टाटा ग्रुप को दिया जाए नगरनार संयंत्र

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जनभावना: बस्तर अंचल के लोगों का कहना है कि निजी क्षेत्र के हवाले प्रस्तावित संयंत्र को करना ही है तो टाटा से बेहतर विकल्प नहीं – एयर इंडिया की तर्ज पर हो सकेगा नगरनार इस्पात संयंत्र का उद्धार – इस आदिवासी अंचल के लोगों की उम्मीदें भी होंगी फलीभूत
(अर्जुन झा)
जगदलपुर : बस्तर के लोगों की उम्मीदों और सपनों को पंख लगाने में सहायक साबित होने वाले प्रस्तावित नगरनार इस्पात संयंत्र को आकार देने की सरकारी कोशिश तेज हो गई है. चर्चा है कि सरकार इस संयंत्र को निजी क्षेत्र के हवाले करने जा रही है. ऐसी चर्चाओं के बीच अंचल से अब यह आवाज़ उठने लगी है क़ि नगरनार संयंत्र को निजी क्षेत्र के हवाले करना ही है, तो क्यों ना उसे टाटा ग्रुप के हवाले कर दिया जाए. इससे संयंत्र का कामकाज बेहतर ढंग से संचालित हो सकेगा और सदैव कर्मचारी एवं श्रमिक हित का ध्यान रखने वाला यह ग्रुप बस्तर के लोगों क़ी उम्मीदों पर खरा भी उतरेगा.

फिलहाल राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) के अधीन प्रस्तावित नगरनार इस्पात संयंत्र क़ी स्थापना के लिए कवायद तेज हो गई है. सूत्र बताते हैं कि सरकार इस इस्पात संयंत्र को निजी हाथों में सौंपने वाली है. इसके लिए टेंडर भी बुलाए जा रहे हैं. बस्तर के लोग चाहते हैं कि सरकार ही इस संयंत्र को चलाए और अगर निजी हाथों में सौंपने की ही सरकार की मंशा है, तो स्टील उद्योग का विशेषज्ञ माने जाने वाले टाटा उद्योग समूह को नगरनार संयंत्र सौंप दिया जाए. इसके पीछे लोगों की दलील है कि जिस तरह लगातार दुर्दशा का शिकार हो रही सरकारी विमानन कम्पनी एयर इंडिया टाटा के हाथ में जाने से सारे देश में यह उम्मीद जागी है कि अब इसका संचालन बेहतर तरीके से होगा और यात्री सुविधाओं में भी इजाफा होगा। ठीक उसी तरह से टाटा समूह के हाथों में जाने से नगरनार इस्पात संयंत्र भी विकास के आयाम को छुएगा. आज जिन क्षेत्रों में अच्छी विमान सेवाएं उपलब्ध हैं, वहां तेजी से विकास के रास्ते खुल रहे हैं। इसी भावना से बस्तर के मुख्यालय में विमान सेवा का दायरा बढ़ा है तो इसी सिलसिले में बस्तर में यह चर्चा भी छिड़ गई है कि बस्तर के नगरनार में स्थापित एनएमडीसी के स्टील प्लांट को निजी हाथों में सौंपने के लिए केंद्र सरकार उतावली है तो क्यों न इस प्लांट का संचालन अपने हाथ में लेने टाटा समूह पहल करे। कुछ साल पहले टाटा ने बस्तर में औद्योगिक विस्तार के लिए रूचि दिखाते हुए जमीन अधिग्रहण किया था। तब टाटा ग्रुप ने यहाँ बड़ी रकम खर्च कि थी. लेकिन बाद में कुछ ऐसे हालात बने कि टाटा का उद्योग स्थापित नहीं हो सका और आखिरकार समयावधि बीत जाने के बाद जमीन आदिवासियों को वापस हो गई। अगर टाटा का उद्योग बस्तर में स्थापित हो गया होता तो यहां के आदिवासियों को रोजगार के अवसर मिलते। अन्य बस्तरियों का भी भला होता तो बस्तर विकास की संभावनाएं भी तेजी से बढ़तीं। उम्मीद की जा रही थी कि टाटा का उद्योग स्थापित होने पर बस्तर का विकास टाटानगर जमशेदपुर की तर्ज पर संभव होगा। लेकिन किन्हीं कारणों से यह उम्मीद टूट गई। अब टाटा ने एयर इंडिया के उद्धार की पहल की है तो बस्तर में इन संभावनाओं की दस्तक का इंतजार शुरू हो गया है कि टाटा बस्तर के नगरनार स्टील प्लांट के लिए क्या वैसी ही पहल करेगा, जैसी एयर इंडिया के लिए की है? वैसे भी टाटा स्टील उद्योग क्षेत्र का एक विश्वसनीय ग्रुप है। टाटा समूह देश के लोगों के बीच औद्योगिक विकास के साथ साथ सामाजिक सरोकार का भी प्रतीक माना जाता है।
सांसद बैज उठा चुके हैं मुद्दा
नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण के प्रयासों का शुरू से ही भारी विरोध होता आया है. छत्तीसगढ़ विधानसभा में संकल्प पारित हो चुका है कि यह प्लांट राज्य शासन को दिया जाय। राज्य इसका संचालन करेगा। बस्तर सांसद दीपक बैज भी निजीकरण का पुरजोर विरोध करते हुए लोकसभा में भी यह मामला उठा चुके हैं लेकिन अब तक केंद्र की ओर ले ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि नगरनार स्टील प्लांट छत्तीसगढ़ सरकार को मिल सकता है। यदि यह राज्य को मिलता है तो सरकार खुद संचालित करे, यह बस्तर के लोग चाहते हैं किंतु तब की स्थिति में अगर राज्य ने किसी औद्योगिक संस्थान को इसके संचालन से जोड़ा तो बात वहीं की वहीं रह जायेगी। अब ऐसी स्थिति में कि जब नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण न होने की कोई गारंटी नहीं है तो स्टील क्षेत्र के अनुभवी उद्योग समूह टाटा द्वारा इस दिशा में पहल की जाय तो बस्तर के विकास की राह आसान हो सकती है। यहां के आदिवासियों ने पूर्व में टाटा को अपनी जमीन आखिर विकास की उम्मीद में ही तो दी थी। अब भी यही भावना है कि बस्तर क्षेत्र के विकास और बस्तरियों के रोजगार की संभावना लेकर टाटा की बस्तर वापसी होती है तो यह भी एक आशाओं से भरा कदम होगा। हम यहां इस मामले में राजनीतिक दृष्टिकोण से परे यह देखें कि यदि निजीकरण से बस्तर का कल्याण होने की उम्मीद निकल सकती है तो इसमें राजनीतिक अड़ंगेबाजी फिजूल है। बस्तर तो सिर्फ यही चाहेगा कि नगरनार स्टील प्लांट का संचालन ऐसा हो कि बस्तर के विकास को गति मिल सके और यहां के लोगों को रोजगार मिले।