बस्तर में 9 हजार बच्चे विकास अवरुद्ध करने वाले कुपोषण से ग्रसित

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जिले में साढ़े 17 हजार बच्चे कुपोषित कमीशन के कारण आहार से पौष्टिक तत्व गायब

जगदलपुर – बस्तर जिले में कुछ साल पहले विकास अवरुद्ध करने वाले कुपोषण से लगभग साढ़े 3 हजार बच्चे पीड़ित पाये जाते थे लेकिन नवंबर माह में कराई गई जांच में 9 हजार बच्चे कुपोषण से पीड़ित मिले है जिनमें विकास अवरुद्ध करने वाले लक्षण पाये गये है जो बास्तानार इलाके में सर्वाधिक संख्या पाये गये है। नवंबर 2020 में कराई गई जांच में साढ़े 17 हजार

बच्चे कुपोषण के शिकार हुए है। विभाग के अधिकारी की उदासिनता एवं क्षेत्र पहुंचविहिन होने के कारण शासन द्वारा संचालित योजना का लाभ बच्चों तक नहीं पहुंच रहा है जिसके कारण बच्चे कुपोषण के चपेट में है।

जानकारी के अनुसार जिले में 3 से 6 वर्ष के बच्चों में तीन प्रकार के कुपोषण पाये जा रहे है जिसमें क्रोनिक कुपोषण विकास अवरुद्ध करने वाले और तीव्र कुपोषण शामिल है। कार्यालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बच्चे सबसे अधिक विकास अवरुद्ध करने वाले कुपोषण से पीड़ित हो रहे है। इस प्रकार के कुपोषण का बच्चों की लंबाई और उनके वजन पर असर पड़ रहा है। अधिकतर बच्चे कम लंबाई होने के साथ वजन कम होने के कारण बार-बार बीमार हो रहे है।

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कार्यालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नवंबर 2020 में विभाग के मासिक रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार 81 हजार बच्चों की जांच कराई गई थी जिसमें 17 हजार 5 सौ बच्चे कुपोषित मिले थे जिसमें लगभग 9 हजार बच्चे विकास अवरुद्ध वाले कुपोषण से ग्रसित पाये गये थे। शिशु रोग विशेषज्ञों द्वारा इस प्रकार के कुपोषण पाये जाने का खुलासा महारानी अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा किया गया है। बताया जा रहा है कि महारानी अस्पताल में संचालित पोषण पुर्नवास केन्द्र में इन बच्चों की संख्या 10 से 12 फीसदी थी। इस प्रकार के कुपोषण से पीड़ित होने वाले बच्चों में डायरिया, निमोनिया और इंफेक्शन से जुड़ी बीमारी होने की संभावना रहती है।

7 ब्लॉक के 8 स्थान पर चल रहा कुपोषण पुर्नवास केन्द्र:

कुपोषित बच्चों के उपचार के लए कुछ साल पहले स्वास्थ्य विभाग जिले के 7 ब्लॉकों के मुख्यालय में पोषण पुर्नवास केन्द्र संचालित कर रहा था जिसमें भानपुरी, दरभा, तोकापाल, लोहण्डीगुड़ा, बकावण्ड और महारानी अस्पताल में पुर्नवास केन्द्र खोले गये थे। शुरुआती दौर में पांच-पांच बिस्तर बनाया गया था तमाम प्रयास एवं खर्च के बाद भी कुपोषित बच्चों का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है जबकि शासन द्वारा कई प्रकार की योजना संचालित कर गर्भवती माताओं को पौष्टिक आहार देने की व्यवस्था कराई गई है लेकिन आहार से पीष्टिक तत्व बच्चों एवं गर्भवती माताओं को नहीं मिल पा रहा है। कमीशनबाजी के कारण आहार से पौष्टिक तत्व गायब होते जा रहे है।