भानुप्रतापपुर में राजनीतिक आपदा के बीच अवसर तलाशे भाजपा

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(अर्जुन झा)

जगदलपुर। बस्तर संभाग के कांकेर जिले की भानुप्रतापपुर सीट का उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए वह मौका लेकर आया है, जब वह बस्तर में शून्य से बाहर निकल कर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए ऊर्जा एकत्र कर सकती है लेकिन उपचुनाव के बीच भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम के विरुद्ध सामने आए दुराचार के आरोप ने भाजपा की आंखों में अंधेरा छा दिया है। उसके आक्रामक प्रचार ने सुरक्षात्मक मोड़ ले लिया है। भाजपा को इस आरोप से घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आरोप तो आरोप होता है। जब तक वह प्रमाणित न हो, किसी भी स्तर पर उसे दोषी नहीं माना जा सकता। तो, भाजपा को किसी झिझक में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है। जो आरोप भाजपा प्रत्याशी पर लगाया गया है, उसका भानुप्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं पर कितना असर पड़ा है, भाजपा को इसकी पतासाजी करनी चाहिए। वैसे वह अपने प्रत्याशी के बचाव में आदिवासी के सम्मान का उल्लेख कर रही है। भानुप्रतापपुर सीट आदिवासी वर्ग के लिए सुरक्षित है तो जाहिर है कि सभी प्रत्याशी आदिवासी ही हैं। ऐसे में भाजपा को इसका गहन अध्ययन करना होगा कि आदिवासी मतदाता इस आरोप को महज आरोप के रूप में ले रहा है अथवा कांग्रेस की बातों पर आंख मूंदकर भरोसा कर रहा है? चुनाव काल मे राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप कोई अहमियत नहीं रखते। इतिहास गवाह है कि राजनांदगांव लोकसभा सीट के उपचुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की गिरफ्तारी ने देवव्रत सिंह को संसद भेज दिया था। इसी तरह 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले सीडी कांड में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल की गिरफ्तारी ने कांग्रेस के पक्ष में मौसम बदल दिया था। तब भूपेश बघेल पर अश्लील सीडी मामले में आरोप लगा था, वे जेल गए थे लेकिन क्या कांग्रेस ने हथियार डाले थे? बिल्कुल नहीं। बल्कि कांग्रेस के लिए वह जुझारूपन जीत का तोहफा लेकर आया। कांग्रेस के कार्यकर्ता आवेश में आ गए थे और उनके जोश ने भाजपा के होश ठिकाने लगा दिए थे। अब ऐसा ही एक चुनौती भरा अवसर अब भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा के सामने आया है। कांग्रेस द्वारा भाजपा के ब्रम्हानंद को दुराचारी ठहराया जा रहा है। मुख्यमंत्री से लेकर कांग्रेस के तमाम नेता यही कह रहे हैं। जवाब में भाजपा सीडी कांड की याद दिला रही है। तब बेहतर है कि भाजपा स्वयं याद करे कि कांग्रेस ने उस वक्त की चुनौती को किस प्रकार अपने पक्ष में भुना लिया था। अब भाजपा के सामने चुनौती है कि वह राजनीतिक आपदा में अवसर कैसे उत्पन्न कर सकती है। भाजपा के नए प्रदेश प्रभारी ओम माथुर कह रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं है। शायद उनका यह विचार अगले साल होने वाले चुनाव के संदर्भ में है लेकिन अभी जो चुनौती भानुप्रतापपुर में है, उससे तो बस्तर की जिम्मेदारी से जुड़े नेताओं को ही जूझना है। तब यह जरूरी है कि बड़े नेताओं की फौज की बजाय भानुप्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय नेताओं को डेमेज कंट्रोल की जिम्मेदारी सौंप दी जाए। केंद्र सरकार के काम पर फोकस किया जाए। आदिवासी अस्मिता पर बात की जाए। कांग्रेस के राज में जो काम नहीं हुए, उन्हें हर एक मतदाता तक पहुंचाया जाए। डरने की जरूरत नहीं है। डर के भागे तो हार को कोई टाल नहीं सकता। मजबूती से लड़े तो रात कितनी भी काली हो, वह सुबह का आधार अवश्य बनती है। राजनीति में हर नीति यह तलाशती है कि कठिन से कठिन चुनौती से पार कैसे निकला जाए। भाजपा को मजबूत इरादे दिखाने होंगे। विपदा में अवसर होते हैं। भाजपा के पास अब भी अवसर है कि वह स्थानीय मंजे हुए नेताओं को चुनावी प्रबंधन में उतार दे।