छग मंडी बोर्ड में भाजपा सरकार का भाई भतीजावाद, संविदा वाले एमडी को एक्सटेंशन देने की तैयारी

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  •  क्या राज्य में योग्य अधिकारी नहीं रह गए?
  • अपनी पार्टी के एक नेता पर मेहरबान है सरकार

रायपुर छत्तीसगढ़ राज्य कृषि विपणन मंडी बोर्ड का विवादों से पीछा छूटता नजर नहीं आ रहा है। अपनी पार्टी के एक नेता पर प्रदेश सरकार इस कदर मेहरबान है कि उस नेता के भाई को संविदा नियुक्ति देकर भाई साहब को मंडी बोर्ड का सर्वेसर्वा बना दिया गया है। अब खबर यह आ रही है कि संविदा नियुक्ति वाले मंडी बोर्ड के सर्वेसर्वा इस एमडी को एक्सटेंशन देने की तैयारी सरकार ने कर ली है।

संविदा पर एमडी की नियुक्ति के बाद से ही छत्तीसगढ़ कृषि विपणन मंडी बोर्ड तरह तरह के आरोपों और विवादों से घिरता चला आ रहा है। पहला मसला यह है कि क्या छत्तीसगढ़ शासन में ऐसा एक भी योग्य अधिकारी नहीं है, जिसे मंडी बोर्ड का मैंनेजिंग डायरेक्टर बनाया जा सके? राज्य में अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के ऐसे कई योग्य और अनुभवी अधिकारी हैं, जिन्हें लूप लाइन में डाल दिया गया है। इनमें से किसी अधिकारी को मंडी बोर्ड का एमडी बनाकर उसकी योग्यता एवं अनुभवों का लाभ लिया जा सकता है। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों पर परिवारवाद, भाई भतीजावाद एवं तुष्टिकरण का आरोप लगाने वाली भाजपा छत्तीसगढ़ में खुद तुष्टिकरण और भाई भतीजावाद के रास्ते पर चलने लगी है। जिस शख्स को एमडी बनाया गया है, वे सिख अल्पसंख्यक तो हैं ही, साथ ही राज्य के एक बड़े भाजपा नेता के बड़े भाई भी हैं। इस तरह राज्य की भाजपा सरकार अजा अजजा वर्ग के अधिकारियों का हक मारने पर तुली नजर आ रही है। विवाद का दूसरा कारण यह है कि जबसे संविदा वाले एमडी पदस्थ हुए हैं तबसे मंडी बोर्ड में तुगलकी प्रथा चलाई जा रही है। बोर्ड के एमडी और एसी शासन की छवि धूमिल कर रहे हैं, शासन की मंशा पर पानी फेर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर छोटे ठेकेदारों और बेरोजगार युवाओं से रोजगार के अवसर छीनने का काम भी कर रहे हैं। जबकि प्रधानमंत्री मोदी जी सबका साथ, सबका विकास का नारा दे रहे हैं। एमडी एसी मिलकर ऐसे ऐसे फैसले ले रहे हैं कि मंडी बोर्ड का लगातार बेड़ागर्क होता चला जा रहा है। राज्य में दर्जनों अनुभवी अधिकारियों के रहते हुए भी एक सेवनिवृत्त अधिकारी को संविदा नियुक्ति देकर मंडी बोर्ड का एमडी बनाए जाने पर शुरू से सवाल उठते रहे हैं। सोशल मीडियम में तो इस संविदा नियुक्ति को राज्य के आदिवासी अधिकारियों के अधिकारों का हनन तक करार दे दिया गया है। दूसरी अहम बात मंडी बोर्ड से जुड़े निर्माण कार्यों के ठेकों को लेकर सामने आई है। संविदा वाले एमडी और एसई ऐसा खेल खेल रहे हैं कि इसकी मिसाल और किसी विभाग में देखने सुनने को नहीं मिलती है। बताते हैं कि ये दोनों अधिकारी जिसके छोटे छोटे कार्यों को एकजाई एक

ही निविदा निकालने की नई प्रथा चलाने लगे हैं। 20-30 लाख की लागत वाले तीन चार कार्यों को एकमुश्त कर एक निविदा निकाले जाने से सैकड़ों छोटे ठेकेदारों के सामने समस्या खड़ी हो गई है। डी से लेकर सी कैटेगरी वाले ठेकेदार इसके चलते टेंडर नहीं डाल पा रहे हैं। वहीं केंद्र व राज्य सरकार ने शिक्षित बेरोजगार युवाओं को छोटे छोटे निर्माण कार्यों के ठेके लेने के लिए प्रोत्साहित करते हुए योजना भी चला रखी है। ऐसे युवा भी मंडी बोर्ड के कार्यों के टेंडर नहीं भर पा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि एमडी और एससी ने बड़े ठेकेदारों से सांठगांठ करके यह प्रथा शुरू की है। पहले जब हर निर्माण कार्य के अलग अलग टेंडर कॉल किए जाते थे तब छोटे ठेकेदार बड़ी संख्या में टेंडर में हिस्सा लेते थे। ठेकेदारों के बीच प्रतिस्पर्धा होती थी और मंडी बोर्ड को अच्छा लाभ मिलता था। अब छोटे ठेकेदार बोर्ड एमडी और एससी इस रवैए से परेशान हैं। अब बड़े ठेकेदार मनमाने ढंग से रेट डालकर काम लेने लगे हैं। इससे मंडी बोर्ड और राज्य शासन को बड़ी आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है। राज्य सरकार की फजीहत हो रही है सो अलग। अभी हाल ही में रायगढ़ जिले में करोड़ो के अलग अलग कार्यों का एक ही टेंडर निकाला गया है।जबकि इन छोटे छोटे कार्यों का ठेका लेकर से कई ठेकेदार लाभान्वित हो सकते थे।