कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा के बिगड़े बोल; कहा- तीर धनुष लेकर मारो साले पुलिस वालों को

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  • भरी सभा में ग्रामीणों को उकसाते नजर आए
  •  संवैधानिक पद पर बैठे नेता दादी ने लांघी मर्यादा
    -अर्जुन झा-
    जगदलपुर कुछ साल पहले तक कश्मीर में जो होता आया है, शायद वैसा ही कुछ मंजर बस्तर में भी पैदा करना चाहते हैं पूर्व मंत्री कवासी लखमा। सुकमा जिले की कोंटा विधानसभा सीट से विधायक हैं कवासी लखमा को इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बस्तर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। विधायक के संवैधानिक पर रहते हुए भी कवासी लखमा सारी मर्यादाएं लांघते हुए भरी चुनावी सभा में आदिवासियों को पुलिस के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाते नजर आए हैं। उनके ऐसे बिगड़े बोल वाला वीडियो जमकर वायरल हो रहा है।
    कवासी लखमा छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार में आबकारी एवं उद्योग मंत्री रहे हैं। बस्तर संभाग के सुकमा जिले की एकमात्र विधानसभा सीट कोंटा से वे लगातार छठवीं बार विधायक चुनकर आए हैं। छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर विधायकों में उनकी गिनती होती है। बस्तर संभाग की अधिकतर विधानसभा सीटों पर जब कांग्रेस हार गई, तब भी कवासी लखमा के कोंटा का किला ढह नहीं पाया।

इस लोकसभा चुनाव में कवासी लखमा ने एक प्रदेश स्तर के कुछेक बड़े कांग्रेस नेताओं द्वारा चलाए गए विशेष अभियान के तहत अपने सुपुत्र हरीश कवासी को बस्तर सीट से टिकट दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। परिवार वाद के दाग से बचने के लिए कांग्रेस ने हरीश कवासी के बजाय उनके मौजूदा विधायक पिता कवासी लखमा को टिकट दे दिया। लखमा इन दिनों अपने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत से जुटे हुए हैं। इसी सिलसिले में वे सोमवार को बस्तर लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत बीजापुर जिले के ग्राम कुटरू पहुंचे थे। वहां मौजूद 50- 60 ग्रामीणों के बीच अपने संबोधन में कवासी लखमा ने कहा – तोंगपाल में टीना है टीना, वहां पुलिस वाले आए थे, नाप रहे थे, मैने लोगों से कहा कि तीर धनुष निकालकर मारो साले पुलिस वालों को, अगर हमारा जंगल नहीं बचेगा, तो हम आदिवासी कहां बचेंगे, इसलिए सब आगे आओ। इस तरह संवैधानिक पद पर बैठे कवासी लखमा आदिवासियों को हिंसा के लिए खुलेआम उकसाते रहे। इस दौरान कवासी लखमा के साथ बीजापुर के कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी भी मौजूद थे। श्री मंडावी लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए हैं, लेकिन उन्होंने भड़काऊ बातें कहने पर कवासी लखमा को टोकने की जहमत नहीं उठाई। इससे जाहिर होता है कि संवैधानिक मर्यादा से न तो कवासी लखमा को वास्ता है और न ही विधायक विक्रम मंडावी को। बस्तर के सुकमा जिले के तोंगपाल की पहाड़ियों में बाक्साईट की उपलब्धता है। इसी को कवासी लखमा टीना कह रहे थे।
बस्तर को कश्मीर बनाने की मंशा?
कवासी लखमा ठीक उसी अंदाज में आदिवासियों को भड़का रहे थे, जैसा कि जम्मू कश्मीर में अलगाववादी नेता कश्मीरी युवाओं और वहां की अवाम को भड़काते रहे हैं। कश्मीर में ऐसे भड़काऊ भाषणों की वजह से कैसे हालात बन गए थे, पूरी दुनिया को मालूम है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कवासी लखमा बस्तर को भी कश्मीर की तरह सुलगाना चाहते हैं ? इस बात में कोई दो राय नहीं कि आदिवासियों को अपना जंगल, जमीन, जल बचाने का हक है और इन पर उनका पहला अधिकार भी है। मगर हिंसा की राह पर चलकर ऐसा हक पाने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। दूसरा सवाल कांग्रेस पर भी उठता है क्योंकि कांग्रेस खुद को अहिंसा के अग्रदूत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पदचिन्हो पर चलने वाली पार्टी होने का दम भरती है। क्या कवासी लखमा बस्तर को भी कश्मीर जैसी हिंसा की आग में झोंकना चाहते हैं? कवासी लखमा के इस बिगड़े बोल ने भाजपा को बड़ा मौका दे दिया है। निश्चय ही भाजपा इसे लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाएगी। यह भी हो सकता है कि इस मामले को लेकर निर्वाचन आयोग में भी शिकायत की जाएगी। ऐसे में बस्तर और कांकेर लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

ये जाएंगे लोकतंत्र के मंदिर में ?
कवासी लखमा सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर में जाना चाहाते हैं। जगह जगह आमसभाओं में जनता से अपनी जीत के लिए वोट मांग रहे हैं। अब जनता को तय करना चाहिए कि कवासी लखमा ने कुटरू में जो कुछ भी कहा है, क्या वह जायज है? इनके बोल क्या है कानून सम्मत हैं? लोकतंत्र में कानून है, लेकिन कवासी लखमा जनता को उकसा रहे हैं, तीर धनुष लेकर पुलिस को मारने की बात जनता से कर रहे हैं।अब जनता को ही यह तय करना होगा कि कानून के विपरीत जाकर कदम उठाने की बस्तर में अशांति फैलाने की कोशिश कर भाईचारे को समाप्त कर मारने और हत्या करने के लिए जनता को उकसाने वाले नेता को लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में भेजना पसंद करेगी या नहीं?

बहुत रक्तपात झेल चुका है बस्तर
कवासी लखमा वैसे तो हास परिहास और मसखरेपन के लिए जाने जाते हैं। लोगों के बीच बैठकर उन्हीं के रंग में रंग जाना, राह चलते व्यक्ति से बीड़ी मांगकर पीना कवासी लखमा की अलग छवि प्रस्तुत करते रहे हैं। अब तक हम कवासी लखमा को तीज त्यौहारों में आदिवासियों के संग जमकर नाचते कूदते, ढोल -मांदर बजाते, देवी सवार होने पर खुद को कंटीली सांकल से मार मारकर लहूलुहान करते देखते आए हैं। आज वही कवासी लखमा बस्तर की धरती को लहूलुहान करने की बात कैसे करने लगे हैं? यह सब दरअसल सियासी चाल है, खुद को जनहितैषी बताने की, मगर नेताओं और जनप्रतिनिधियों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उनकी बातों पर जनता विश्वास कर लेती है। कवासी लखमा के कहे मुताबिक अगर बस्तर के लोगों ने पुलिस और प्रशासन के खिलाफ हथियार उठाना शुरू कर दिया कर दिया, तो बस्तर का हश्र क्या होगा? यह सोचकर रूह कांप उठती है। वैसे भी नक्सलवाद से जूझ रहा बस्तर बहुत ज्यादा रक्तपात सह चुका है। सैकड़ों माताओं – बहनों की गोद और मांग सूनी हो चुकी है, सैकड़ों बच्चे अनाथ हो चुके है, अनगिनत बुजुर्ग अपने बुढ़ापे का सहारा खो चुके हैं। अब जाकर स्थिति थोड़ी संभली है। क्या कवासी लखमा बस्तर में फिर से वही दौर देखना चाहते हैं? इस बात का जवाब उन्हें देना ही पड़ेगा।