ऐसी आंगनबाड़ी में कैसे खिल और मुस्कुरा पाएंगे फूल ?

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  • धवड़ाकोट आंगनबाड़ी केंद्र का हाल बेहाल
  • जर्जर भवन में बिठाया और पढ़ाया जा रहा है नौनिहिलों को
  • शौचालय की शीट में ठूंस दी गई है बोरी, टूटी पड़ी है फिसलपट्टी
  • शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं, बाउंड्रीवाल भी नहीं है केंद्र में

अर्जुन झा

बकावंड। बच्चों को सुपोषित बनाने के लिए संचालित आंगनबाड़ी केंद्र अगर स्वयं बदहाली से जूझ रहा हो तो, वहां बच्चों के हितों की रक्षा की उम्मीद रखना बेमानी है। ऐसी आंगनबाड़ी में फूल जैसे बच्चे भला कैसे खिल और मुस्कुरा पाएंगे? ग्राम धवड़ाकोट के आंगनबाड़ी केंद्र का कुछ ऐसा ही हाल है। एकीकृत बाल विकास परियोजना बकावंड द्वारा धवड़ाकोट गांव में आंगनबाड़ी केंद्र जर्जर भवन में संचालित किया जा रहा है। बच्चों के लिए शौचालय और बाथरूम तो बनाए गए हैं, मगर शौचालय की शीट में बोरी ठूंस दी गई है, बाथरूम बदहाल है। पीने के लिए शुद्ध पानी का इंतजाम नहीं है। आंगनबाड़ी भवन की दीवारों में दरारें पड़ गई हैं, नींव दरकने लगी है। नींव के पास लंबा और गहरा गड्ढा हो गया है। कभी भी बड़ी अनहोनी हो सकती है। आंगनबाड़ी केंद्र परिसर में झाड़ियां और घासफूस उग आई हैं, जहां जहरीले कीड़ों की भरमार है। बच्चों की जान पर हमेशा खतरा बना रहता है। वहीं भवन को बाउंड्रीवॉल से घेरा भी नहीं गया है। बच्चे खेलते खेलते बाहर निकल जाएं तो किसी को पता भी नहीं चल पाएगा। कुल मिलाकर यह आंगनबाड़ी केंद्र बच्चों को सुपोषित बनाने तथा उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास में जरा भी सहायक साबित नहीं हो पा रहा है।

खुद कुपोषित है यह किचन
आंगनबाड़ी केंद्र में एक अदद रसोई घर भी नहीं है। फटी – पुरानी साड़ियों, पेड़ों की डालियों आदि से छोटी सी झोपड़ी खड़ी कर उसे किचन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। ऊपर से कचरा झरता रहता है। बाहर से उठती धूल कथित किचन में घुसती रहती है। खुद कुपोषित नजर आने वाले ऐसे किचन में बच्चों के लिए बनने वाला आहार किस हद तक पौष्टिक रहता होगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

हादसे को दावत देता टैंक
आंगनबाड़ी केंद्र के दरवाजे के सामने तथा केंद्र के तथाकथित किचन से लगकर एक गहरा टैंक स्थित है। टैंक को कवर नहीं किया गया है। यह खुला टैंक इतना बड़ा और गहरा है कि उसमें दो वयस्क लोग आसानी से समा सकते हैं। बारिश के दिनों में इस टैंक में लबालब पानी भरा रहता है, जो बारिश का सीजन खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक टैंक में काफी पानी जमा रहता है। इस गंदे और बदबूदार पानी में मच्छर पनपते रहते हैं। दिन के उजाले में भी ये मच्छर बच्चों को काटते हैं। वैसे भी बस्तर को मलेरिया के मामले में बेहद संवेदनशील माना जाता है। यह टैंक बच्चों के लिए दोहरा खतरा बना हुआ है।
ऐसी दास्तां अकेले धवड़ाकोट के आंगनबाड़ी केंद्र की ही नहीं है, बल्कि बकावंड ब्लॉक के अमूमन हर आंगनबाड़ी केंद्र का भी हाल कुछ ऐसा ही है। किसी केंद्र का भवन जर्जर है, तो कहीं पानी की सुविधा नहीं है। तो कही शौचालय का आभाव है। कई आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए अब तक भवन भी नहीं बन पाए हैं। कुल मिलाकर नौनिहालों के जीवन के साथ खिड़वाला ही किया जा रहा है ।