जीरागांव नक्सली हमले पर बड़ा खुलासा, तीन घण्टे देर से न पहुंचता हिड़मा,तो मुमकिन थी ताड़मेटला से बड़ी वारदात ! बीपी जैकेट और हेलमेट धारी नक्सलियों के साथ स्नाइपर भी शामिल थे बटालियन में

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बीजापुर। शनिवार 3 अप्रैल को जौनागुड़ा-टेकुलगुड़ा के बीच नक्सलियों से मुठभेड़ में देश ने 22 जवानों को खो दिया, लेकिन घटना के छह दिन बाद होश उड़ा देने वाला खुलासा सामने आया है। सूत्र बताते हैं कि मुठभेड़ के दिन माओवादियों की बटालियन नंबर एक का कमांडर माड़वी हिड़मा जिसे हमले का मास्टरमाइंड बताया जा रहा था, शुरूआती मुठभेड़ के वक्त वह घटना स्थल से दूर सुकमा जिले के सरहदी इलाके में मौजूद था और वही से कुछ घंटों तक मुठभेड़ में शामिल जवानों को उसके वहां पहुंचने तक रोककर रखने की कमांड दे रहा था। मुठभेड़ शुरू होने के करीब तीन घंटे बाद हिड़मा मौके पर पहुंचा और जवानों पर हमला बोल रहे लाल लड़ाको को कमांड देने लगा। अन्यथा यहां ताड़मेटला से बड़ी वारदात संभव थी। जिसका उल्लेख कोबरा बटालियन के एक जवाना द्वारा वायरल आॅडियो में भी किया गया है।

बताया गया कि मुठभेड़ की शुरूआत जौनागुड़ा से हुई। जहां सबसे पहले नक्सलियों ने जवानो ंको ट्रैप करना शुरू किया। यह बात भी सामने आई कि जवानों की शहादत लेने नक्सलियों ने कोई एम्बुश नहीं किया था। उन्हें केवल जवानों के पहुंचने की सूचना मिली थी। जिसके बाद नक्सली जौनागुड़ा से लेकर टेकुलगुड़म-जीरागांव तक बंट गए थे। मुठभेड़ में शामिल एक जवान की मानें तो नक्सली जवानों पर ”बडी ”फायर कर रहे थे। बडी फायर का मतलब एक पेड़ की आड़ लेकर तीन से चार नक्सली एक ही जवान को टारगेट कर फायर करने लगते हैं और नक्सलियों की यही रणनीति जवानों को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार की गई थी।

जौनागुड़ा में जवानों को पहला नुकसान उठाना पड़ा था। जिसके बाद जवान गोलीबारी का जबाव देने टेकुलगुड़म की ओर आए और मकानों की ओट में खुद को महफूज करने की कोशिस की, बावजूद टुकड़ों में बंटे नक्सलियों ने ना सिर्फ बुलेट बल्कि यूबीजीएल, देशी लांचर से हमला बोला, जिसमें जवानों को और बड़ा नुकसान हुआ।

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जौनागुड़ा में जवानों को पहला नुकसान उठाना पड़ा था। जिसके बाद जवान गोलीबारी का जबाव देने टेकुलगुड़म की ओर आए और मकानों की ओट में खुद को महफूज करने की कोशिस की, बावजूद टुकड़ों में बंटे नक्सलियों ने ना सिर्फ बुलेट बल्कि यूबीजीएल, देशी लांचर से हमला बोला, जिसमें जवानों को और बड़ा नुकसान हुआ।

जारी मुठभेड़ के बीच वायरलेस सेट पर लाल लड़ाकों को मैदान पर डटे रहने और बटालियन के और लड़ाकांे को लेकर जल्द पहुंचने की सूचना हिड़मा लगातार पहुंचा रहा था। यह बात भी सामने आई कि अगर नक्सलियों ने एम्बुश किया होता तो नुकसान और बड़ा था। जवानों के आॅपरेशन पर निकलने की सूचना हिड़मा को भी देर से मिली थी, जिसकी वजह से नक्सली एम्बुश करने में नाकाम रहे थे। इधर मुठभेड़ जारी थी, सुरक्षा बल और नक्सली, दोनों तरफ से गोलीबारी जारी थी,उधर हिड़मा अपने साथ एक अन्य पलटन लेकर जौनागुड़ा पहुंच रहा था। बता दें कि एक वायरल आॅडियो में एक जवान यह कहता सुनाई पड़ा रहा कि अगर जवान नक्सलियों की घेराबंदी को नहीं भेदते तो शहादत का आंकड़ा और भी बढ़ जाता।

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जो बातें सामने आई हैं इसमें कोराना काल के दौरान नक्सलियों का संगठन मजबूत होने का दावा किया गया है। बीते एक साल में देष जब कोरोना संकट से जूझता रहा, नक्सली संगठन बस्तर में बड़ी तादाता में युवाओं को संगठन में भर्ती कराने में कामयाब हुए। निष्चित ही यह दावे सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का सबब बन सकते हैं। चंूकि तीन अप्रैल को जवानों को घेरने के लिए नक्सलियों की बटालियन नंबर एक के कुशल लड़ाकों के साथ नए प्रशिक्षित जोशीले लड़ाकों को भी मैदान पर उतारा गया था।

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नक्सलियों तक जवानों द्वारा चलाए जा रहे आॅपरेशन की सूचना पहुंचने में देरी की वजह से बटालियन एक का कमांडर हिड़मा मौके पर देर से पहुंचा था। इतना ही नहीं गत डेढ़ माह पूर्व पूवर्ती इलाके में नक्सलियों से जवानों की जो मुठभेड़ हुई थी, जिसमें नक्सलियों को नुकसान उठाना पड़ा था, सूत्र बताते हैं कि इलाके में हिड़मा की पलटन मौके से काफी दूर थी, इसके अलावा आॅपरेशन की खबर भी इस दरम्यान हिड़मा तक देर से पहुंची थी। नतीजतन यहां उल्टे नक्सलियों को नुकसान उठाना पड़ा था।

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सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार तीन अप्रैल को हुए मुठभेड़ के दौरान माओवादियों की बटालियन की ओर से नक्सली सिर्फ पेड़ों और मेड़ों की आड़ से ही नहीं बल्कि पहाड़ियों से भी गोलियां बरसा रहे थे। जिसमें चैकाने वाली इस बात का खुलासा हुआ है कि माओवादी अब मुठभेड़ों में अपने साथ स्नाइपर भी लेकर चलने लगे हैं। पहाड़ियों से जो माओवादी जवानों पर गोलियां चला रहे थे उनमें से कुछ स्नाइपर बताए जा रहे हैं, जो लगातार जवानों को टारगेट कर रहे थे।