व्यवस्था तंत्र के चलते पूरे प्रदेश में राजस्व विभाग का काम हो रहा है दुष्प्रभावित

0
113

आज छत्तीसगढ़ के सभी पटवारियों को व्यवस्था के चलते और राष्ट्रीय विज्ञान (NIC) के त्रटिपूर्ण साप्टवेयर के चलते अपने अधिकारियों और अपने क्षेत्र के लोगों से बगैर कसूर के भी जलील होना पड़ रहा है। सभी काम आनलाईन भुंईया से होने की व्यवस्था लागू कर दिया गया पर आनलाईन व्यवस्था के पूर्व साप्टवेयर को ठिक ठाक करते चुस्त दुरुस्त रखने की तरफ आवश्यक ध्यान नहीं रखा गया।आनलाईन व्यवस्था को नियंत्रित निर्देशित करने वाले राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र तो व्यवस्था को प्रयोगशाला और काम करने वाले को जंबूरा बनाकर रख दिया है। आनलाईन व्यवस्था में ब्याप्त खामियों और बार बार परिवर्तन के चलते लॉगआउट हो जाता है तथा डिजीटल हस्ताक्षर भी ठिक से नहीं हो पाता।इसके सांथ बहुत बड़ी समस्या तो यह भी है की अधिकांश समय सर्वर बंद हो जाता है जब सर्वर ही बंद हो जाता है तो कोई काम भी नहीं हो पाता और काम ठप्प पड़ जाता है।

साफ्टवेयर त्रुटी के चलते फसल क्षेत्राच्छदन रिपोर्ट व ग्रामवार फसल रिपोर्ट अक्सर त्रुटिपूर्ण आता है, इसके अलावा नक्शा में एक कृषक धारित भूमी का एक साथ हाई लाइट होता था जिसे बंद कर दिया गया अब एक एक कर दिखता है।जिससे भी अनावश्यक परेशानी होने लगी है।

त्रुटीपूर्ण साफ्टवेयर के चलते नामांतरण अपडेशन ठिक ढंग से नहीं हो रहा तथा सॉफ्टवेयर में फस रहा है और फसल का रकबा भी बदल बदल जा रहा है।सिंचित असिचित फसल का एंट्री भी ठिकठाक न होकर एक साथ एक ही खसरे में हो रहा है स्वमेव एक खसरा में दो दो बार फसल एंट्री हो जा रहा है ।इसी तरह से पूर्व में बटांकन हो चुके खसरे का मूल नम्बर खुद ब खुद फिर आ जा रहा है। सिंचाई के साधन संशाधन की जानकारी पटवारी बड़ी मशक्कत से कम्प्यूटर पर चढ़ाते हैं जो अचानक गायब हो जा रहा है। राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र NIC के त्रुटीपूर्ण व्यवस्था के चलते फौती नामांतरण में हर खसरा बसरा बन जा रहा है। फसल क्षेत्राछादन रिपोर्ट से अधिकांश भूमि स्वामी का नाम स्वत: गायब हो जा रहा है। जिस प्रविष्ट में शून्य फसल दर्ज किया जाता है वंहा भी फसल और फसल युक्त में शून्य प्रविष्टि हो जा रहा है। सरकार गिरदावरी कराना चाह रही है और अधिकारी खुद अपने क्षेत्र के गिरदावरी के लिए बारम्बार पटवारियों पर दबाव बना रहे हैं और राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र के अजीबोगरीब साफ्टवेयर के हैरतअंगेज हरकत से सही जानकारी चढ़ाना और उसे बचाये रखना दुष्कर हो रहा है।पटवारी जनाब संशोधन पंजी में संशोधन करके कम्प्यूटर पर पिता दर्ज कर रहे हैं तो पिता खुद ब खुद पति हो जा रहा है।अभी हाल में
8सितंबर से 13 तक सुधार के नाम पर एन आई सी द्वारा लिंक बंद रखा गया था पर समयावधि समाप्त होने के बाद भी भुइयां सर्वर कोमा में ही चल रहा है और ठिक ठाक काम नहीं कर रहा है जिसके कारण पटवारी एंट्री का अवलोकन करके उसमें जरूरी सुधार भी नहीं करा पा रहे हैं।सबसे बड़ी समस्या तो यह है की भुइयां सॉफ्टवेयर सही ढंग से चलता ही नहीं है सर्वर ठिक ढंग से काम करता ही नहीं सिर्फ गोल गोल घूमते रहता है और बेचारे पटवारे दम तोड चुके शव के पास शव को हिलाते डूलाते विलाप करते बोलो कुछ बोलो -आंख खोलो का गुहार करते परिजन सिर पीटते हैं ठिक उसी भांति पटवारी भी कंम्प्यूटर के माउस की बोर्ड और की बोर्ड से हरकत करते झल्लाकर सिर ठोंकने को लाचार हो गये हैं।हालात और हालत के चलते पटवारियों के पारिवारिक जीवन एवं शारीरिक मानसिक स्थिति पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ रहा है।जिसकी तरफ संवेदना पूर्वक सोचने बिचारने और ध्यान देने की जरूरत भी कोई नहीं समझता फलस्वरूप बस उलाहना अपमान और अपने अधिकारियों के डांट फटकार को मौन साधे झेलते रहना उसकी नियति बन चुका है।

बगैर साधन संशाधन के कार्य बोझ में दबकर कर्तव्य निर्वाह कर रहे हैं पटवारी

राजस्व विभाग का काम समय पर हो जाये और तुरंत आनलाईन संपूर्ण जानकारी भुंईया पर सुलभ हो जाये यह अपेक्षा तो की जा रही है पर अपेक्षा को पूरा कर पाने के लिए न कोई साधन सुलभ कराया जा रहा है और न कोई सुविधा।एक पटवारी को एक पंचायत की बजाय पांच पांच पंचायत क्षेत्र तक का काम सौंप दिया जा रहा है और बगैर कम्प्यूटर बगैर लैपटाप बगैर प्रींटर तथा बगैर कुर्सी टेबल आलमारी के उससे समय पर पूरा काम कर लेने की अपेक्षा की जा रही है । यह तो वही हुआ कि एक बैल से पांच बैल का काम कर लेने और वो भी बगैर हल गाड़ी समान के उससे खेती किसानी का काम कर देने की उम्मीद रख कोई किसान बस उसे त त त बैला कहते फटकारते उसपर बस कोडा बरसाते रहे लगभग वही हाल है प्रदेश के पटवारियों का।

हड़ताल भी रहा बेअसर

पटवारियों ने अपने हक और हित से जुड़े 9सूत्रीय मांगों को लेकर काम बंद करके कुछ दिन हड़ताल भी किया पर उसका कोई लाभ नहीं हुआ। जो देने आश्वासन मिला था वह भी नहीं मिला। वेतन भत्ता पदोन्नति जैसे मांग पर गंभीरता से चिंतन मनन परीक्षंण चलता रहे तो कोई बात नहीं पर एक पटवारी को अपना काम करने और महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए जो मूलभूत सामग्री कुर्सी टेबल आलमारी तथा कम्प्यूटर प्रींटर लैपटाप चाहिए कम से कम वह तो विभाग को मुहैय्या करा ही देना चाहिए । विडंबना है की जायज आवश्यक जरूरत को भी पूरा करने गंभीरता से गौर नहीं किया जा रहा है।

अनुमान पर कोंडागांव जिले में चल रहा है काम चलाऊ काम

पूरे छत्तीसगढ़ में कोंडागांव जिला ही ऐसा जिला है ज़हां आजादी के बाद बंदोबस्त नहीं हो पाया है। बताया जाता है की अंग्रेजों के जमाने में लगभग 1924-25में यंहा बंदोबस्त हुआ रहा होगा जिसके बाद कभी भी बंदोबस्त कराया ही नहीं गया।इतने लंबे समय बाद भी बंदोबस्त न हो पाने के चलते उस जमाने के राजस्व अभिलेख और जमीनी हकिकित में आमूल चूक परिवर्तन आ चुका है ।जंहा बड़े झाड़ छोटे झाड़ जंगल दर्ज था वंहा बड़े बिल्डिंगों का जंगल खड़ा हो गया है ।गुलामी काल के पुराने अभिलेख एवं नक्शा का हाल इतना खराब हो गया है कि कुछ पल्ले नहीं पड़ता।बस अनुमान अंदाज से ही कामचलाउ काम चल रहा है,परन्तु समय समय पर बहुत गंभीर विवाद भी उपजते रहता है।जिसके लिए भी निशाना पटवारी राजस्व निरीक्षक तहसीलदार को बनना पड़ता है। कोंडागांव जिला का बंदोबस्त कराने की मांग पिजले कयी दशक से उठाया जा रहा है पर बंदोबस्त हो ही नहीं पाया।इस मसले को ही देखते हूए मुख्यमंत्री का 26जनवरी कोंडागांव जिला मुख्यालय और 27जनवरी को केशकाल के कोंगेरा आगमन होने पर सबसे प्रमुख मांग के बतौर पर जिले का बंदोबस्त कराने का मांग किया गया था। जिस पर मुख्यमंत्री ने गंभीरता से गौर करके जिला का बंदोबस्त करवाने की घोषणा कर दिया था। मुख्यमंत्री की घोषणा का जिलावासियों ने दिल खोलकर स्वागत किया था। और बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं बंदोबस्त आरंभ होने का ताकि बंदोबस्त हो जाये और जमीन से जुड़ी समस्या का स्थाई समाधान हो जावे।