जाएं तो जाएं कहां… दो पाटों के बीच पिस रहे बस्तर संभाग में काम करने वाले ठेकेदार

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अर्जुन झा – जगदलपुर।
बस्तर संभाग में पुलिस द्वारा ठेकेदारों को सुरक्षा के नाम पर परेशान किया जा रहा है। ठेकेदारों को नक्सली मददगार बताकर उनको निशाने पर लेकर परेशान किया जा रहा है। बस्तर विकास के वादों और दावों के बीच हुए क्रमिक विकास को महसूस करते हुए खुली आंखों से देखा जाए तो सरकार की मंशा के अनुरूप न तो पिछली सरकारों के जमाने में अपेक्षाएं पूरी हुईं और न ही मौजूदा सरकार के अब तक के कार्यकाल में वांछित परिणाम सामने आए हैं। शासन और प्रशासन के प्रयासों के बीच सुरक्षा व्यवस्था के लिए जिम्मेदार पुलिस सहित अन्य सभी विभागों के बीच जब तक व्यावहारिक समन्वय स्थापित नहीं होगा, तब तक बस्तर का वांछित विकास अवरुद्ध रहने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। संभाग मुख्यालय से एक नजीर सामने आई है। बस्तर कलेक्टर रजत बंसल ने दरभा के नक्सल प्रभावित इलाके में रात गुजारकर यह उम्मीद जगाई है कि सरकार के ठोस इरादों को जमीन पर साकार करने के लिए प्रशासन मुस्तैद है। बस्तर कलेक्टर ने जिले के आला अफसरों के साथ रात 12 बजे नक्सल प्रभावित क्षेत्र ग्राम मादरकोंटा पहुंचकर अहसास कराने की कोशिश की है कि विकास कार्यों का भौतिक परीक्षण करके, दूर दराज के इलाकों में ग्रामीणों के बीच जाकर ऐसा माहौल तैयार किया जायेगा, जिसमें जनता को यह भरोसा हो कि वाकई विकास होगा। विकास सलीके से होता नजर भी आयेगा।


कलेक्टर रजत बंसल ने सुदूर वनांचल ग्राम मादरकोंटा में पहुंचकर विकास कार्यो की जमिनी हकीकत की पड़ताल की। जिससे शासन की जनकल्याण कारी योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम पंक्ति के लोगों को मिल सके। इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों से चर्चा कर उनकी मांगों एवं समस्याओं के संबंध में जानकारी ली। चौपाल लगाकर मौके पर ही समस्याओं के समाधान की दिशा में प्रयास किया। इस तरह की पहल बस्तर के सातों जिलों में अपेक्षित है। जब पिछली सरकार के जमाने में सुकमा कलेक्टर का नक्सलियों ने अपहरण किया था, उसके बाद प्रशासनिक स्तर पर मैदानी सक्रियता प्रभावित होना स्वाभाविक है। इस शिथिलता के कारण विकास कार्याें का भौतिक परीक्षण भी सवालों के दायरे में आया। जब विकास कार्याें की सतत निगरानी न हो तो विकास कार्य अव्यवस्थित होंगे ही। अब आशा जागी है कि मौजूदा सरकार मैदानी सक्रियता पर खास ध्यान दे रही है तो हालात बदल सकते हैं। लेकिन ऐसा तब तक संभव नहीं है, जब तक कि विकास कार्यों में लगे ठेकेदारों और काम में लगे हर व्यक्ति को भयमुक्त वातावरण में काम करने का अवसर नहीं मिलता। अक्सर शिकायतें सामने आती हैं कि सुरक्षा के नाम पर बस्तर संभाग के ठेकेदारों और काम में लगे लोगों को दोहरी अड़चनों का सामना करना पड़ता है। संवेदनशील इलाकों में नक्सल खतरा तो रहता ही है, सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पुलिस से भी उन्हें अड़चन ही मिलती है। आम तौर पर शिकायत मिल रही है कि विकास कार्यों में लगे वाहन रात में थाने में ले जाकर रखने कहा जाता है। चाहे थाना कार्य स्थल से कितनी भी दूरी पर क्यों न हो। यह भी शिकायत है कि जब से कांकेर इलाके में कुछ लोगों को नक्सल मददगार के रूप में पकड़ा गया है, तब से सारे ठेकेदारों को एक ही नजरिए से देखा जा रहा है। ऐसी स्थिति में विकास कार्याें का बाधित होना तय है। इस स्थिति से बचने का एकमात्र रास्ता वही है जो बस्तर कलेक्टर ने चुना। मैदानी सक्रियता। संभाग मुख्यालय के जिला कलेक्टर की तरह सातों जिलों के पुलिस कप्तान भी अपने सहयोगियों की तरह जनता के बीच सोशल पुलिस की भूमिका निभाएं, विकास कार्यों के मौके पर जाकर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लें, शिकायतों पर कार्रवाई और समस्याओं के समाधान पर ध्यान दें तो शासन की सोच के हिसाब से बस्तर के व्यवस्थित विकास को पंख लग सकते हैं।