जगदलपुर। छत्तीसगढ़ शासन लोक संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा जिला पुरातत्व संग्रहालय में शुक्र व शनिवार को दो दिवसीय शोध संगोष्ठी आयोजित की गई है। बस्तर के इतिहास एवं संस्कृति से जुड़े लोकगीत किवदंतियों एवं लोक गाथाएं विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में संगोष्ठी अध्यक्ष डॉ. बीएल झा ने कहा कि समृद्ध पुरातन वैभव के कारण हमें बस्तरिया होने का गौरव प्राप्त है। यहां की समृद्ध लोक संस्कृति, कला, साहित्य, नृत्य को सहेजने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा। तभी बस्तर अपनी विश्वव्यापी पहचान को बरकरार रख सकेगा।
जिला पुरातत्व संग्रहालय में दोपहर 12 बजे मां सरस्वती की पूजा – अर्चना पश्चात शोध संगोष्ठी प्रारंभ हुई। संग्रहाध्यक्ष अमृतलाल पैकरा ने शोध संगोष्ठी के संदर्भ में बताया कि बस्तर के समृद्ध पुरातत्व, लोक कला, संस्कृति, साहित्य को संरक्षित करना और उसे विश्वव्यापी पहचान दिलाना हमारा प्रयास है। उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि महापौर श्रीमती सफिरा साहू ने कहा कि मुरिया परिधान दुनिया में बस्तर की अलग पहचान बनाए हुए है। बस्तर आने वाले अधिकांश सैलानी बस्तर का लोक जीवन और उसकी संस्कृति देखना चाहते हैं इसलिए हमें यहां की लोक संस्कृति और साहित्य जगत को बढ़ाना जरूरी है। इस मौके पर नगर निगम की सभापति श्रीमती कविता साहू ने कहा कि बस्तर की संस्कृति लुप्त हो रही है इन्हें संरक्षित और संवर्धन करने का यह प्रयास सराहनीय है। हम कहीं भी बस्तर के चर्चा करें, लोग उसे उत्सुकता से सुनते हैं और हम भी गर्व महसूस करते हैं। इतिहासकार एसके तिवारी ने कहा कि बस्तर की विधाओं को पूरी तरह सहेजना आसान नहीं है। रामायण काल से यह भू भाग दण्डकारण के नाम से चर्चित रहा। बस्तर देश का ऐसा केंद्र है जहां से शैव, शाक्य,बौद्ध तथा जैन प्रतिमाएं मिलती हैं। बस्तर दो हजार साल पहले सेअपनी समृद्ध विरासत को सहेजे हुए है।
शोध संगोष्ठी के दूसरे सत्र में सुश्री उर्मिला आचार्य ने भैरव मंदिर, कोठार देव और उसके परिवार। विजय सिंह ने बस्तर में चर्चित झिरलिटी झिरलिटी पंडकी की मारा लिटी बालगीत के रचयिता पूरनसिंह ठाकुर पर। कोंडागांव से आमंत्रित डॉ. किरण नुरेटी ने विवाह के समय दूल्हा- दुल्हन को शीतला में प्रणाम करते समय हपका करने। डॉ. स्वपन कुमार कोले ने मुरिया जनजाति का राजनीतिक संगठन। डा. जयमती कश्यप कोंडागांव ने लोकगीत एवं लोक कथाएं। घनश्याम नाग बनिया गांव ने बस्तर की किवदंतियां इतिहास। विश्वनाथ देवांगन ने मोटका लोकगाथा किवदंती। श्रीमती आशारानी पटनायक (शोधार्थी) ने बस्तर के इतिहास एवं संस्कृति में लोक गाथाओं का महत्व। श्रीमती पल्लवी नुरेटी ने दक्षिण बस्तर के पेन शक्तियों का इतिहास तथा नागाराज पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। इसके अलावा पांच शोधार्थियों ने भी अपना शोधपत्र पढ़ा। बताया गया कि शोध संगोष्ठी के दूसरे दिन शनिवार को 15 से अधिक शोधार्थी अपने लेखों का पठन करेंगे कार्यक्रम का संचालन करमजीत कौर तथा अफजल अली ने किया।