अपनों की साजिश के शिकार तो नहीं हो रहे हैं गृहमंत्री विजय शर्मा

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  • बलौदाबाजर और लोहारीडीह की घटनाओं से उठ रहे सवाल 
  • अगड़े -पिछड़े के चक्रव्यूह में उलझ गई है भाजपा 

अर्जुन झा

जगदलपुर जिस गृहमंत्री विजय शर्मा ने राज्य में नासूर बन चुकी नक्सली समस्या को दूर करने में काफी हद तक सफलता हासिल कर ली है, उस गृहमंत्री पर कानून व्यवस्था को लेकर असफलता के आरोप निसंदेह किसी साजिश का हिस्सा लग रहा है।

बलौदाबाजार और कवर्धा के लोहारीडीह की घटनाओं के बाद प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति के साथ ही इस बात पर बहस छिड़ गई है कि राज्य बनने के बाद यहां पर गृह विभाग की कमान अगड़ों को देने से घटनाएं बड़ी संगीन और प्रायोजित ढंग से घटित हो रही हैं। कानून व्यवस्था की स्थिति संम्हलने के बजाय बिगड़ने लगी है। हालांकि यह स्थानीय लोगों के आक्रोश का परिणाम हो सकता है, लेकिन बड़ा रूप लेने से इसकी चर्चा पूरे प्रदेश में होने लगी है।

चाहे बलौदा बाजार की घटना हो या कवर्धा के लोहारीडीह की। छत्तीसगढ़ की राजनीति पर नजर डालें तो 2003 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद बृजमोहन अग्रवाल को गृह विभाग का जिम्मा दिया गया, पर उन्होंने इसे अपने प्रभाव का दुरूपयोग करने वालों की वजह से छोड़ दिया। अब गृहमंत्री विजय शर्मा अपने क्षेत्र में घिर गए हैं। कवर्धा के लोहरीडीह में हुई घटना एक दंगे का रूप ले सकती थी मगर गृहमंत्री ने क्षेत्र में बड़ी अनहोनी पर विराम लगा दिया। कवर्धा पुलिस ने मामले को सुलझाने का प्रयास किया पर एसपी सहित कई पुलिस वाले वहां पिटे हुए मोहरे साबित हुए। घटना के बाद पुलिस ने सभी को दंगा फैलाने की धाराओं में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। यहीं नहीं गांव वालों को पीटा भी गया। कवर्धा के मामले पर चल रही सियासत के बीच यह कहा जाने लगा कि है प्रदेश में रामविचार नेताम से लेकर ननकी राम कंवर, रामसेवक पैकरा और दो ओबीसी वर्ग के गहमंत्री नंदकुमार पटेल और ताम्रध्वज साहू भी रहे। उनके समय में कानून व्यवस्था की स्थिति इतनी ज्यादा गंभीर नही रही। ऐसे में एक वर्ग यह कह रहा है कि पूर्व के गृहमंत्रियों ने घटनाओं को लेकर त्वरित प्रतिक्रिया कभी नहीं दी, इसलिए मामले को कंट्रोल करने में पुलिस सावधान रही।

होम करते जल रहे हाथ

प्रदेश के मौजूदा गृहमंत्री बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं।कहीं भी अप्रिय और बड़ी घटना होती है गृहमंत्री विजय शर्मा न सिर्फ त्वरित प्रतिक्रिया देते हैं, बल्कि पीड़ितों के बीच जाकर उनका दुख बांटने का काम भी करते हैं। उनकी यह संवेदनशीलता नक्सल प्रभावित इलाकों में बड़ी कारगर साबित हुई है। जो आदिवासी कभी नक्सलियों के भ्रमजाल में उलझे हुए थे, वे आज छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार की नीतियों और गृहमंत्री विजय शर्मा की कार्यशैली के मुरीद बन गए हैं। सिर्फ आदिवासी ही नहीं, बल्कि नक्सल समर्थक ग्रामीण और स्वयं सैकड़ों नक्सली भी गृहमंत्री के कामकाज से प्रभावित हैं। इसका प्रमाण लगातार नक्सलियों का आत्मसमर्पण है। अकेले बस्तर संभाग के बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, कांकेर व कोंडागांव जिलों में सैकड़ों नक्सलियों का आत्मसमर्पण है। ऐसे में भला विजय शर्मा पर विफल गृहमंत्री का तोहमत कैसे मढ़ा जा सकता है? कुछ घटनाएं क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में होती हैं और आवेश में लोग हिंसक हो उठते हैं। वर्ग संघर्ष की स्थिति भी बन जाती है। हां यह जरूर है कि घटना वाले क्षेत्र में राजनेताओं का जाना आग में पेट्रोल डालने का काम करता है। बलौदाबाजार की घटना इसका बड़ा उदाहरण है। जहां विपक्षी नेताओं की आमद से शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसक हो उठा। ऐसा ही कवर्धा के लोहारीडीह में भी हुआ है।

अब कवर्धा के एसपी और कलेक्टर को हटाकर सरकार ने स्वयं घटना के दूसरे पक्ष को मान लिया। ऐसे में जनता तक बनी बनाई बात पहुंचा कर विपक्ष ने अपनी रोटी सेंक रहा है।

नक्सल क्षेत्र में सबसे सफल गृहमंत्री

भाजपा ने रणनीति के तहत आदिवासी मुख्यमंत्री और अन्य वर्ग से उप मुख्यमंत्री बनाए। युवा और तेज तर्रार विजय शर्मा को गृहविभाग देकर पार्टी ने अच्छा संकेत दिया। गृहमंत्री विजय शर्मा ने नक्सल क्षेत्र में जाकर वहां के हालात को जनने का प्रयास किया। वहां के लोगों का दुख दर्द साझा किया, हालात सुधारने कई काम किए। इससे नकसल प्रभावित क्षेत्रों के लोगों का नक्सलियों से मोहभंग होने लगा और शासन प्रशासन के प्रति भरोसा बढ़ने लगा। इसी गृहमंत्री के अल्प कार्यकाल दर्जनों बड़े नक्सली नेताओं और आम नक्सलियों को मार गिराया गया। ऐसे में मैदानी क्षेत्र में अपराधियों को नियंत्रित करने में विजय शर्मा सफल क्यों नहीं हो पा रहे हैं यह चर्चा का विषय है। लगता है साजिश में उन्हें फंसाने का कुचक्र रचा जा रहा है। उन्हें यहां पर वर्षाें से जमे पुलिस के कर्मियों को और टाइट करने पर जोर देना चाहिए। अफसर ऐसे हों, जो स्वयं से ज्यादा अवाम की हिफाजत पर ध्यान दे। ऐसे अफसरों को फील्ड बिठाए जाने की जरूरत है।