“संसार में हमारा किसी से बैर नहीं, परंतु जो धर्म पर हाथ डाले उसकी खैर नही “

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इन क्रांतिकारी विचारों से परिपूर्ण, ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन को प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 संत श्री राम बालक दास जी के सानिध्य में किया गया जिसमें सभी भक्तगण हजारो भक्त जुड़ें प्रतिदिन की भांति सुंदर ऑनलाइन सत्संग का आयोजन भक्तों के भजनों एवं माताओं के रामचरित मानस की चौपाइयों के साथ ही आनंददायक रहा, ऋचा बहन के मीठा मोती से सभी को प्रेरणा प्राप्त हुई, कि यदि आप विश्व में परिवर्तन लाना चाहते हैं तो पहले स्वयं को परिवर्तित कीजिए सत्संग को आगे

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बढ़ाते हुए ऋचा बहन ने भक्ति मार्ग पर प्रश्न करते हुए कहा कि, ज्ञान की पंथ, कृपाण की धार क्यों कहा जाता है? इस पंक्ति के भाव का विस्तार करते हुए बाबा जी ने बताया कि बहना भक्ति क्या है ,ज्ञान क्या है, वैसे तो ईश्वर को प्राप्त करने के कई रास्ते हैं और इसी को प्राप्त करने के लिए भक्तों को चार भागों में विभाजित भी किया गया है । एक होता है अर्थार्थी, एक होता है

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आर्त,एक ज्ञानी और एक जिज्ञासु,आर्त का अर्थ होता है जो दुखी होकर दुख में भगवान को सुमिरन करता है आर्त भाव से भगवान को पुकारता है भगवान जो अनाथों के नाथ है ऐसे भक्त जिन्हें प्रार्थना भी नहीं आती उनमें पशुता होती है लेकिन वह हृदय और भाव के साथ बिना किसी विधि विधान की रचना के भी भगवान को पुकारते हैं तो ईश्वर उनकी अवश्य प्रार्थना सुनते हैं भक्तों की प्रार्थना से भगवान दौड़े चले आते हैं।

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दूसरे हैं जिज्ञासु, अर्जुन संजय, विदुर ,अक्रूर ,उद्धव या फिर माता शबरी की तरह जिज्ञासा करने वाले भक्त होते है जिन्हें परमात्मा ज्ञान से भर देता है , उनको परिपूर्ण कर देता है जब भक्त जिज्ञासु हो तो परमात्मा उनका गुरु बन कर उन्हें उपदेश कर उसकी सारी जिज्ञासा को शांत करते हैं तीसरे भक्त होते है अर्थार्थी , जो कि भगवान की सकाम भक्ति करते हैं जो हमें

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कभी नहीं करना चाहिए परंतु यह भी भगवान का ही रचा हुआ एक रूप है, की भक्त अर्थार्थी भी हो सकता है हम अपने माता-पिता से ही नहीं मांगेंगे तो किससे मांगेंगे , संसार में यदि किसी से मांगना भी हो तो परमात्मा से मांगे परंतु उसे स्वार्थनिष्ठा ना बनाएं भक्ति ही रखें उसे पिता मानकर आप कुछ मांग सकते हैं परंतु वे इतने दया कृपा निधान है कि बिना मांगे ही हमारी झोली भर देते हैं |

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चौथे भक्त है ज्ञानी भक्त, भगवान कहते हैं कि वैसे तो भक्तों सभी मुझे बहुत प्रिय है परंतु ज्ञानी भक्त भगवान को अति प्रिय है ज्ञानी भक्त ऐसे होते हैं कि वे स्व विवेक का प्रयोग करते हैं अंधविश्वास नहीं करते भगवान के विभिन्न रूपों में व्याप्त है उसे समझते हैं।

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भक्तों के स्वरूप को जानने के बाद हम ज्ञान की पंथ कृपाण की धार क्यों कहा जाता है, जानते हैं कृपाण एक राजपुताना शस्त्र है जिसमे दोनों तरफ धार होती है उसे तब उपयोग किया जाता है जब आप शत्रुओं से चारों ओर से घिर जाते हैं तब सिपाही ताबड़तोड़ हमला कर अपनी रक्षा करता है उसी प्रकार ज्ञान सभी संशय को काटने में सक्षम रहता है हमारे जीवन के सभी भ्रम को उसी तरह जला देता है जिस तरह अग्नि तिनके को जला देती है इसलिए ज्ञान का उपयोग

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भी तभी करें जब उसके अलावा कोई उपाय ना बचा हो क्योंकि यहां दूधारी तलवार है जिस पर आप चलेंगे तो भी मरेंगे परंतु इसका उपयोग भी सोच समझ कर करना चाहिए ज्ञानी को कभी कभी अभिमान भी हो जाता है वह अपने ज्ञान से अपने को भगवान समझने लगता है इसलिए ज्ञान को अभिमान ना बनाए, इसीलिए इसको कृपाण से तुलना की गई है |

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इस प्रकार आज का सत्संग पूर्ण हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम