इस बीमार बच्चे के परिजनों की फरियाद आखिर कौन सुने; आसमान के भगवान या धरती के…

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गीदम

सृष्टि में भगवान के बाद दूसरे भगवान का दर्जा डॉक्टर को ही माना गया है. लेकिन जब अपनी परेशानी और बीमारी को लेकर मानसिक रूप से तनाव में रहने वाले मरीजों की डॉक्टर ही ना सुने तो ऐसे डॉक्टरों से परिजनों का विश्वास का हट जाना लाजमी है. दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि चंद पैसों की लालच में मरीज की जान से खेलना ऐसे डॉक्टरों के पेशे पर सवालिया निशान खड़े करता है.

ऐसा ही एक मामला गीदम के बाजार पारा का सामने आया है; जहाँ, महज 5 माह का मासूम बच्चा; डॉक्टरों की अघोषित लापरवाही के चलते जिंदगी और मौत से हर पल लड़ रहा है.

तकरीबन डेढ़ माह पूर्व योगेश देवांगन नामक उक्त बच्चे की अचानक तबीयत बिगड़ गई. जिसके बाद आनन-फानन में बच्चे के पिता नरेंद्र देवांगन व माँ दीपिका देवांगन द्वारा जगदलपुर स्थित काले नर्सिंग होम लाया गया. प्राथमिक उपचार के बाद यहां के डॉक्टर मनीष काले ने बच्चे के दिल में छेद होने की बात कही और नया रायपुर के संजीवनी सत्य साईं अस्पताल ले जाकर इलाज कराने की सलाह दी.

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जहां इस बात को सुनकर परिजनों के होश उड़े हुए थे, वहीं किसी अन्य डॉक्टर से एक बार और इलाज कराने की लालसा ने नरेंद्र के मन में डॉक्टर नवीन दुल्हनी की ओर रुख करने की इच्छा जगाई; जिसके बाद अपने नन्हे से अबोध जान को लेकर डॉ. दुल्हानी के पास पहुंचे. यहां भी उन्हें रायपुर जाने की सलाह दी गई.

आर्थिक रूप से कमजोर यह परिवार किसी तरह अपने बच्चे को लेकर नया रायपुर स्थित संजीवनी सत्य साईं अस्पताल पहुंचा था, जहां डॉक्टर प्रशांत ठाकुर ने जांच करने के उपरांत कुछ दवाइयां लिख कर दी और योगेश का ऑपरेशन मार्च माह में करने और आगामी 25 मार्च को पुन: मिलने की बात कही.

गुरुवार को जब डॉ प्रशांत ठाकुर से अपने बच्चे के साथ परिजन मिले तो उनका कहना था कि बच्चे को तेज बुखार है; ऐसे में ऑपरेशन करना संभव नहीं है. अन्य किसी निजी अस्पताल में जाकर पहले बच्चे के बुखार का इलाज करवाएं.

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आर्थिक रूप से परेशान व मानसिक तौर पर टूट चुके इस परिवार के आंसू इस बात को सुनकर थमने का नाम नहीं ले रहे थे. बच्चे की तबीयत हर पल बिगड़ रही थी. हताश होकर यह परिवार अपने बच्चे के साथ वापस गीदम आ गया और अब इन्हें बच्चे की जान की चिंता सताने लगी है.

यहां यह कहना लाजमी हो जाता है कि संजीवनी जैसे प्रतिष्ठित अस्पताल में या तो बच्चों को होने वाले मामूली बुखार के इलाज करने की सुविधा तक नहीं है या फिर चुनिंदा डॉक्टरों की इस लॉबी में कमीशन खोरी का खेल इस कदर हावी है कि किसी की जान की परवाह ना करते हुए खुलेआम मनमाना रवैया अख्तियार करने से भी ऐसे डॉक्टर बाज नहीं आ रहे हैं.

जहां एक ओर राज्य शासन स्वास्थ्य सुविधा को लेकर गंभीर है और जनहित के लिए नित नए-नए योजनाएं ला रही है, वहीं, ऐसे डॉक्टरों की फौज भी जनता को लूटने के उद्देश्य से नए-नए दिमागी पैंतरे अपनाती रही है.

बहरहाल, गीदम में रहने वाले उक्त परिवार की फरियाद ना तो आसमान में रहने वाले भगवान सुन रहे हैं और ना ही धरती पर रहने वाले भगवान को उस 5 माह के बच्चे की कोई चिंता है.