भाजपा ने राह दिखाई कांग्रेसियों पर आफत आई
अर्जुन झा
जगदलपुर छत्तीसगढ़ में ईडी के साइड इफेक्ट बस्तर से लेकर रायपुर और झारखंड तक दिखाई दे रहे हैं। असर तो उड़ीसा तक है क्योंकि कथित शराब घोटाले के बाद से बस्तर में शराब के लाले पड़ गए हैं। ढंग की शराब मिल नहीं रही है। जो मिल रही है, उसके बारे में मदिरा सेवन करने वालों के मुताबिक करंट नहीं है। यानी घटिया शराब सरकारी दुकानों से बिक रही है। छत्तीसगढ़ में शराब की क्वालिटी को लेकर शिकायत बहुत समय से आ रही है। विधानसभा में भी इस पर कई बार बहस हो चुकी है। एक जिले की दुकान से दूसरे जिले में आपूर्ति को लेकर भी मामला उठ चुका है। शराब की टेस्टिंग पर भी बहस होती है लेकिन न तो शराब की क्वालिटी से उपभोक्ताओं को संतुष्टि मिल रही और न ही उनकी शिकायतों का समाधान निकला। शराब के कारोबार में आबकारी विभाग के कर्ताधर्ता कारोबारियों के साथ मिलकर कैसा गोरखधंधा चलाते हैं, उसकी बानगी पहले भी मिल चुकी है और अब भी सरकार की शराब मार्केटिंग कंपनी के एमडी के यहां पड़े ईडी के छापे से भी सामने आई है। बस्तर के मदिरा उपभोक्ता उड़ीसा और अन्य पड़ोसी राज्यों से अपनी पसंद की शराब का इंतजाम कर रहे हैं तो जो राजस्व छत्तीसगढ़ सरकार को मिलना चाहिए, वह अन्य राज्यों में जा रहा है। शराब के कारोबार में सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाने का हुनर तब भी दिखाया जाता था, जब सरकार ने दुकान नहीं सजाई थी। अब भी यही हो रहा है। आबकारी अफसरों और शराब कारोबारियों के यहां ईडी के छापे इसी सिलसिले में पड़े हैं। यहां याद किया जा सकता है कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के समय नौ साल तक संविदा पर आबकारी विभाग के ओएसडी रहे समुंद सिंह के यहां तब ईओडब्ल्यू का छापा पड़ा, जब राज्य में कांग्रेस सत्ता में आई। उनके यहां भारी बेहिसाब संपत्ति का पता चलना सुर्खियों में रहा। छापेमारी के बाद समुंद सिंह लंबे समय तक लापता रहे लेकिन आखिरकार उन्हें दबोच लिया गया। अभी मदिरा मार्केटिंग कंपनी के एमडी के यहां ईडी का छापा मारा गया और उन्हें कई बार पूछताछ के लिए बुलाया गया तो शराब विक्रय का काम प्रभावित होने लगा। सरकार ने उन्हें छुट्टी पर भेजकर वैकल्पिक व्यवस्था कर दी। अब शराब कारोबारियों के यहां पड़े छापे के दौरान रायपुर महापौर के भाई अनवर ढेबर के यहां भी छापा मारा गया था। ईडी ने अब उन्हें गिरफ्तार कर लिया है और अदालत ने उनसे पूछताछ के लिए 4 दिन की रिमांड दी है। रायपुर महापौर से भी पूछताछ हो रही है। उनका आरोप है कि बेवजह परेशान किया जा रहा है। इसे छापे का पॉलिटिकल साइड इफेक्ट कहा जा सकता है। अब इस मामले में अतीत की तरफ देखें तो फेक्ट यह है कि भाजपा की रमन सरकार के समय उनके मंत्री की पहल पर शराब विक्रय का सरकारीकरण हुआ। ठेका प्रथा बंद कर सरकार मार्केटिंग कंपनी बनाकर शराब सीधे तौर पर बेचने लगी। उस समय जो कुछ हुआ, उसके लिए ईडी अब की तरह छापे मारने नहीं आई। जो रास्ता पिछली सरकार ने खोला था, कांग्रेस की सरकार उसी पर चल पड़ी। नतीजा यह है कि कांग्रेसियों के सिर पर ईडी की तलवार लटक रही है। क्या पता, कब और किस कांग्रेसी की बारी आ जाये। अब सवाल यह भी उपज रहा है कि ईडी अपनी जांच के दायरे को पिछली सरकार के समय तक क्यों नहीं ले जा रही और कांग्रेस भी इस मुद्दे पर चुनौती क्यों नहीं दे रही।