जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर संभाग की ऐतिहासिक दशहरा पर्व की मुख्य रस्म भीतर रैनी व बाहर रैनी पर्व की जिम्मेदारी निभाने वाले किलेपाल परगना के माड़िया जनजाति के लोगों को प्रशासनिक अधिकारियों की बदइंतजामी का शिकार होना पड़ा गया।जिसके कारण भीतर रैनी के दिन वह बैरंग लौटने की तैयारी में थे |
सदियों से चली आ रही बस्तर की परंपरानुसार किलेपाल परगना से बडी संख्या में लोग रथ खींचने जगदलपुर आते हैं और इस वर्ष भी प्रशासन द्वारा कोविड-19 को देखते हुए 500 की संख्या में उनको लाकर बस्तर बाड़े में ठहराया गया था। ग्रामीणों के रहने-खाने व अन्य सुविधाओं के लिए बस्तर जिले के जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी व एसडीएम जी.आर.मरकाम को जिम्मेदारी दी गई थी।
किंतु किलेपाल परगना के माड़िया 500 की संख्या में जब बीपीएस बाड़ा पहुँचे तब उन्हें वहां जिला प्रशासन का कोई भी जिम्मेदार नही मिला और ना ही उनके लिए राशन की व्यवस्था की गई थी जिससे नाराज मजबूर आदिवासी 3 किलोमीटर दूर जगदलपुर शहर आकर अपने पैसे से राशन खरीद खाने को मजबूर नजर आए समय पर व्यवस्था नहीं होने पर ग्रामीण नाराज हो गए। बिना रथ खींचकर वह वापस जाने की तैयारी कर रहे थे।
सांसद दीपक बैज को जानकारी लगते ही संभाली कमान
इस अव्यवस्था की जानकारी व ग्रामवासियों के लामबंद होने की जानकारी जब बस्तर सांसद व दशहरा समीति अध्यक्ष दीपक बैज को हुई तो नाराज़ ग्रामीणों को समझाने उनके बीच बस्तर परिवहन संघ कार्यालय जाकर तत्काल 10 कुंटल लकड़ी,ग्रामीणों को टीशर्ट, राशन व्यवस्था करवाकर खुद ही उनके लिए भोजन बनाते नजर आने लगे। वही खुद भी उनके साथ भोजन का आंनद लिया।
सांसद दीपक बैज को किलेपाल के ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें तीन दिनों से लाया गया किंतु खाने_पीने के लाले पड़ गए थे जिससे जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही स्पष्ट तौर पर सामने आई।किलेपाल क्षेत्र के ग्रामीण पहली बार इस तरह स्वयं सांसद को अपने बीच देखकर समस्या का समाधान करने को लेकर खुशी जाहिर की .
बस्तर के आदिवासी परिजन के साथ पहुंचते है रथ खींचने
बस्तर दशहरा पर्व में हर साल किलेपाल क्षेत्र के अलग – अलग गांवों के ग्रामीण रथ खींचने परिवार के साथ पहुंचते थे . इस साल कोरोना महामारी के कारण ऐसा नहीं हो पाया . दशहरा समिति ने रथ खीचने वाले ग्रामीणों को चिहिनत कर लाया गया है.जबकि इसके पहले तक ग्रामीण स्वयं खाना बनाने के लिए लकड़ी व बर्तन आदि लेकर पहुंचते थे और बस्तर हाईस्कूल , फॉरेस्ट ऑफिस , माडिया डेरा व कलेक्टोरेट परिसर में ठहरते थे