सुपरमैन सिपाही ने किया है चाटूकारिता में पीएचडी, इसके हस्तक्षेप के बगैर नहीं हिलता विभाग का एक भी पत्ता
सबसे ज्यादा हिस्सा सुपरमैन सिपाही का, शासकीय दुकान का किराया भी इसी के हाथ
सुपरमैन सिपाही के तेवर, कभी नहीं दिखा वर्दी में… त्यौहारों में सबसे ज्यादा ब्लैक…
सुपरवाइजर की नौकरी चाहिए तो सालाना दो 50 हज़ार
इच्छानुरूप ब्रांड का नहीं मिलना, डीओ का खेल…भ्रष्टाचार इतना की खड्डे भी नहीं छोड़े…
जगदलपुर – शासकीय मदिरा दुकानों में चल रहे बंदरबांट के कारोबार में जैसे-जैसे प्याज के छिलकों की तरह परतें खुलने लगी हैं वैसे-वैसे इन दुकानों से लेकर विभाग के अधिकारी/कर्मचारी तक के आँखों से आंसू निकलने लगे हैं. इस बार कुछ ऐसी जानकारियां मिली हैं जिससे दुकानों और विभाग में हो रही ऊपरी कमाई से लेकर कई खुलासे हुए हैं. इन खुलासों में चाटूकारिता से लेकर डीओ और दरोगा की संदेहास्पद भूमिका भी शामिल है. ताज्जुब की बात तो यह है कि जिले के दुकानों सहित विभाग के अधिकारियों, शराब कंपनी और प्लेसमेंट एजेंसी तक को विभाग का एक अदना सा सिपाही अपनी उँगलियों में नचा रहा है और आला-अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है.
सुपरमैन सिपाही ने किया है चाटूकारिता में पीएचडी, इसके हस्तक्षेप के बगैर नहीं हिलता विभाग का एक भी पत्ता
शराब दुकानों और इनके पूर्व-कर्मचारियों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, विभाग के एक सिपाही की अन्य कर्मचारियों और दुकानों में इतनी पैठ है कि उससे उलझने की हिमाकत न तो ये करते हैं और न ही अधिकारी करते हैं. दरअसल, इस सिपाही ने चाटूकारिता में पीएचडी तो किया ही है साथ ही इसके गुट के अन्य दो लोग समूचे विभाग को चला रहे हैं. इस सिपाही द्वारा किसी भी आतंरिक सेटिंग फिर चाहे वो शराब कंपनी हो या फिर दुकानों से उपरी कमाई की उगाही या फिर अधिकारियों तक हिस्सा पहुंचाने की बात; को करना मामूली बात है. कई वर्षों से एक ही जिले में पदस्थ होने का भरपूर फायदा उठाते हुए इसने राजनितिक पकड़ भी बना ली है, जिसके चलते सीधे तौर पर इसके विरुद्ध कार्यवाई का किया जाना लगभग असंभव सा हो गया है.
सबसे ज्यादा हिस्सा सुपरमैन सिपाही का, शासकीय दुकान का किराया भी इसी के हाथ
सूत्र बताते हैं कि नया बस स्टैंड स्थित शराब दूकान इसी सिपाही की संपत्ति है जिसका किराया भी इसी के हाथ है. अब विभागीय नियमों की अनदेखी क्यों हो रही है यह तो विभाग के ही लोग बता सकते हैं. पूर्व-कर्मचारियों ने बताया कि डीओ और दरोगा का दुकानों से महिना बंधा हुआ है, जिसकी पूरी सेटिंग इस सिपाही द्वारा ही की जाती है. सिपाही के साथ इसके गुट के अन्य दो लोग सुपरवाइजर के पास जाते हैं और हिस्से की चर्चा करते हैं फिर डीओ तक बात पहुंचाई जाती है. चूँकि दुकान में कार्यरत सभी कर्मचारी निचले स्तर और प्लेसमेंट एजेंसी के अधीन होते हैं, इनके द्वारा की जाने वाले बंदरबांट की जानकारी कई दफा डीओ को भी नहीं होती है और न ही ये सीधे डीओ से संपर्क साधते हैं. यही नहीं, सबसे ज्यादा ऊपरी कमाई का हिस्सा इसी सुपरमैन सिपाही को ही जाता है. पूर्व की दुकानों में आहता से इस सिपाही द्वारा प्रति माह एक-डेढ़ लाख रुपये की ऊपरी कमाई बंधी हुई थी. यूँ मान लें कि समूचे विभाग में नक़ल के लिए अकल की आवश्यकता होने की कहावत अपने शबाब पर है.
सुपरमैन सिपाही के तेवर, कभी नहीं दिखा वर्दी में… त्यौहारों में सबसे ज्यादा ब्लैक…
इस सिपाही के तेवर इतने हैं कि इसे कभी भी शासकीय वर्दी में नहीं देखा गया है. अपने दो वर्दीधारी चमचों के साथ हमेशा यह शहर की शराब दुकानों में पहुँच जाते हैं, सुपरवाइजरों से हिस्से की बात करते हैं, कमाई कम होने की बात कहने पर गंदे लहजे में बात करते हैं. कई दफा तो सुपरवाइजरों को इसके सामने गिडगिडाते हुए भी देखा गया है. बावजूद, सिपाही द्वारा कोई रहम नहीं किया जाता है. पूर्व-कर्मचारियों का कहना है कि त्यौहारी और स्थानीय दियारी इत्यादि पर्वों में सबसे ज्यादा ब्लैक में शराब की बिक्री की जाती है. मैनेजर ही स्थानीय और ग्रामीण अंचल के कोचियों को खुलेआम शय देते हुए निर्धारित मात्रा से अधिक की सप्लाई करते हैं. इसके लिए भी सिस्टम तय है. कोचियों को स्पष्ट निर्देश दिया जाता है कि एक बार आकर निर्धारित मात्रा में शराब क्रय कर लें, फिर दो मिनट बाद आकर और ले जाएँ. जितना जरुरत उतना शराब आसानी से इन कोचियों को मिल जाता है. इसका प्रमाण एक हफ्ते के सीसीटीवी की जांच किये जाने से मिल सकेगा. यही नहीं, नियमानुसार विभाग के दरोगा को प्रतिदिन दुकानों का भ्रमण करना और सीसीटीवी की जांच करनी होती है लेकिन कभी-कभी ही वे शिरकत करते हैं. इसी क्रम में डीओ को भी प्रत्येक हफ्ते इन दुकानों में जाना है, लेकिन वे कभी नहीं जाते. जब डीओ द्वारा दरोगा को फटकार लगाया जाता है तभी ये दुकानों में अपनी टीम के साथ पहुँचते हैं.
सुपरवाइजर की नौकरी चाहिए तो सालाना दो 50 हज़ार
पूर्व-कर्मचारियों ने आरोप लगाते हुए बताया कि विभाग में इस कदर भ्रष्टाचार हावी है कि एक सुपरवाइजर को नौकरी में रखने के लिए प्लेसमेंट कंपनी द्वारा 50 हज़ार रुपये की घूस ली जाती है. यही नहीं सेल्समैन के लिए 30 हज़ार और खड्डा फेकने/जमाने वाले के लिए 20 हज़ार की दर तय है. और तो और यह रकम इन कर्मचारियों को सालाना देनी होती है और विभागीय लोगों द्वारा यह कथन दिया जाता है कि इस राशि से विभाग को हो रहे नुकसान की भरपाई की जाती है. ताज्जुब की बात तो यह है कि इस पूरे खेल में जब प्लेसमेंट कंपनी का जिम्मेदार शहर पहुँचता है तो इसकी पूरी सेटिंग सुपरमैन सिपाही द्वारा की जाती है और इसके लिए सिपाही द्वारा मोटी रकम भी डकार ली जाती है.
इच्छानुरूप ब्रांड का नहीं मिलना, डीओ का खेल…
पूर्व-कर्मचारियों ने बताया कि अकसर ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ ब्रांड की शराब अन्य जिलों या राज्यों में आसानी से मिल जाती है लेकिन वही ब्रांड शहर में उपलब्ध नहीं होती है. इसके पीछे भी बहुत बड़ा भ्रष्टाचार छुपा हुआ है. ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि जिले में कौन सी ब्रांड की बिक्री होगी इसका अंतिम फैसला या यूँ कहें की अंतिम सूची, विभाग के डीओ बनाते हैं. कंपनी से आये लोग सीधे डीओ से संपर्क करते हैं जिसके बाद एक मोटी रकम का आदान-प्रदान होता है या फिर प्रति नग दर तय होती है, जिसके बाद ही उस ब्रांड को दुकानों में रखने की अनुमति मिलती है. यही नहीं, अधिकारी ही इसके बाद प्रति बोतल ऊपरी दर तय करते हैं. सुपरवाइजर द्वारा रिस्क होने या मना करने पर सुपरमैन सिपाही अपनी विशेष भूमिका निभाते हुए इनसे मिलते हैं और उदहारण स्वरुप 20 रुपये की ऊपरी दर पर 15 रुपये उन्हें देने और 5 स्वयं रखने की बात कहते हैं. सबसे कम आरएसपी के ब्रांड से लेकर हाई ब्रांड तक में भी ऊपरी कमाई की राशि पहले से तय होती है.
भ्रष्टाचार इतना की खड्डे भी नहीं छोड़े…
पूर्व-कर्मचारियों के मुताबिक, विभाग द्वारा भ्रष्टाचार की सीमा तो तब लांघ ली जाती है कैर्रेट के साथ आने वाले खड्डे पर भी प्लेसमेंट कंपनी और अधिकारी अपना हिस्सा लेना नहीं छोड़ते. प्रति दुकान, औसतन प्रति माह 75-80 हज़ार रुपयों की बिक्री होती है, जिसमें से आधा प्लेसमेंट कंपनी रखती है और आधा डीओ/दरोगा के पास चला जाता है, इसका अमूमन कोई रिकॉर्ड या पुष्ट जानकारी नहीं रखता.