- कश्मीर जैसी त्रासदी से गुजरना पड़ रहा है बस्तर के आदिवासियों को
- जनजातीय ग्रामीणों को उनकी ही जमीन से बेदखल कर रहे माफिया
- मसगांव में गोठान के लिए आरक्षित भूमि की हो गई खरीदी – बिक्री
बकावंड हिंदुओं को कश्मीर से बेदखल करने के लिए जिस तरह के अत्याचार किए गए थे, उस पर बनी फीचर फिल्म द कश्मीर फाइल्स ने पूरे देश में धूम मचा रखी है। कश्मीर की तरह ही बस्तर से भी आदिवासियों को बेदखल करने के लिए भू माफिया तरह तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। ये भू माफिया प्रतिबंध के बावजूद आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों के हाथों बेच रहे हैं और गांवों के सार्वजनिक उपयोग की जमीन को भी बेचने लगे हैं। पीड़ित आदिवासी जिला प्रशासन और अपने समाज के मुखियाओं से फरियाद करते आ रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई अब तक नहीं हो पाई है।
इन निरीह आदिवासियों की आवाज बनकर बॉलीवुड या छलीवुड आगे आने और उनकी हालत पर द बस्तर फाइल्स फिल्म बनाने से तो रहे, लिहाजा लगता है कि बस्तरिहा आदिवासियों की चीख पुकार बस्तर की वादियों में ही दबकर रह जाएगी। बस्तर जिले अनेक गांवों में लंबे समय से भू माफिया सक्रिय हैं, जो आदिवासियों को बेदखल कर उनकी जमीन बाहरी लोगों और गैर आदिवासियों के पास बेचते जा रहे हैं। यही नहीं ये भू माफिया कई गांवों में तो गोठान, चारागाह, खेल मैदान, सामूहिक कार्यक्रम आयोजन स्थल जैसी सार्वजनिक प्रयोजन की जमीन को भी बेचने से बाज नहीं आ रहे हैं। बस्तर जिले की बकावंड तहसील के कई गांवों में इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं। इस तहसील के ग्राम छोटे देवड़ा, मसगांव में गोठान के लिए आरक्षित भूमि एवं आधा दर्जन आदिवासियों की जमीन का विक्रय दलालों ने कर दिया है। भूमि पर अब साहूकारों ने कब्जा जमा लिया है। अपनी ही जमीन से बेदखल कर दिए गए आदिवासी ग्रामीण न्याय पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। उन्होंने जिला प्रशासन और आदिवासी समाज से गुहार लगाते हुए अपनी जमीन को कब्जा मुक्त कराने की मांग की है। बकावंड तहसील के मसगांव में 20 एकड़ से अधिक रकबे वाली शासकीय भूमि को गोठान के लिए आरक्षित किया गया था। इस भूमि के समीप खसरा नंबर 141, 142 पर कई आदिवासियों का वर्षो से कब्जा रहा है। इस जमीन पर ये आदिवासी कास्तकारी करते आ रहे हैं। बताया गया है कि भू- माफिया ने राजस्व विभाग के कर्मियों से सांठगांठ कर ड्रीप लगाने के नाम पर इन आदिवासियों की जमीन की बिक्री कर कब्जा जमा लिया है। अब भूमि स्वामी अपनी जमीन पर कब्जा पाने के लिए जिला प्रशासन के चक्कर लगाते फिर रहे हैं। उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि खसरा नंबर 142 की 0.60 हेक्टयेर भूमि के आधार पर सरगीपाल लेम्पस सोसाइटी से लोन भी लिया गया था।इसी तरह खसरा नंबर 141की 0.50 हेक्टयर भूमि के आधार पर केसीसी लोन लिया गया था। दोनों भूखंडों के पट्टे में लोन का उल्लेखय है। ग्रामीणों ने बताया कि उक्त भूमि की बिक्री ही नहीं गई है। इसके बावजूद जमीन का मालिकाना हक दीगर व्यक्तियों के नाम पर दर्ज हो गया है। प्रभावित ग्रामीणों ने जमीन का सीमांकन कराने, मालिकाना हक वापस दिलाने एवं नियम विरूद्ध रजिस्ट्री कराए जाने की जांच कराने तथा इस साजिश में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
आवंटित भूमि की हुई रजिस्ट्री
पीड़ित परिवारों ने अपनी भूमि का हक पाने को लेकर सर्व आदिवासी समाज के संभागीय प्रभारी राजाराम तोड़ेम एवं जिलाध्यक्ष दशरथ कश्यप से मुलाकात कर गुहार लगाई। श्री तोड़ेम ने कहा कि आदिवासियों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ समाज ऐसे पीड़ित परिवारों के साथ है। उन्होंने कहा कि मामले की निष्पक्ष जांच के लिए जिला प्रशासन के आग्रह किया जाएगा और पीड़ितों को न्याय दिलाने और दोषियों पर कार्रवाई की मांग को लेकर बस्तर कलेक्टर से जल्द मुलाकात की जाएगी।
कराएंगे मामले की जांच
मामले की जांच की जाएगी और पंचायत का भी अभिमत लिया जाएगा। आदिवासियों को इंसाफ दिलाएंगे। पंचायत के अनुमोदन के बाद शासकीय भूमि को भी कब्जा मुक्त कराया जाएगा।
ओपी वर्मा एसडीएम, बकावंड