वर्ष 1908 में प्रकाशित हुई थी उनकी बस्तर पर लिखी गई पहली किताब बस्तर भूषण
जगदलपुर। 113 वर्ष पहले बस्तर की पुरातात्विक – सांस्कृतिक और नैसर्गिक विरासत पर पहली किताब लिखने वाले पं. केदारनाथ ठाकुर के नाम पर संभागीय मुख्यालय जगदलपुर में किसी प्रतिष्ठान का नामकरण नहीं हो पाया है। सिरहासार चौक स्थित जिला पुरातत्व संग्रहालय में बस्तर संभाग के सातों जिलों से संग्रहित की गई पुरातात्विक महत्व की मूर्तियां सहेज कर रखी गई हैं।अब इसे बस्तर का सांस्कृतिक धरोहर स्थल बनाने की भी पहल शुरू हो गई है इसलिए दुनिया को बस्तर से अवगत कराने वाले पं. केदारनाथ ठाकुर का सम्मान करते हुए जिला पुरातत्व संग्रहालय का नामकरण उनके नाम पर किया जाना चाहिए।
जिला पुरातत्व समिति के सदस्य हेमंत कश्यप, इंद्रावती बचाओ अभियान के सदस्य संपत झा ने यह सुझाव रखते हुए कहा है कि पं. केदारनाथ ठाकुर द्वारा वर्ष 1908 में लिखी गई किताब बस्तर भूषण को बस्तर का इनसाइक्लोपीडिया माना जाता है। इस किताब में उन्होंने बस्तर की सांस्कृतिक, प्राकृतिक और पुरातात्विक स्थलों को बखूबी चित्रण किया है। बस्तर पर आलेख लिखने वाले कलमकार आज भी बस्तर भूषण को संदर्भ ग्रंथ मानते हैं। पं. केदार ठाकुर ने हिंदी में कुछ और किताबें भी लिखी हैं। जब भी बस्तर साहित्य की चर्चा होती है पं.केदारनाथ ठाकुर का नाम सबसे पहले आता है। इसके बावजूद अब तक बस्तर में उनके नाम से किसी भी सार्वजनिक प्रतिष्ठान का नामकरण नहीं किया गया है। पं. केदारनाथ ठाकुर ने अपनी किताब में बस्तर संभाग को सहेजा है और जिला पुरातत्व संग्रहालय में भी बस्तर संभाग के सातों जिलों की पुरातत्व संपदा को सहेजने का प्रयास किया गया है। लंबे समय से जिला पुरातत्व संग्रहालय के नामकरण पर चर्चा हो रही है। हमारा सुझाव है कि बस्तर पर पहली किताब लिखने वाले पं. केदारनाथ ठाकुर की स्मृति में संग्रहालय का नामकरण किया जाना चाहिए। संभवत यह सर्वमान्य होगा और किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए।