- हार के बाद पार्टी में उपजे हालात पर काबू कर पाना बड़ी चुनौती
- खड़गे ने खेला बड़ा दांव, किए एक तीर से कई शिकार
अर्जुन झा
जगदलपुर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी संगठन में बड़ी सर्जरी कर भले ही एक तीर से कई निशाने साध लिए हों, लेकिन अनेक प्रदेशों में पार्टी के भीतर जो अंतर्कलह मची हुई है, उसकी आग को बुझाने में खड़गे को थोड़ी कड़ी मशक्कत और करनी पड़ेगी। इसी तरह छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के नव नियुक्त प्रभारी सचिन पायलेट के लिए छत्तीसगढ़ में बिगड़े कांग्रेसी प्लेन को सफलता पूर्वक उड़ाना बड़ी चुनौती है। विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने बड़े बदलाव करने शुरू कर दिए हैं। सबसे पहले पार्टी ने छत्तीसगढ़ की प्रभारी कुमारी शैलजा को हटाकर राजस्थान के युवा तुर्क सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंप दी हैे। यह लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी का बड़ा फैसला है। अब सबसे बड़ा यह उभर आया है कि आखिर कुमारी शैलजा को छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी से मुक्त क्यों किया गया? आखिर इसके पीछे क्या वजह रही है ? कहा जा रहा है कि कुमारी शैलजा राज्य में भाजपा की आंधी को रोक पाने में नाकाम रही हैं।छत्तीसगढ़ में कुमारी शैलजा, तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था। राज्य में 71 सीटें रखने वाली कांग्रेस पार्टी को इतनी करारी हार मिली की 9 मंत्री के साथ प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी 15 सीटों से उछाल मारते हुए 54 सीटों पर पहुंच गई। इसलिए कांग्रेस पार्टी अब लोकसभा चुनावों में रिस्क लेना नहीं चाहती है। राजस्थान के बड़े दिग्गज और यूथ के बीच मोस्ट पॉपुलर नेता सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ राज्य की जिम्मेदारी दे दी है। अब पायलट के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्लेन उड़ान भरेगी और पार्टी छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
इन नियुक्तियों के बाद यह देखने के मिला है कि छ्ग और राजस्थान में हुई हार के लिए कांग्रेस ने इन दोनों नेताओं को जिम्मेदार माना है। जिसकी वजह से पार्टी नेतृत्व ने अपने इन दोनों बड़े नेताओं को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया है।राजस्थान कांग्रेस गुटों में बंटी हुई है। एक है गहलोत गुट और दूसरा पायलट गुट। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दोनों गुटों को साधने की कोशिश की है। दोनों ही नेताओं को राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय किया है। सियासी जानकारों का कहना है कि राजस्थान में किसी नए चेहरे को नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता है। सचिन पायलट टोंक सीट से विधायक चुने गए हैं। पायलट का राजस्थान से बाहर जाना उनके समर्थकों के लिए एक बड़ा झटका है। साथ ही राजस्थान में कांग्रेस के लोगों के बीच यह मैसेज भी पहुंचाने की कोशिश की गई है कि गहलोत चुनाव से पहले कांग्रेस में जितने पावरफुल थे, उतने ही पावरफुल वे अब भी हैं।
नेता प्रतिपक्ष की रेस से पायलट आउट
राजस्थान कांग्रेस में अब विधानसभा के लिए नेता प्रतिपक्ष की लड़ाई चल रही थी। सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाए जाने के बाद अब वे इस रेस से बाहर हो गए ऐसे आसार नजर आ रहे हैं। उधर छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार ने सबकों चौंका दिया था। चुनाव परिणाम आने से पहले कहा जा रहा था कि कांग्रेस यहां सरकार बना सकती है, लेकिन पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। हारे हुए प्रत्याशी, बड़े नेता और टिकट से वंचित कर दिए गए कई पूर्व विधायक हार का ठीकरा प्रदेश के बड़े नेताओं पर फोड़ रहे हैं। टिकट से चूके कई पूर्व विधायकों का तो आरोप है कि कांग्रेस द्वारा कराए गए कथित फर्जी सर्वे के आधार पर जिताऊ स्टैंडिंग विधायकों को टिकट से वंचित कर पार्टी की दुर्गति करा दी गई है। अगर टिकट वितरण ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ किया गया होता, तो राज्य में फिर से कांग्रेस सरकार बन जाती। कांग्रेस से कई नेता और पूर्व विधायक इस्तीफा दे चुके हैं और विवाद की स्थिति अभी बनी हुई है। ऐसे में प्रभारी के तौर पर सचिन पायलट के सामने कई चुनौतियां होंगी।
शैलजा के खिलाफ उठी थी आवाज
बता दें कि कुमारी शैलजा छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी रहते कई विवादों में घिरी रहीं। चुनाव से पहले तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और कुमारी शैलजा के बीच अनबन की खबरें आती रहती थीं। एक वक्त तो ऐसा भी आया जब प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम द्वारा की गई नियुक्तियों को कुमारी शैलजा ने एक झटके में रद्द कर दिया था। इसके बाद मोहन मरकाम की जगह बस्तर लोकसभा क्षेत्र के सांसद दीपक बैज को पार्टी की कमान सौंपी गई। वो भी चुनाव के ठीक पहले, लेकिन तब भी कुमारी शैलजा का विवादों से नाता नहीं छूटा। चुनाव के दौरान टिकट वितरण में 22 स्टैंडिंग विधायकों का टिकट काटे जाने पर भी इनमें से अधिकतर विधायकों ने कुमारी शैलजा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।