गांव को महामारी से बचाती हैं टलनार गांव की आराध्य देवी दुलार देई माता

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  • चावल और कच्चा दूध अर्पित करने की परंपरा है देवी मां को
  • ग्रामीणों की अटूट आस्था है मातारानी दुलार देई पर
  • नवरात्रि पर अर्जुन झा की विशेष रिपोर्ट-

बकावंड वैसे तो बस्तर संभाग में देवी देवताओं के पचासों स्थान और सबकी अपनी अपनी परंपराएं और पूजा पद्धति हैं। बस्तर की प्रमुख आराध्य देवी दंतेश्वरी माई है। इन्हीं दंतेश्वरी माई का अंश बकावंड विकासखंड की टलनार ग्राम पंचायत में माता दुलार देई के रूप में विराजमान है। यह देवी गांव की कुलदेवी है और लगभग डेढ़ सौ साल से ग्रामीण पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ माता दुलार देई की पीढ़ी दर पीढ़ी आराधना करते आ रहे हैं। आइए हम आपको सुनाते हैं मातारानी दुलार देई की गौरव गाथा…

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बस्तर जिले की जनपद पंचायत बकावंड की ग्राम पंचायत टलनार में मां दुलार देई की आराधना लगभग डेढ़ सौ साल से की जा रही है। दुलार देई माता को कच्चा दूध अर्पित करने की परंपरा का निर्वहन ग्रामीण आज तक बखूबी करते आ रहे हैं। किवदंति है कि मां दुलार देई ने गांव वालों को महामारी के प्रकोप से बचाया था। आज भी गांव में जब कभी कोई रोग फैलने लगता है, तब ग्रामीण माता दुलार देई की ही शरण में पहले जाते हैं।

गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि मातारानी दुलार देई का मंदिर करीब 140 से 150 वर्ष पूर्व से स्थापित है।माता दुलार देई की प्रतिमा बस्तर से लाई गई थी। दुलार देई की बड़ी बहन का नाम गंगा देई माता है। दशकों पहले जब अज्ञात रोगों के प्रकोप के चलते ग्रामीणों की मौत होने लगी तब माता दुलार देई की प्रतिमा की स्थापना मंदिर बनाकर पुरखों ने की थी। इस मंदिर के प्रथम पुजारी सुधु शुंडी थे और अभी 5 वी पीढ़ी के पुजारी बनसिंह हैं। इस मंदिर में जोत जलाने का क्रम करीब 20 साल से जारी है। टलनार गांव के अलावा आसपास के तथा सुदूर गांवों के भक्त भी माता दुलार देई के दरबार में दोनों नवरात्रियों पर ज्योत जलवाने लगे हैं। मंदिर की सारी व्यवस्थाएं ग्रामीण मिलजुल कर करते हैं। दुलार देई को दंतेश्वरी माई का अंश माना जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि कालरा हैजा की शिकायत से पचासों ग्रामीण की मौत हो गई थी, तब आपस में सलाह कर बस्तर से माई जी मूर्ति गांव में लाकर पूजा अर्चना शुरू की गई। इसके बाद रोग का कहर थम गया। जबसे गांव में माता दुलार देई की प्रतिमा स्थापित हुई तबसे आज तक टलनार में किसी भी रोग का प्रकोप नहीं हुआ है।

शनि, मंगल को पूजा, चावल का प्रसाद

माता दुलार देई की पूजा विधि कुछ खास है। विशेष दिन और अवसर पर माता रानी की विशेष पूजा की जाती है। शनिवार और मंगलवार को यह विशेष पूजा की जाती है और माता को चावल तथा कच्चे दूध का भोग का अर्पित किया जाता है। ग्रामीणों के मुताबिक दुलार देई माता को उबला हुआ नहीं, बल्कि कच्चा दूध ही पसंद है।