पेसा कानून नियम 2022 को लेकर हुई सुकमा में कार्यशाला

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जगदलपुर :- पेसा कानून नियम 2022 को लेकर जिला प्रशासन सहयोग से सर्व आदिवासी समाज सुकमा द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम शबरी ऑटोटोरियम कुंम्हाररास सुकमा में रखा गया था । जिसमें पेसा और वन अधिकार मान्यता कानून 2006 तथा संशोधन नियम 2012 पर समाज के बुद्धिजीवी वर्गो ने अपने बात रखें । जिसमें कोया भूमकाल क्रांति सेना के सेनापति अश्वनी कांगे ने अवगत कराया कि ग्राम स्वराज की परिकल्पना :- दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए: उदारीकरण की नीति आई और ग्राम स्वराज की परिकल्पना की गयी.
एक ओर उदारीकरण की नीति के तहत देश के कई कानूनों में शिथिलता लाते हुए उद्योग धंधों को बढ़ावा देने के नाम पर कठोर नियमों में बदलाव किए गए और दूसरी ओर इस देश में सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया

जिसके तहत 1992 में 73वा संविधान संशोधन अधिनियम लाया गया और उसमें जैसे केंद्र में लोक सभा है, राज्य में विधान सभा है, उसी प्रकार गांव में ग्राम सभा को जगह दी गई. इसके साथ ही ग्राम सभाओं को शक्ति दी गई कि गाँव के स्तर पर ग्रामसभा सभी तरह के कामकाज को अपनी परंपरा के अनुसार करने के लिए सक्षम है. गांधी जी के सपनों का ग्राम स्वराज को पूरा करने के लिए सबसे निचले स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई और संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची के 29 विषयों को ग्राम पंचायत स्तर पर या ऐसा कहें कि ग्रामीण विकास की अवधारणा को लेकर ग्राम सभा को सशक्त करने के लिए सौंपा गया.

संवैधानिक व्यवस्था:- पंचायती राज व्यवस्था देश में 1993 में लागू की गई लेकिन ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए जो प्रावधान संविधान में अनुच्छेद 243(ड) के रूप में जोड़ा गया उसमे कहा गया कि पंचायती राज व्यवस्था पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में लागू नहीं होगी. इसका मतलब स्पष्ट है कि पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था जैसी कोई भी व्यवस्था पहले से नहीं थी इसलिए वहां पर यह लागू नहीं हो सकती है और यदि लागू करना है तो भारत सरकार को इसके लिए अलग से कानून बना के उसको विस्तारित करना पड़ेगा.

अपवादों और उपन्तारणों के साथ लागू :- 1993 की पंचायती राज व्यवस्था को पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में भी विस्तार करने की बात संविधान के अनुछेद 243(ड) के पैरा 4 के उप पैरा (ख) में कही गई है. उसमे कहा गया है कि यदि संसद चाहे तो अपवादों और उपन्तारणों के साथ उसे विस्तारित कर सकता है. इसका मतलब है कि पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में सशर्त लागू होगी. संविधान के भाग 9 के अपवादों और उपान्तरणों (पेसा की धारा 4) के साथ लागू करने की बात संविधान का अनुच्छेद 243M(4)(b) में निर्देशित है, जो पाँचवी अनुसूची के पैरा 5(1) से लिया गया है. मतलब पंचायत कानून की साधारण सरंचना से अनुसूचित क्षेत्रों की विकेन्द्रित प्रशासनिक व्यवस्था अलग होगी जिनका रूढीजन्य विधि, सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं तथा सामुदायिक संसाधनों की परंपरागत प्रबंध पद्धतियों के अनुरूप होना आवश्यक है। इसका अर्थ है कि संघ तथा राज्य सरकार के सारे कानूनों को अनुसूचित क्षेत्र में संशोधन कर के ही लागू करना होगा।
इसी के तहत 24 दिसंबर 1996 को पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 देश के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किया गया जिसे हम पेसा कानून के नाम से जानते हैं. यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि आज 25 साल बाद भी इस कानून के क्रियान्वयन को देखेंगे तो यह सही तरीके से नहीं हो पाया है. ऐसे समय में इस कानून को लागू करने के लिए अभी 2022 में नियम बनें हैं. इसका क्रियान्वयन कैसे होगा यह बहुत बड़ा सवाल है क्योंकि सभी कानून जो पेसा की धारा 4 से असंगत है को पहले संशोधित कर के लागू करना होगा क्योंकि पेसा कानून के 1996 में लागू होने के बाद उसकी धारा 5 के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में जो कानून प्रवृत थे उन्हें पेसा में दिए गए अपवाद और उपान्तरण के अनुसार एक साल के भीतर सुधारते हुए संशोधन के साथ लागू किया जाना चाहिए था. लेकिन असल में हम देखते हैं कि आबकारी अधिनियम, पंचायत राज अधिनियम, भू राजस्व संहिता इत्यादि गिने चुने 5-6 कानूनों के अधिनियम/नियम में ही संशोधन किए गए और बाकी को नहीं सुधारा गया.

पेसा:- संविधान की 11वीं अनुसूची में 29 विषय हैं. उन 29 विषयों को पंचायत के माध्यम से गांव में क्रियान्वयन करना है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि कितने कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है और जो आज तक नहीं हुए हैं. पेसा ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए महती भूमिका निभाने वाला कानून है जिसका नियम अभी 8 अगस्त 2022 को अधिसूचित हुआ है. भारत की अधिकांश जनसंख्या गांव में बसती है. वहां पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण विकास को ध्यान में रखते हुए यह यह कानून आने वाले समय में बहुत अहम भूमिका निभाने वाले हैं.
पिछले 27 सालों में अभी तक ग्राम पंचायत को ग्रामसभा से बड़ा माना जाता रहा है लेकिन ऐसा नहीं है. ग्राम सभा सर्वोपरि है. पंचायत, ग्रामसभा की कार्यपालिका होगी और उनके द्वारा लिए गए निर्णय व अनुमोदन का क्रियान्वयन करेगी. लेकिन यह बात ग्रामसभा को ही नहीं पता है और उसमे जागरूकता की कमी है. इस जागरूकता की कमी के चलते पंचायत उच्च स्तर की संस्थाओं के माध्यम से निर्देशित और संचालित होती है जो कानून के विपरीत है. पेसा कानून की धारा 4 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि भारतीय संविधान के भाग 9 में किसी बात के होते हुए भी राज्य का विधान मंडल उस भाग के अधीन कोई भी कानून नहीं बनाएगा जो उस के (क) से (ण) तक की विशेषताओं से असंगत हो. इसके तहत विधानसभा में बनने वाले सभी कानून जो अनुसूचित क्षेत्र में लागू होने वाले होंगे उन सभी कानूनों को बनाने के लिए या बनाने से पहले अनुसूचित क्षेत्रों के ग्राम सभाओं से परामर्श/सहमती लेना अनिवार्य है.

5वी अनुसूची:- मध्य भारत के राज्यों में सबसे बड़ा अनुसूचित क्षेत्र वाला राज्य छत्तीसगढ़ है जहाँ के भू–भाग का करीब 60 प्रतिशत भाग अनुसूचित है. इन 27 सालों में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जो विकास अनुसूचित क्षेत्रों में होना था वह नहीं हुआ है. त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में ग्राम सभा को जो निर्णय लेने के अधिकार थे उस अधिकार को कम किया जा रहा है. यह इसलिए हो रहा है क्योंकि नियम में स्पष्टता का अभाव है. तब सवाल खड़ा होता है क्या पेसा नियम आ जाने से ग्राम सभाएं सशक्त हो सकेंगी? यह आने वाला समय ही बताएगा. जिस तरीके से पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया वह गांव में व्यवस्था बनाने के बजाय उसे बिगाड़ने वाली व्यवस्था बनते जा रही है. ऐसे में सवाल खड़े होता है कि आने वाले समय में व्यवस्थाएं सुधरेगी क्या? जिस तरीके के जागरूकता होनी चाहिए वह आज भी नहीं है.
यह सच्चाई है कि गाँव गणराज्य की मूल चेतना विकास की दौड़ में अनदेखी रह गयी है. वहां टकराव जैसी स्थिति बनती गयी है. आदिवासी इलाको में स्थानीय परंपरागत सामाजिक आर्थिक व्यवस्था और राज्य औपचारिक तंत्र के बीच की विसंगति गहराती गयी है जिसका मुख्य कारण है आदिवासी इलाकों में 5वी अनुसूची के प्रावधानों का ईमानदारी से अमल ना करना. आदिवासी इलाकों के परंपरागत व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए तथा लोकतान्त्रिक विकास के लिए 5वी अनुसूची के प्रावधानों का पालन तथा जन प्रतिनिधि, विभागीय अधिकारी एवं कर्मचारीगण, पंचायत सदस्यों को इस पेसा कानून एवं नियम को आत्मसात करने के लिए बड़ा कदम उठाना होगा तथा गाँव के लोंगो को भी इस परिवर्तनकारी बदलाव को समझना होगा. लोग ग्रामसभा की गरिमामयी भूमिका का एहसास करें और आत्मविश्वास के साथ अपनी व्यवस्था का संचालन अपने हाथ में लेंगे तभी समाज के शोषण में कमी, समाज का सशक्तिकरण और आर्थिक विकास आदिवासी मानक परंपरा के अनुरूप हो सकेगा और राज्य की व्यवस्था के बीच गहराती विसंगति और बढ़ते टकराव में कमी आएगी.

प्रशासन और नियंत्रण :- संविधान की पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों, जो प्राचीन रीति-रिवाजों और प्रथाओं की एक सुव्यवस्थित प्रणाली के माध्यम से अपने प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते हैं और अपने निवास स्थान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को संचालित करते हैं, के प्रशासन और नियंत्रण के सम्बन्ध में पेसा कानून में प्रावधान किया गया है। इस सामाजिक परिवर्तन के युग में आने वाली चुनौती का सामना करने के लिए आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक-आर्थिक परिवेश को छेड़े या नष्ट किए बिना उन्हें विकास के प्रयासों की मुख्य धारा में शामिल करने की अनिवार्य आवश्यकता महसूस की गई है. अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभाओं और पंचायतों को लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को सुरक्षित और संरक्षित करने का अधिकार दिया गया है, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधन और विवाद समाधान और स्वामित्व के प्रथागत तौर-तरीके, गौण खनिज, लघु वन उपज का स्वामित्व, आदि के सम्बन्ध में प्रावधान किये गए है.

पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन क्यों जरुरी है :- पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन न केवल विकास लाएगा बल्कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में लोकतंत्र को भी गहरा व मजबूत होगा। इससे निर्णय लेने में लोगों की भागीदारी में वृद्धि होगी।  पेसा आदिवासी क्षेत्रों में अलगाव की भावना को कम करेगा और सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग पर बेहतर नियंत्रण स्थापित करेगा। पेसा से जनजातीय आबादी में गरीबी और अन्यत्र स्थानों पर पलायन कम हो जाएगा क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण और प्रबंधन से उनकी आजीविका और आय में सुधार होगा। पेसा पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में शोषण को कम करेगा क्योंकि वहां की ग्राम सभाएं उधार पर लेन-देन एवं शराब की बिक्री खपत पर नियंत्रण रख सकेगी एवं गांव बाजारों का प्रबंधन करने में सक्षम होगी। पेसा के प्रभावी क्रियान्वयन से भूमि के अवैध हस्तान्तरण पर रोक लगेगी और आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तान्तरित भूमि वापस किया जा सकेगा. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि पेसा परंपराओं, रीति रिवाजों और गाँव की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देगा।
पेसा नियम 2022

पेसा कानून (धारा 4 ख) गाँव को नए सिरे से परिभाषित करते हुए कहता है कि आवास या आवासों के समूह जहाँ समाविष्ट समुदाय अपनी परम्पराओं से अपने क्रियाकलापों का प्रबंध करता है। अर्थात आम तौर पर छोटा समूह जो आपस में जुड़ा हुआ होता है। ऐसे गाँव के लोग स्वयं गाँव बनाने की प्रक्रिया करेंगे, जिसको सरकारी व्यवस्था अपने कागजात में दर्ज कर मान्य करेगा।
पेसा कानून सरंचनागत रूप से सुझाया है कि पंचायत, ग्रामसभा की कार्यपालिका के रूप में कार्य करेगा एवं पंचायत व्यवस्था, ग्रामसभा की शक्तियां और प्राधिकार को अपने हाथ में नहीं ले सकता है । (पेसा की धारा 4 ढ)
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ के पेसा नियम को देखें तो कहा जा सकता है कि पेसा कानून के तहत नियम नहीं बना है। इसलिए की नियम कानून के अनुरूप बनाया जाता है ना की उसके विपरीत जा कर।
पेसा नियम बनाने के पहले छत्तीसगढ़ में प्रचलित सारे कानूनों को संशोधित कर विधानसभा में अनिवार्य रूप से पारित करना होगा । छत्तीसगढ़ के पंचायत राज अधिनियम 1993 में संशोधन सबसे पहले करना होगा। यह कार्य नहीं किया गया तो पेसा कानून के तहत नियम कैसे चल पायेगा? छत्तीसगढ़ में यह कार्य नहीं किया गया है। अभी संशोधन करना बाकी है। (पेसा की धारा 4 एवं 5)
अनुसूचित क्षेत्र के सभी ग्राम सभाओं को संविधान की 11वी अनुसूची के अंतर्गत सारे 29 विषयों से संबधित विभागीय राशी, कर्मचारी तथा कार्य (Funds, Functions, Functionaries) को जिला को हस्तांतरित करने है. इस हेतु राज्य विधान सभा में कानून ला कर पारित करना अनिवार्य है। (पेसा की धारा 4 ण) यह कार्य नहीं किया गया तो पेसा नियम कैसे चलेगा या कैसे कानून सम्मत होगा?
साथ ही यह नियम कब से लागू होगा इसमे संशय है क्योकि ग्राम सभा अध्यक्ष का चयन पंचायत के प्रथम सम्मिलन के बाद करना है. मतलब अगले पंचायत चुनाव तक अध्यक्ष का चयन करने के लिए इन्तेजार करना होगा जो कानून सम्मत नही है.

इसके अलावा पेसा की कुछ धाराओं को पेसा नियम 2022 में ध्यान दिया जाना शेष है :-
पेसा की धारा 4 (घ) के अनुसार ग्राम सभा को विवाद निपटाने के रूढ़िजन्य ढंग का संरक्षण और परिरक्षण करने का अधिकार है। गाँव स्तर पर इस हेतु संरचना बनी हुई हैं जो की 12 गावं के समूह, 84 गांव के समूह आदि पर भी अलग-अलग क्षेत्र अनुसार विस्तारित है। इसे पेसा नियम में नही जोड़ा गया है।
पेसा की धारा 4 (ज) के अनुसार जनपद और जिला स्तर पर ऐसे अनुसूचित जनजाति समुदाय जिनका प्रतिनिधित्व नहीं है, उनके नामांकन हेतु प्रक्रिया का उल्लेख नही है।
पेसा की धारा 4 (झ) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में परियोजनाओं की वास्तविक योजना और उनका कार्यान्वयन राज्य स्तर पर समन्वित किया जाएगा प्रावधान के क्रियान्वयन हेतु कोई बिंदु नही जोड़ा गया है।
पेसा की धारा 4 (ड) और (ढ) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करना है जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों एवं ऐसे राज्य विधानों में, जो पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करें जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों, ऐसे प्रावधान जोडे़ जाने है। इस हेतु स्पष्टता से कोई नियम में नही है। इस हेतु यह जोड़ा जाना अनिवार्य है कि:- ‘‘ ग्राम सभा को स्वशासी निगमित निकाय का दर्जा दिए जाने तथा उसके शाश्वत उत्तराधिकार एवं सामान्य पद मुद्रा होने, उसके नाम से वाद चलाये जाने तथा उसके नाम से उनके विरूद्ध वाद चलाया जाने, उसे चल या अचल संपत्ति अर्जित करने, धारण करने या अंतरित करने, संविदाए करने तथा ऐसी समस्त अन्य बातों जो उसे अपने कर्तव्यों के पालन के प्रयोजन के लिए आवश्यक हो, की शक्ति होगी।‘‘
पेसा की धारा 4 (ड) (vi) के अनुसार ग्राम सभा को सभी सामाजिक सैक्टरों में संस्थाओं और कृत्यकारियों पर नियन्त्रण रखने की शक्ति कैसे प्रदान की गई है यह नियम में स्पष्टत नही है।
पेसा की धारा 4 (ड) (vii) के अनुसार स्थानीय योजनाओं पर और ऐसी योजनाओं के लिए जिनके अंतर्गत जनजातीय उपयोजनाएं हैं, संसाधनों पर नियन्त्रण रखने की शक्ति ग्राम सभा को प्रदान नही की गई है।
पेसा की धारा 4 (ढ) के अनुसार राज्य विधानों में, जो पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करें जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों, प्रावधान जोडे़ जाने वक्त यह रक्षोपाय रखना है कि उच्चतर स्तर की पंचायतें, निम्न स्तर पर की किसी पंचायत की या ग्राम सभा की शक्तियां और प्राधिकार अपने हाथ में न लें। नियमों में इस हेतु कोई प्रयास नही दिख रहा है।
पेसा की धारा 4 (ण) के अनुसार जिला स्तरों पर की पंचायतों में प्रशासनिक व्यवस्थाओं की परिकल्पना करते समय संविधान की छठी अनुसूची के पैटर्न का अनुसरण करने का प्रयास किया जाना था। यह प्रयास पेसा नियमों में दिखाई दे रहा है।इस एक दिवस कार्यशाला सहप्रशिक्षण में संभागीय अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर , पेसा एक्ट मास्टर अश्वनी कांगे , तुलसी ठाकुर , योगेश नरेटी , ललित नरेटी, संदीप सलाम,पोज्जा मरकाम , वेको हूँगा , मनीष कुंजाम पूर्व विधायक कोंटा, गणेश सोरी सहायक आयुक्त सुकमा, हिरमा सोढ़ी, धीरज राणा, गंगा नाग, अयता मंडावी, रामदेव बघेल, रामा सोढ़ी, उमेश सुंडाम, गंगा सोढ़ी, लच्छू नाग, विष्णु कवासी, संतोष उसेंडी, आनंद, मरकाम, गंगा बघेल, गुन्नू राम नाग, लक्ष्मण कोर्राम, पायल सोड़ी,पुस्पलता मुचाकी, डेनिम नाग, वांडो भीमा, कलमु सोमारू, धनीराम नाग, विमलू कर्मा, मंजू कवासी, रमेश नाग, लच्छू कश्यप, कमलेश मरकाम, कोसा मरकाम, प्रवीण सोड़ी, मेघनाथ बघेल, रघु मुचाकी, सहदेव नाग, किशोर नाग, राजकुमार नाग, जयंती नाग, बबिता नाग,मानक नाग, सुनीता नाग, निसा नाग, कवासी लखमा, जोगा कवासी, ज्योति सोड़ी, कलमु लक्ष्मी, हुंगी सोढ़ी, संगीता नाग, आदि उपस्थित थे ।