मूर्ति पूजा को लेकर दो धड़ों में बटे आदिवासी, रक्षाबंधन, गणेश-दुर्गा प्रतिमा स्थापना आदिवासी विरोधी

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जगदलपुर। उत्तर व दक्षिण बस्तर में आदिवासियों के दो समूहों द्वारा मुर्ति पूजा का जमकर विरोध कर रहे हैं जिसके कारण दो धड़ों में आदिवासी बंट गए हैं जिसके फलस्वरूप बस्तर में अप्रिय घटनाएं होने से कोई इंकार नहीं कर सकता। भाई-बहनों के पवित्र पर्व रक्षाबंधन पर्व पर इसका असर दिखा।

ज्ञात हो कि पूर्व में गणेश पंडालों में रौनक हुआ करती थी किंतु आदिवासी समाज के कुछ पढ़े-लिखे राजनीतिक लोगों तथा ओहदेदारों द्वारा सामाजिक बैठकों में इसकी खिलाफत कर रहें हैं। इसका असर उत्तर बस्तर कांकेर में तो ज्यादा देखा जा रहा है और अब मध्य बस्तर के साथ दक्षिण बस्तर में भी इसके विरोध के स्वर सुनाई दे रहा है।

सामाजिक सूत्रों ने बताया कि हम पूजा-पाठ के विरोध में नहीं है मसलन पत्थर, कडरी(चाकूनुमा हथियार) व ग्राम गुड़ियों में पूजा-अर्चना करते हैं किंतु मूर्ति स्थापना आदिवासी परंपराओं के खिलाफ है। उत्तर बस्तर में सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारी गांव-गांव में फरमान जारी किए हैं। इसका असर यह है कि मध्य बस्तर व दक्षिण बस्तर में कुछ समाज के लोग फरमान जारी कर सोशल मीडिया पर धमकी दे रहें हैं और अर्थदंड वसूलने की बात स्वीकार कर रहें हैं। कुल मिलाकर आदिवासी वर्ग दो बांटों में बंट रहा है जिसके कारण कोई दिन भी विस्फोटक स्थिति निर्मित हो सकती है। रक्षाबंधन पर्व के संबंध में आदिवासी वर्ग से जुड़े सरपंचगणों व शासकीय सेवकों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि आदिवासी समाज में इस प्रकार के फरमान जारी हो रहें हैं जिसके परिणामस्वरूप हम लोगों को इसका पालन करना मजबूरी हो गया है।

मुर्तिकार व साज-सज्जा वालों को नुक़सान का अंदेशा

नगर के मिताली चौक व गोल बाजार के व्यवसायियों का कहना है कि दो-तीन वर्षों से ग्रामीण अंचलों में मूर्ति स्थापना के प्रति लोगों की रुचि घटने के कारण मूर्ति के लेवाल कम हो गयें है तो साज-सज्जा के सामानों की बिक्री भी कम हो रही है जिसके कारण आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।