- भाजपा के कुछ पुराने नेता अपनी विरासत संतान को दिलाने कर रहे हैं लॉबिंग
- जातीय गणित नहीं, विजयी प्रत्याशी करा सकते हैं सत्ता में भाजपा की वापसी
रायपुर छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तैयारी में भाजपा और कांग्रेस पूरी मुस्तैदी से जुट गईं हैं। एक ओर भाजपा ने तत्परता दिखाते हुए 21 प्रत्याशियों का एलान कर दिया, वहीं कांग्रेस अभी तक एक भी सूची जारी नहीं कर सकी है। अनुमान है कि इस बार भाजपा नए और विजयी प्रत्याशियों तथा महिला प्रत्याशियों पर दांव खेल रही है। कुछ पुराने नेताओं द्वारा सर्वे के आधार पर विजयी प्रत्याशी को टिकट देने के बदले अपने भविष्य के समीकरण के लिए लॉबिंग की जा रही है। यह वर्तमान परिस्थिति में भाजपा के लिए घातक साबित हो सकता है। पिछले चुनाव में भी भाजपा ने ऐसी ही गलती की थी और उसका दुष्परिणाम अप्रत्याशित रूप से पार्टी को झेलना पड़ा था। 15 साल तक सत्ता में रही भाजपा क्लीन स्वीप हो गई।इसका प्रमुख कारण प्रत्याशियों का गलत चयन ही था।
भाजपा फिर से अपने पुराने नेताओं की इस गलती को भाजपा न दोहराए, वरना परिणाम और भी खराब हो सकते हैं। हाल ही में केंद्र की भाजपा सरकार ने विधानसभा एवं लोकसभा महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया, जिसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी है। अब देखना यह होगा कि क्या भाजपा अगले माह तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कितनी महिलाओं को टिकट देती है? छत्तीसगढ़ की कुछ विधानसभा सीटों में महिलाओं का सीधा प्रभाव जनता के बीच है। इस बार भी जनता उन्हें प्रत्याशी के रूप में देखना चाहती है। यदि उन महिलाओं को टिकट मिलता है, तो वे बड़ी जीत दर्ज करा सकती हैं। वहीं भाजपा के कुछ पुराने व बड़े नेता अपने उत्तराधिकारियों का भविष्य सुरक्षित बनाने के लिए ऐसी सीटों पर लॉबिंग कर रहें हैं। यदि ऐसा होता है तो भाजपा के महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य पर भी बड़ा सवालिया निशान खड़ा होगा साथ ही सीटें भी गंवानी पड़ जाएंगी। प्रदेश में कांग्रेस सरकार के खिलाफ उतनी लहर भी नहीं है। जबकि पिछले चुनाव में भाजपा के विरुद्ध एंटी इनकम्बेंसी जनता के बीच साफ दिखाई देती थी और चुनावी नतीजों ने इसे साबित भी कर दिया था। ऐसे में भाजपा को अपने सर्वे के हिसाब से विजयी प्रत्याशियों के जो नाम निकलकर आए हैं, उन्हें ही टिकट देना चाहिए ना कि पुराने नेताओं की लॉबिंग और जातिगत समीकरण के मद्देनजर। ऐसा होगा तो भाजपा अच्छा प्रदर्शन करते हुए अधिक सीटों पर विजय प्राप्त कर सकती है।
परिवारवाद से रहना होगा मुक्त
इस बार का चुनाव जनता विजयी प्रत्याशियों और काम करने वाले स्वच्छ छवि के प्रत्याशियों को देखना चाहती है, ऐसे में वे जातिगत समीकरण से ऊपर उठकर जन समस्याओं के निराकरण करने और क्षेत्र के विकास के लिए सही व्यक्ति को चुनना चाहती है। चाहे वह किसी भी जाति का या महिला ही क्यों न हो। इसके साथ ही भाजपा में कुछ नेता ऐसे हैं जो अपने व अपने करीबियों के भविष्य और उत्तराधिकारी के भविष्य को सुरक्षित बनाने के भाजपा की जीत का समीकरण बिगाड़ने में लगे हैं। पिछले चुनाव में भाजपा की यही सबसे बड़ी गलती थी। सर्वे के आधार पर और जनता की राय को दरकिनार करते हुए पिछली बार टिकट का वितरण किया गया था, जिसका खामियाजा भाजपा को 14 सीटों पर सिमटकर भुगतना पड़ा। यदि इस बार भी ऐसा ही हुआ, तो पुरानी स्थिति से भी बुरे परिणाम भाजपा को छत्तीसगढ़ में देखने को मिल सकते हैं।
हवा का रुख फिर न बदल जाए
केंद्रीय नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहें हैं। प्रदेश प्रभारी, सहप्रभारी से लेकर केंद्रीय मंत्री व स्टार प्रचारकों का लगातार छत्तीसगढ़ में दौरा चल रहा है। विगत कुछ माह में इसका सकारात्मक परिणाम भी भाजपा के पक्ष में देखने को मिल रहा है। ऐसे में पार्टी को किसी भी तरह का रिस्क लेने से बचना चाहिए और सर्वे के आधार पर विजयी प्रत्यशियों को ही टिकट देना चाहिए न कि जातिगत समीकरण और पुराने नेताओं की लॉबिंग को देखकर अन्यथा एक बार फिर भाजपा को छत्तीसगढ़ में बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ सकता है।