बस्तर में अंतर्कलह की आग में झुलस गई है भाजपा

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  • स्थानीय नेताओं की कार्यशैली से नाराज हैं पार्टी के आम कार्यकर्ता
  • कश्यप बंधुओं के रवैये ने फेर दिया सारे किए धरे पर पानी

अर्जुन झा

जगदलपुर बस्तर संभाग में पूरी तरह उजड़ जाने के बाद भाजपा अंदरूनी कलह की आग से बुरी तरह झुलस चुकी है। पार्टी के आम जमीनी कार्यकर्ता और दर्जनों वरिष्ठ नेता यहां के चंद बड़े नेताओं की कार्यशैली से बेहद नाराज हैं। आलम यह है कि पार्टी के संभाग प्रभारी का दायित्व सम्हालने से भी भाजपा के बड़े नेता कतराने लगे हैं। एक सांसद संतोष पाण्डेय ही हैं, जो संभाग प्रभारी बनने के बाद से जैसे तैसे इस आग को बुझाने का प्रयास कर रहे हैं। वह भी एक दौर था, जब बस्तर में भाजपा की जड़ें काफी मजबूत हो गई थीं। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने में बस्तर के कार्यकर्ताओं का अहम योगदान रहा। संभाग के गांव – गांव में भाजपा की फौज तैयार हो गई थीं। यहां से एक बड़े नेता केदार कश्यप को डॉ. रमन सिंह की सरकार में केबिनेट मंत्री बनाया गया था। अब इन्हीं कश्यप को पार्टी का प्रदेश महामंत्री बना दिया गया है। संभाग में भाजपा के पतन का दौर केदार कश्यप को मंत्री बनाए जाने के साल भर बाद ही शुरू हो गया था। कश्यप ने एक मंत्री के तौर पर बस्तर के हित में तो सराहनीय कार्य किए, मगर कार्यकर्ताओं को खुश रखने में वे जरा भी कामयाब नहीं हो सके। मंत्री बनने के बाद उनका रवैया कार्यकर्ताओं के प्रति बेहद निराशाजनक रहा। कार्यकर्ता धीरे धीरे पार्टी से बिदकने लगे और आज स्थिति ऐसी है कि समर्पित भाव से पार्टी का झंडा उठाने वालों की संख्या काफी घट गई है। ऐसा भी नहीं है कि सारे कार्यकर्त्ता और नेता पार्टी से दूर हो चले हैं। वे आज भी भाजपा से जुड़े हुए हैं, लेकिन बेमन से। केदार कश्यप के अलावा उनके भाई दिनेश कश्यप ने भी बस्तर संभाग में पार्टी के सांगठनिक विस्तार के लिए शुरुआती दौर में अच्छा काम किया, लेकिन बाद में उनके रवैये में आए बदलाव ने सारे किए धरे पर पानी फेर दिया। कश्यप बंधुओं ने पहले पहल पार्टी हित में अच्छी मेहनत जरूर की, लेकिन कार्यकर्ताओं और स्थानीय बड़े नेताओं को संतुष्ट तथा जोड़े रखने में वे बुरी तरह नाकाम साबित हुए। उनके व्यवहार के कारण ही आज भाजपा यहां पतन के गर्त में जा चुकी है।

बीजेपी का प्रभारी बनने से भी परहेज

राजनीतिक पंडितों की मानें तो आज आलम यह है भाजपा का बस्तर संभाग व जिला प्रभारी बनने से भी बाहर के नेता परहेज करने लगे हैं। बस्तर की मनोरम वादियां देश विदेश के लोगों को आकर्षित करती और अपने दामन में पनाह देने के लिए बुलाती हैं, मगर भाजपा के बाहरी नेता सांगठनिक कार्यों के सिलसिले में बस्तर की जिम्मेदारी सम्हालने से दूर भागते हैं। भाजपा का बस्तर संभाग प्रभारी जैसी महति जिम्मेदारी उठाने के लिए भी कोई राजी नही होता। एक संतोष पांडेय ही हैं, जो राजनांदगांव की सांसदी सम्हालते हुए बड़ी मुश्किल से बस्तर संभाग का प्रभारी बनने को राजी हुए हैं। श्री पाण्डेय अपने संसदीय क्षेत्र राजनांदगांव की जिम्मेदारी तो कुशलता पूर्वक सम्हाल ही रहे हैं, बस्तर भाजपा में लगी अंदरूनी कलह की आग को भी बुझाने का जतन कर रहे हैं। वे इसी सिलसिले में अक्सर संभाग के दौरे पर आते रहते हैं। पाण्डेय नाराज चल रहे कार्यकर्ताओं को मनाने के साथ ही संभाग में दरक चुकी भाजपा की बुनियाद को दुरुस्त करते हुए आम नागरिकों को भाजपा से जोड़ने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। पार्टी के छत्तीसगढ़ प्रभारी ओमप्रकाश माथुर बेहद कड़क मिजाज नेता माने जाते हैं। माथुर के साथ बस्तर दौरे पर आने के लिए संगठन के बड़े नेता इसलिए राजी नहीं हुए, क्योंकि वे यहां के चंद नेताओं की रग रग और उनकी कार्यशैली से वाकिफ हैं। केवल सांसद एवं पार्टी के संभाग प्रभारी संतोष पाण्डेय ही माथुर के साथ बस्तर दौरे पर आने के लिए राजी हुए। पार्टी के बड़े नेताओं एवं राज्य स्तर के पदाधिकारियों ने पार्टी के छ्ग प्रभारी ओम प्रकाश माथुर के साथ बस्तर दौरे से कन्नी काट ली। ऐसे बड़े नेताओं का कहना है कि बस्तर के एक पूर्व मंत्री ऒर उनकी बिरादरी के कार्यकलापों से कोई खुश नहीं है। संगठन के बड़े नेता बस्तर के इन बंधुओं से अब मुक्ति भी चाहने लगे हैं। ऐसे में माना जा जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व अब देर सबेर ही सही इन बंधुओं पर कोई ठोस निर्णय जरूर लेगा। जानकारी मिली है कि बस्तर दौरे पर आए भाजपा प्रभारी ओमप्रकाश माथुर भी इन दोनों नेताओं के बारे में निगेटिव रिपोर्ट लेकर यहां से गए हैं। कहा जाता है कि श्री माथुर की रिपोर्ट को भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पत्थर की लकीर मानकर चलता है। ऐसे में माना जा रहा है कि बस्तर में भाजपा के लिए उम्मीद की किरण जगाने के लिए बंधुओं को संगठन से दूर जरूर किया जाएगा।

नंदकुमार साय के कांग्रेस में आने का दूरगामी असर होगा

छत्तीसगढ़ में भाजपा की नींव रखने वाले नेताओं में शुमार वरिष्ठ नेता नंद कुमार साय के इस्तीफे का दूरगामी असर पड़ेगा। साय अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद तथा पार्टी के अहम पदों पर रह चुके हैं। नंद कुमार साय आदिवासी समुदाय से आते हैं। उन्होंने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे कर कांग्रेस प्रवेश किया है। नंद कुमार साय का कहना है कि मैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आदर्शो पर चलते आ रहा था। उन्होंने ही मुझे राजनीति सिखाई और राजनीति में आगे बढ़ाया। श्री वाजपेयी राष्ट्रभक्त और दूरदर्शी सोच रखने वाले जननेता थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों का गठन किया। तब छत्तीसगढ़ राज्य की विधानसभा में भाजपा के पास बहुमत नहीं था। ऐसे में कांग्रेस के अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनाए गए और मुझे वर्तमान के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी। मैंने अजीत जोगी के खिलाफ मोर्चा खोले रखा। प्रदर्शन किए उस समय दबाव की राजनीति थी। प्रदर्शन के दौरान मेरे पैर को भी तोड़ा गया, लाठीचार्ज हुआ। उसके बाद भी मैं डगमगाया नहीं। श्री साय ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में पहुंचाना ही मेरा लक्ष्य था। 2003 के चुनाव में मुझे अजीत जोगी के खिलाफ मरवाही विधानसभा क्षेत्र से टिकट दे दिया गया। जबकि मैं लगातार कह रहा था कि मैं मरवाही जीत नहीं पाऊंगा, मुझे तपकरा विधानसभा की सीट से टिकट दिया जाए, लेकिन मेरी एक न सुन तपकरा सीट से मेरा टिकट काट दिया गया। मरवाही में मेरी हार हुई। मेरे मान सम्मान को लगातार ठेस पहुंचाई गई। लगातार आज 20 वर्षों के बाद भी भारतीय जनता पार्टी प्रदेश इकाई द्वारा मेरी अनदेखी ही की गई। अंततः दुखी होकर मुझे इस्तीफा देना पड़ा। श्री साय आदिवासी हैं और बस्तर संभाग आदिवासी बहुल है। एक आदिवासी नेता के भाजपा से छिटक जाने से बस्तर का आदिवासी समुदाय विचलित है और भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।