सूप बोले तो बोले, चलनी भी बोलने लगी जिसमें हजार छेद

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  •  भाजपाई चोला धारण करते ही बदले मेयर के सुर
  •  पूर्व विधायक रेखचंद पर टिप्पणी कर घिरी महापौर 
    -अर्जुन झा-
    जगदलपुर विधायक रहते हुए जिन रेखचंद जैन की सहमति से सफीरा साहू को महापौर की कुर्सी मिली है अब उन्हीं रेखचंद खिलाफ ही सफीरा साहू उल जलूल बयान दे रही हैं। ज्यादा दिन नहीं गुजरे हैं जब यही सफीरा साहू तत्कालीन विधायक रेखचंद जैन की तारीफों के पुल बांधते नहीं थकती थीं। पार्टी बदलते ही अब सफीरा साहू के सुर भी बदल गए हैं और वे रेखचंद जैन पर अनर्गल टिप्पणी करने लगी हैं। ऐसा करके सफीरा साहू अपनी ही किरकिरी करा रही हैं। लोग उनकी हंसी उड़ा रहे हैं, उनके खिलाफ प्रचलित मुहावरों का प्रयोग करने लगे हैं।


अपने गॉड फादर पूर्व विधायक रेखचंद जैन के खिलाफ टिप्पणी करने के बाद अब कांग्रेस के लोग महापौर सफीरा साहू के लिए इस कहावत का जमकर प्रयोग करने लगे हैं कि सूप बोले तो बोले, अब चलनी भी बोलने लगी, जिसमें हजार छेद। पार्टी व राजनैतिक चरित्र बदलने के मामले में नेता गिरगिट को भी पीछे छोड़ देते हैं। इसकी बानगी महापौर सफीरा साहू के बयान में देखने को मिली है। किस तरह भाजपाई महापौर पूर्व विधायक रेखचंद जैन पर बयानबाजी कर रही हैं।जबकि रेखचंद जैन ने सफीरा साहू के लिए गॉड फादर की भूमिका निभाते हुए उन्हें निगम की सत्ता में आरूढ़ कराने में बड़ी भूमिका निभाई थी। रेखचंद जैन की स्वीकृति व सहमति के दम पर ही सफीरा साहू महापौर के ओहदे तक पहुंच पाई हैं।
कांग्रेस पार्टी का दामन झटक कर भारतीय जनता पार्टी का चोला धारण कर चुकीं महापौर सफीरा साहू पहले आत्म सम्मान और स्वाभिमान का ढोल पीटती रही हैं, लेकिन वह अब किस तरह पूर्व विधायक रेखचंद जैन का अपमान कर रही हैं यह उनकी सार्वजनिक बयानबाजी में देखने को मिली है। पूर्व विधायक रेखचंद जैन को किसी से सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है, उन्हें संगठन ने टिकट दिया तथा ग्रामीण क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी। बीते विधानसभा चुनाव में दिन -रात विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के लिए मेहनत की वह जगजाहिर है। इसी प्रकार लोकसभा चुनाव में भी चुनाव के अंतिम क्षण तक रेखचंद जैन कांग्रेस के समर्पित सिपाही बन डटे रहे। पूर्व विधायक ने पांच वर्षों तक जनता के सुख-दुख में सहभागिता निभाई जिसके कारण पूर्व विधायक को जनता हाथों हाथ लेती आई है। पूर्व विधायक को कांग्रेस पार्टी ने गत विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया फिर भी वह पार्टी में तटस्थ और मजबूती से जनांदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते आ रहे हैं। दूसरी तरफ दलबदलू महापौर सफीरा साहू कांग्रेस पार्टी की सरकार में रहने के दौरान कांग्रेस से ही महापौर बनी और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रही। कांग्रेस की सरकार जाते ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। इसे स्वार्थ की राजनीति ही तो कहा जाएगा। महापौर सफीरा साहू जब कांग्रेस में थी तो उन्होंने कितनी बार चौपाल लगाई और निगम की सत्ता की कुर्सी जाने के भय से वह अब दिखावे की राजनीति पर उतारू हैं जो किसी के गले नहीं उतर रहा है।