखाई व खानपान की व्यवस्था सुनिश्चित की। श्रीमती प्रधान अब तक करीब पचास बच्चों के लिए शिक्षा व उनकी अन्य जरूरतों की पूर्ति की व्यवस्था कर चुकी हैं। वे इन बच्चों का पूरा ध्यान रखती हैं, समय समय पर उनसे मुलाकात कर उनका मनोबल बढ़ाती रहती हैं। श्रीमती प्रधान इस बात का पूरा ख्याल रखती हैं कि इन बच्चों को उस बुरे दिन की याद किसी भी सूरत में ना आने पाए, जिस दिन उनके माता – पिता उन्हें बेसहारा छोड़कर इस दुनिया से विदा हो गए थे। डीईओ श्रीमती प्रधान के वात्सल्य का ही सुफल है कि आज ये बच्चे सबकुछ भुलाकर अपना भविष्य गढ़ने में पूरी तन्मयता के साथ लगे हुए हैं। जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सपने को धरातल पर सचमुच हकीकत में तब्दील कर दिखाया है। लेकिन यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि लगभग पचास बेसहारा बच्चों की मां की भूमिका निस्वार्थ भाव से निभा रहीं जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान को कांग्रेस और भाजपा के कुछ स्वार्थी नेताओं की क्षुद्र राजनीति की भेंट चढ़ा दिया गया है। शिक्षकों की पदोन्नति और पदस्थापना व तबादले के नाम पर इन नेताओं ने शिक्षकों से जमकर वसूली की और जिला शिक्षा अधिकारी पर दबाव डालकर अपने चहेते शिक्षकों को उपकृत करवा लिया। अब जिला शिक्षा अधिकारी के सारे अधिकार छीनकर जिला पंचायत के सीईओ को दे दिए। आज श्रीमती पूरी तरह से अधिकार विहीन कर दी गई हैं। अब वे चाहकर भी कोरोना की त्रासदी से धीरे -धीरे उबर रहे बच्चों की वैसी मदद नहीं कर पा रही हैं, जैसी पहले करती रही हैं।
बच्चों को अब संसदीय सचिव जैन से उम्मीद
जिला शिक्षा अधिकारी के खिलाफ की गई एकतरफा कार्रवाई ने बच्चों को फिर से निराशा और हताशा के गर्त में धकेल दिया है। जन्म देने वाली मां तो इन बच्चों को बिलखता छोड़ दुनिया छोड़ चली गई है। उन्हें जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान के रूप में मिली दूसरी मां के वात्सल्य से भी वंचित कर दिया गया है। अब इन बच्चों की उम्मीदें जगदलपुर के विधायक एवं संसदीय सचिव रेखचंद जैन पर टिकी हुई हैं. उल्लेखनीय है कि श्री जैन ने इस साल इन बच्चों के साथ दिवाली मनाकर उनकी झोली खुशियों से भर दी थी। तब श्री जैन ने इन बच्चों को भरोसा दिलाया था कि आज से मैं आप सभी का अभिभावक हूं, आपकी हर तकलीफ में आपके साथ खड़ा मिलूंगा। बच्चे चाहते हैं कि उन्हें उनकी भारती मां का प्यार दुलार फिर से उसी तरह मिले, जैसे पहले मिला करता था।