भिलाई इस्पात संयंत्र और दल्ली राजहरा को संजीवनी देगा कलमा नानगुर खदान

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  • कांकेर जिले की कलमा नानगुर खान से होगी लौह अयस्क आपूर्ति
  • दल्ली राजहरा में होगी आयरन ओर की सफाई, मिलेगा सबको काम
  • क्षेत्र के बेरोजगारों, मजदूरों को उपलब्ध होंगे रोजगार के अवसर

दल्लीराजहरा कहते हैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी खुद भूखे रह जाते हैं, मगर मेहमान को खाना जरूर खिलाते हैं। छत्तीसगढ़ की माटी की भी तासीर कुछ इसी तरह की है। छत्तीसगढ़ की रत्नगर्भा धरती अपने लालों का तो ध्यान रखती ही है, दूर दराज के लोगों का भी भला और पोषण करती है। छत्तीसगढ़ की यही रत्नगर्भा धरती अब भिलाई इस्पात संयंत्र और दल्ली राजहरा को संजीवनी देने वाली है। यहां की धरती के एक और हिस्से में उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क का अकूत भंडार मिला है, जो न सिर्फ भिलाई इस्पात संयंत्र की धमन भट्ठीयों को धधकाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा, बल्कि अंतिम सांसे गिन रहे दल्ली राजहरा को भी संजीवनी देगा। दरअसल महामाया क्षेत्र से लगे कलमा नानगुर में स्थित लौह अयस्क खदान से अब भिलाई स्टील प्लांट को दल्ली राजहरा के रास्ते लौह अयस्क की आपूर्ति होगी। कलमा नानगुर में लौह अयस्क का बड़ा भंडार मिला है। वहां 44 एकड़ क्षेत्रफल में उच्च गुणवत्ता वाला लौह अयस्क उपलब्ध है। कलमा नागुर खदान के लौह अयस्क क्वालिटी 61 प्रतिशत आयरन कंटेंट वाली है। कलमा नानगुर खदान दल्ली राजहरा से महज 30 किमी दूर स्थित है। इस क्षेत्र मैं पहुंचने के लिए कच्चे माइंस से हाट हॉटकोंदल मार्ग से होते हुए पहुंचा जा सकता है वही महामाया पहाड़ी के ऊपर से यह क्षेत्र जुड़ा हुआ है इस खदान क्षेत्र को केंद्र सरकार के खनिज मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और इस्पात मंत्रालय ने इसके लिए मंजूरी दे दी है। दुर्ग के सांसद विजय बघेल ने इस मामले में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। सूत्रों के मुताबिक कलमा नानगुर से लौह अयस्क सड़क मार्ग के जरिए पहले दल्ली राजहरा पहुंचेगा। दल्ली राजहरा खदान की वाशरी में धुलाई और सफाई के बाद लौह अयस्क को मालगाड़ियों के माध्यम से भिलाई इस्पात संयंत्र तक पहुंचाया जाएगा। ज्ञातव्य है कि भिलाई इस्पात संयंत्र में लौह अयस्क आपूर्ति के लिए रावघाट माइंस को विकसित करने का काम लगभग पूरा हो चुका है, मगर कुछ अड़चनों की वजह से वहां खनन आरंभ नहीं हो सका है। रावघाट माइंस 220 एकड़ रकबे में फैला हुआ है। पेड़ों की कटाई की स्वीकृति न मिल पाने के कारण खनन अब तक प्रारंभ नहीं हो पाया है। वहीं दूसरी ओर दल्ली राजहरा की खदानों में आयरन ओर समाप्ति की ओर है। वहां न के बराबर लौह अयस्क बचा रह गया है, जो भिलाई इस्पात संयंत्र की सांसों को ज्यादा दिनों तक थामे रख पाने में सक्षम नहीं है। ऐसी विषम परिस्थितियों के बीच कलमा नानगुर की खदान भिलाई इस्पात संयंत्र को नया जीवन देने वाली साबित होगी। बताया गया है कि कलमा नानगुर से लौह अयस्क दल्ली राजहरा तक सड़क मार्ग से ले जाया जाएगा। दल्ली राजहरा माइंस में आयरन ओर की धुलाई और सफाई के लिए वाशरी एवं अन्य उपकरण पहले से ही मौजूद हैं, जिनकी मदद से कमला नानगुर से पहुंचने वाले आयरन ओर की सफाई कर उसे मालगाड़ियों के जरिए भिलाई इस्पात संयंत्र भेजा जाएगा।

स्थानीय लोगों को मिलेगा रोजगार

कलमा नानगुर में लौह अयस्क का खनन आरंभ हो जाने पर क्षेत्र के शिक्षित, प्रशिक्षित बेरोजगार युवाओं और मजदूरों को भरपूर रोजगार मिलेगा। बस्तरिहा मजदूरों को भी काम की तलाश में आंध्ररप्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र की ओर कूच नहीं करना पड़ेगा। उन्हें कलमा नानगुर की लौह अयस्क खदान में ही काम मिलने लगेगा। विदित हो कि बस्तर के मजदूर हर साल मिर्च तोड़ाई और अन्य कार्य करने के लिए हर साल आंध्ररप्रदेश जाते हैं। इसी तरह रोजी रोटी की तलाश में उन्हें तेलंगाना और महाराष्ट्र भी जाना पड़ता है। अब उन्हें पलायन के अभिशाप से मुक्ति मिल जाएगी। कलमा नानगुर लौह अयस्क खदान का सर्वाधिक लाभ कांकेर और बालोद जिलों के बेरोजगारों और मजदूरों को मिलेगा। क्योंकि इन दोनों जिलों की सीमाओं पर ही कलमा नानगुर खदान स्थित है। कलमा नानगुर व आसपास के गांवों में व्यापारिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा

अब दिन फिरेंगे दल्ली राजहरा के भी

कलमा नानगुर की लौह अयस्क खदान भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए तो वरदान साबित होगा ही, डायलिसिस पर रहकर अंतिम सांसे गिन रहे खनिज नगरी दल्ली राजहरा के लिए भी संजीवनी बूटी से कतई कम असरकारी नहीं होगा। एक जमाना था, जब दल्ली राजहरा की खदानों में की जाने वाली ब्लास्टिंग के धमाके पूरे शहर में हर वक्त सुनाई देते थे, डंपर, टिप्पर का रेला लगा रहता था, गैरेजों में मरम्मत के लिए बड़ी गाड़ियों की लाईन लगी रहती थी, लाल रंग की शर्ट और हरे रंग की हाफ पेंट पहने मजदूरों की भीड़ हर तरफ नजर आती थी, दुकानों में बड़ी रौनक रहती थी। अब वो दिन फना हो चुके हैं। न बारुदी धमाके सुनाई देते हैं, न डंपर, टिप्पर बहुत ही दिखते हैं, मजदूरों की भीड़ भी अब नहीं रह गई है और दुकानों में सन्नाटा पसरा रहता है। गैरेजों में वीरानी का आलम रहता है। दल्ली राजहरा माइंस में नौकरी करना बड़े ही शान की बात मानी जाती थी, माइंस के कामगारों का रुतबा ही अलग होता था। महामाया माइंस से लौह अयस्क परिवहन करने के लिए सैकड़ों ट्रांसपोर्टर्स के डंपर, टिप्पर दिन रात महामाया से दल्ली राजहरा के बीच चौबीसों घंटे दौड़ते रहते थे। माइंस में हजारों लोग नियमित कामगार के रूप में काम करते ही थे, लौह अयस्क परिवहन में लगे ट्रांसपोर्टर्स के टिप्पर, डंपर में भी हजारों मजदूरों को काम मिलता था। गैरेज संचालकों और उनके अधीन काम करने वाले मेकेनिक भी अच्छी खासी कमाई कर लेते थे। दुकानदारों का काम भी बढ़िया चल रहा था। अब उम्मीद की जा रही है कि कलमा नानगुर खदान दल्ली राजहरा के पुराने दिन लौटाने में सहायक होगी। ट्रांसपोर्टर्स को फिर से काम मिलने लगेंगा। मजदूरों को पर्याप्त काम मिलेगा और दुकानों तथा गैरेजों में रौनक लौट आएगी