- कर्नाटक के चुनाव में लाई केरला स्टोरी, अब छ्ग में नक्सल स्टोरी
- विस के चुनाव में नक्सलवाद पर फिल्म लांच करवा रही है भाजपा
अर्जुन झा
लोहंडीगुड़ा धर्म – मजहब की बुनियाद पर खड़ी भाजपा हर चुनाव में कोई न कोई धार्मिक हथकंडा जरूर अपनाती है। इसी के दम पर भाजपा आज राजनीति के शिखर पर बैठी नजर आ रही है। राम मंदिर विवाद का मसला और कश्मीर फाईल्स एवं केरला स्टोरी जैसी फिल्में भाजपा के सियासी दांव के उदाहरण हैं। कर्नाटक चुनाव के दौरान आई फिल्म केरला स्टोरी से तो भाजपा का दांव फेल हो गया, अब छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में वह नक्सल स्टोरी पर नया खेल खेलने जा रही है। देखना है कि छ्ग में यह खेल क्या गुल खिलाएगा। भाजपा पर शुरू से आरोप लगते रहे हैं कि वह धर्म के नाम पर राजनीति करती है। जब -जब चुनाव आते हैं, भाजपा धर्म का राग आलापने लग जाती है। देश में इसका सबसे बड़ा उदाहरण अयोध्या का राम मंदिर – बाबरी मस्जिद विवाद पर खेला गया भाजपा का दांव है। इस विवाद को हवा देते हुए उस दौर के शीर्ष भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने पूरे देश में रथयात्रा निकाली थी। इसके जरिए हिंदू मतदाताओं के बड़े वर्ग को भाजपा अपने पाले में करने में सफल भी रही। उस दौरान हुए अधिकतर चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा। भाजपा अपनी हिंदूवादी विचारधारा और पहचान को मजबूत करने में निरंतर लगी रही। इसमें उसे कामयाबी भी मिली। हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में होता गया। बीच – बीच में भारत और पाकिस्तान के बीच जारी खटास और कश्मीर मसले को भी भाजपा ने कैश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कश्मीर से धारा 370 के खात्मे और उरी व पुलवामा के आतंकी हमलों के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राईक को भी भाजपा ने अपना चुनावी हथियार बनाया। कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाईल्स’ को भी भाजपा ने जमकर भुनाया। वहीं ऐन कर्नाटक विधानसभा के चुनावों के वक्त आई फिल्म ‘केरला स्टोरी’ पर भी भाजपा ने कर्नाटक के चुनावों में दांव खेला, बजरंग बली के नाम पर सियासी पासा फेंका, लेकिन यह दांव उल्टा पड़ गया। कर्नाटक में कांग्रेस ने फतह हासिल कर ली। अब छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनावों में भी भाजपा एक फिल्मी खेल खेलने जा रही है। छत्तीसगढ़ में भाजपा का धर्म और धर्मान्तरण का दांव फेल हो चुका है। इसलिए वह अबकी बार छत्तीसगढ़ में भी फिल्मी शो करने वाली है। छग विधानसभा के चुनाव इसी साल नवंबर माह में होने वाले हैं। इस बीच कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। छ्ग के चुनावों में भी कोई फिल्म महत्वपूर्ण रोल अदा करेगी? यह प्रश्न इसलिए उठ रहा है, क्योंकि जिस निर्माता और डायरेक्टर ने केरला स्टोरी फिल्म बनाई व निर्देशित की थी, वही अब छत्तीसगढ़ में जारी नक्सलवाद पर फिल्म बना रहे हैं। इसे भी भाजपा प्रायोजित कदम के रूप में देखा जा रहा है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के पहले पूरे तामझाम के साथ फिल्म केरला स्टोरी को लांच किया गया था, लेकिन उसका कोई लाभ कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा नहीं मिल पाया।*बॉक्स**चुनाव से पहले रिलीज हो जाएगी फिल्म*छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले केरला स्टोरी बनाने वाले डायरेक्टर बस्तर में नक्सलियों के नाम पर ‘बस्तर के नक्सलवाद का असली सच’ शीर्षक से एक फिल्म बना रहे हैं। नक्सल समस्या पर आधारित इस फिल्म के पोस्टर को डायरेक्टर ने मुंबई में जारी किया है। यह फिल्म छ्ग विधानसभा चुनावों के पहले रिलीज हो जाएगी और पूरे राज्य के सिनेमा घरों में इसका प्रदर्शन शुरु हो जाएगा। इस फिल्म को पूरे जोरशोर से छत्तीसगढ़, खासकर बस्तर संभाग के 7 जिलों के 12 विधानसभा क्षेत्रों सहित पूरे प्रदेश में इसे रिलीज करने की तैयारी कर ली गई है। अब यह फिल्म मतदाताओं पर कितना असर डाल पाएगी, फिल्म में वास्तविकता कितनी है, यह तो फिल्म रिलीज होने के बाद ही पता चलेगा।*बॉक्स**भाजपा के भ्रष्टाचार की फाइलें खोल रही कांग्रेस*छत्तीसगढ़ विधानसभा का अंतिम सत्र 18 से 21 जुलाई तक मात्र 4 दिन के लिए बुलाया गया है। सत्र के दौरान विधानसभा में भाजपा के कुल जमा 13 विधायक अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस सरकार के कथित भ्रष्टाचार और जनविरोधी नीतियों को लेकर विधानसभा में जोरशोर से प्रमाण सहित मामला उठाया जाएगा। इधर कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस भी कमर कस चुकी है।अविश्वास प्रस्ताव के मामले को लेकर कांग्रेस सरकार में भी प्रारंभिक मंथन हो पूरा चुका है। चर्चा तो यह है कि सरकारी अलमारियों में जो फाइलें कैद हैं और जिनमे भाजपा सरकार के 15 साल के कथित भ्रष्टाचार के प्रमाण भरे हुए हैं, उन फाइलों धूल हटाकर उसे बाहर निकालने की तैयारी भी प्रारंभ हो चुकी है। छग विधानसभा के चुनाव में जनता की बात कम और सियासी दांवपेंच की बात ज्यादा होगी। आरोप प्रत्यारोप का खुल्लम खुल्ला दौर भी चलेगा। यह जनीतिक दांवपेंच जनता को कितना प्रभावित कर पाएगी, यह दिसंबर में तब पता चलेगा, जब चुनावी नतीजे आ जाएंगे।