नगरनार प्लांट का जहरीला जल बना किसानों की जी का जंजाल

0
34
  • स्टील प्लांट से डेढ़ सौ एकड़ उपजाऊ जमीन हो गई बंजर
  • लगातार बहाया जा रहा प्लांट का जहरीला पानी
  • खेतों के अलावा निस्तारी तालाब भी हुआ प्रदूषित
    -अर्जुन झा-

नगरनार यहां स्थित इस्पात संयंत्र किसानों और ग्रामीणों के लिए मुसीबतों का सबब बनता जा रहा है। स्टील प्लांट से निकलने वाला जहरीला जल किसानों की जी का जंजाल बन गया है। इस अति प्रदूषित और जहरीले पानी से डेढ़ सौ एकड़ कृषि जमीन जल गई है और बंजर हो चुकी है तथा सार्वजनिक निस्तारी तालाब भी प्रदूषित हो चुका है।
बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से 18 किमी दूर स्थित नगरनार में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा स्टील प्लांट की स्थापना की गई है। प्लांट में विभिन्न प्रक्रियाओं के दौरान जो पानी इस्तेमाल किया जाता है, उसके निस्तारण की व्यवस्था नहीं की गई है। स्टील निर्माण के वक्त विभिन्न धातुओं और केमिकल का उपयोग होता है। ये धातु तथा केमिकल पर्यावरण और जन स्वास्थ्य के लिए बड़े ही खतरनाक होते हैं। यही घातक धातु और केमिकल प्लांट में उपयोग होने वाले पानी के साथ मिलकर पानी को भी जहरीला बना देते हैं। यही जहरीला पानी नगरनार स्टील प्लांट के गेट नंबर 3 से होकर बाहर बहाया जा रहा है। यह जहरीला पानी नालियों के रास्ते आसपास स्थित खेतों, उपजाऊ जमीन और निस्तारी तालाब में पहुंच रहा है। यह पानी इस कदर खतरनाक श्रेणी का हो चुका रहता है कि उसके प्रभाव से खेतों की जमीन के साथ ही पड़त भूमि भी जल रही है। वहीं तालाब का पानी स्टील प्लांट के प्रदूषित पानी के असर से पूरी तरह प्रदूषण की चपेट में आ चुका है। तालाब का पानी ग्रामीणों के नहाने, निस्तार और मवेशियों के पीने एवं उन्हें नहलाने के लायक नहीं रह गया है। प्लांट प्रबंधन की मनमानी और लापरवाही का खामियाजा अंचल के किसानों को भुगतना पड़ रहा है। प्लांट के जहरीले पानी की वजह से खेती की जमीन बंजर होती जा रही है और आने वाले समय में इस जमीन पर फसल लेना नामुमकिन हो जाएगा। ग्रामीणों के मुताबिक लगभग डेढ़ सौ एकड़ उपजाऊ जमीन जहरीले पानी से प्रभावित हो चुकी है। प्रभावित किसान इस बारे में कई बार प्लांट प्रबंधन और जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन हर बार उन्हें मुआवजे का भरोसा दिलाकर शांत करा दिया जाता है। मुआवजा ही इस विकराल समस्या का समाधान नहीं है। किसान कहते हैं कि मुआवजे से फौरी राहत तो मिल जाएगी, लेकिन अगर जहरीले पानी को खेत तक आने से नहीं रोका गया तो जमीन पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी और उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं रह जाएगा। खेती ही ग्रामीणों की आजीविका का साधन है।ग्रामीण कहते हैं कि जिला प्रशासन भी इस मामले में प्लांट प्रबंधन को समझाईश देने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा रहा है।

नहीं लगाया वाटर ट्रीटमेंट प्लांट
नगरनार प्लांट की स्थापना को लगभग तीन साल बीतने को हैं, लेकिन एनएमडीसी और प्लांट प्रबंधन ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की ओर अब तक कोई ध्यान ही नहीं दिया है। इसका खामियाजा उन निरीह किसानों को भोगना पड़ रहा है, जो इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिए अपनी सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन होम कर चुके हैं। उनकी बची खुची जमीन को भी अब स्टील प्लांट का जहरीला पानी निगलता जा रहा है। किसानों और किसानों पर आई इस मुसीबत के लिए प्लांट एवं एनएमडीसी प्रबंधन जिस हद तक जिम्मेदार हैं, उतना ही जिम्मेदार जिला प्रशासन भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि वेस्टेज पानी के व्यवस्थित निस्तारण एवं वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए जिला प्रशासन स्टील प्लांट प्रबंधन पर दबाव नहीं डाल पा रहा है।

कहां है प्रदूषण नियंत्रण मंडल?
इस पूरे मामले में प्रदूषण नियंत्रण मंडल की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। किसी भी तरह के उद्योग स्थापना के लिए प्रदूषण नियंत्रण मंडल और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के तमाम मापदंडों पर शत प्रतिशत अमल करना जरूरी होता है। इन मापदंडों में पेड़ – पौधों, जल और जमीन को ज्यादा क्षति न पहुंचाने, उद्योगों से निकलने वाले वेस्टेज केमिकल और दूषित पानी के सुरक्षित निस्तारण की व्यवस्था भी शामिल है। हर तरह के उद्योग में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का भी जरूरी प्रावधान है। नगरनार में स्टील प्लांट स्थापना के लिए इन मापदंडों का पालन नहीं किया गया है।प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों ने नगरनार स्टील प्लांट के प्रदूषण से जल, जंगल और जमीन को हो रहे नुकसान की ओर देखने तक की भी फुरसत नहीं है। इसे देखते हुए अब ग्रामीण सवाल उठा रहे हैं कि प्रदूषण नियंत्रण मंडल की स्थापना और वहां अधिकारियों की नियुक्ति का औचित्य ही क्या रह गया है?

गायब हो चुकी है हरियाली
प्लांट के गेट नंबर 3 की तरफ से निकलने वाले जहरीले पानी की वजह से उस ओर का पूरा माहौल प्रदूषित हो चला है। जिस नाली से दूषित पानी बह रहा है, उसके आसपास की जमीन पूरी तरह से काली हो चुकी है। उस पर जहरीले केमिकल और धातुओं की परत जम चुकी है। उसमें ऑइल के अलावा कई जहरीले कैमिकल समा चुके हैं। ग्रामीण बताते हैं कि गेट नंबर 3 के आसपास पहले काफी हरियाली हुआ करती थी, लेकिन अब वह हरियाली पूरी तरह गायब हो चुकी है। वहां कभी मवेशी चरने के लिए जाया करते थे। ग्रामीणों ने जमीन की स्थिति को देखते हुए अब वहां पर मवेशियों की चराई पर भी रोक लगा दी है।

तालाब का उपयोग हुआ बंद
प्लांट के जहरीले पानी ने सार्वजनिक निस्तारी तालाब के औचित्य ही समाप्त कर दिया है। स्टील प्लांट का खतरनाक पानी तालाब के पानी में भी समता जा रहा है। स्टील प्लांट के गेट नंबर 3 के सामने कुछ ही दूरी पर एक तालाब है। वह भी जहरीले पानी की वजह से पूरी तरह दूषित हो चुका है। पहले यह तालाब ग्रामीणों और उनके मवेशियों की निस्तारी के काम आया करता था, लेकिन अब ग्रामीणों ने इसका उपयोग बंद कर दिया है। जानवर भी अगर इसका पानी पीते हैं तो वह बीमार पड़ जाते हैं और उनकी मौत तक हो जाती है। तालाब का पानी प्लांट के प्रदूषित पानी के असर से काला और बदबूदार होता जा रहा है। ग्रामीण प्लांट जहरीले पानी के अव्यवस्थित निस्तारण का विरोध करते आ रहे हैं, लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकला जा रहा है।
वर्सन
कोई सुनवाई नहीं
ग्रामीण और हम सभी पंचायत प्रतिनिधि प्लांट के जहरीले पानी के अव्यवस्थित निस्तारण का विरोध करते आ रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। आज तक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की भी स्थापना नहीं की गई है। यह स्थिति तीन साल से बनी हुई है। स्थिति भयावह हो चली है।
-लैखन बघेल,
सरपंच, नगरनार
वर्सन
ई मेल से रखेंगे अपना पक्ष
इस मामले में प्लांट प्रबंधन फोन पर अपना पक्ष नहीं रखेगा। मेल के जरिए पक्ष भेज दिया जाएगा।
रफीक अहमद जिनाबड़े
कम्युनिकेशन हेड, नगरनार स्टील प्लांट