बिना आग लगे कैसे निकला धुंआ, एक तरफ खाई, एक तरफ कुंआ…

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(अर्जुन झा)

छत्तीसगढ़ की भाजपा राजनीति में भूचाल ला देने वाले एक प्रसंग में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह का एक स्पष्टीकरण सामने आया है, जिसमें उनकी ओर से कहा गया है कि उन्होंने भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है, ऐसा नहीं कहा। जिस अखबार ने डॉ. रमन का बयान प्रमुखता से सार्वजनिक किया, उसने डॉ. रमन का पक्ष पेश करते हुए यह भी कहा है कि भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में डॉ. रमन सिंह ने समापन भाषण दिया था। 200 से अधिक पदाधिकारी मौजूद थे। जिम्मेदार पदाधिकारियों ने चर्चा में ऐसे बयान की जानकारी दी थी, जिसे डॉ. रमन सिंह ने खारिज कर दिया। मतलब यह है कि डॉ. रमन का जो कथित बयान सुर्खियों में आया, वह मीडिया तक पहुंचाने में भाजपा के उन जिम्मेदार लोगों की कथित भूमिका है, जो उस वक्त वहां मौजूद थे और डॉ. रमन सिंह का सम्बोधन सुन रहे थे। अंदर की बात बाहर यूं ही नहीं आ जाती। वह स्वरूप बदलकर भी इस तरह बाहर आये तो भी अचरज की बात है क्योंकि भाजपा स्वयं को बहुत अनुशासित पार्टी मानती है। उसके कार्यकर्ता भाजपा को अन्य राजनीतिक दलों से भिन्न बताते हैं। मगर यह जो हो गया, वह बता रहा है कि वक्त बदल गया है। जब डॉ रमन सिंह कह रहे हैं कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा कि भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है तो मान लें कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा होगा।

कई बार जब कोई अपने घर में खुलकर कोई बात रख रहा हो तो पहली बात यह है कि घर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए। दूसरी बात यह है कि किसी बात के संदर्भ और भावनाओं का स्वरूप नहीं बदला जाना चाहिए। तथ्य का मूल रूप में ही देखना चाहिए। लेकिन, अब ऐसा अक्सर नहीं होता। दीवारों के कान होते हैं तो घर के भेदिये भी कम नहीं हैं। मीडिया तो अपना काम करेगा। उसे जब भाजपा के ऐसे लोग जानकारी देंगे, जिन पर वह भरोसा कर सकता है तो वह जानकारी सामने लाने की प्रतिबद्धता निभाएगा। किसी मामले में संबंधित व्यक्ति का पक्ष भी पता कर लिया जाय तो विवाद की वैसी स्थिति नहीं बनती, जैसी इस मामले में सामने आई। फिर जब राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके, किसी पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी के बयान की बात हो तो इतना शिष्टाचार जरूरी है कि केवल बताई गई बातों पर पूर्ण भरोसा करने की बजाय संबंधित व्यक्ति से चर्चा कर ली जाए। मगर कई बार यह अपेक्षित गंभीरता उपेक्षित हो जाती है। तब भी भाजपा को मीडिया से टकराव मोल लेने की जगह चिंता यह करनी चाहिए कि उसके अंतःपुर में यह क्या हो रहा है और सुनियोजित सी लगने वाली यह अंतर्कलह आखिरकार भाजपा के लिए ही घातक है। एक बड़ा सवाल यह भी है कि बिना आग के धुंआ कैसे निकल सकता है। कहने वाले यह भी कह सकते हैं कि जब बात बिगड़ गई तो संगठन के दबाव में आकर बात को खारिज कर दिया गया। यहां एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि कल तक रमन सिंह के चेहरे से दूरी बनाती दिखने वाली भाजपा अब उनकी सरकार के काम को जनता के सामने रखने तैयार है। भाजपा को सावधान हो जाना चाहिए कि वह इस तरह के विवादों पर नियंत्रण करे। अन्यथा वह इसका दुष्प्रभाव झेलने तैयार रहे। भाजपा में इस विवाद से एक तरफ कुंआ और एक तरफ खाई वाली नौबत दिख रही है। यह शुभ लक्षण नहीं हैं।