कोरली की वादियां और नदी पुकारती हैं सैलानियों को

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  •  गजब का आकर्षण है बिनता की इन वादियों में
  • कोरली में नजर आती है इंद्रावती की अद्भुत छटा
  • अर्जुन झा

लोहंडीगुड़ा कोरली के नदी तट और बिनता घाटी की वादियों में गजब का आकर्षण है। यहै तट और वादियां सैलानियों को पुकारती हैं कि आओ जी भरके मेरा दीदार करो, तनाव भरी जिंदगी के कुछ पल हमारे दामन में बैठकर सुकून के साथ गुजरो। यकीन मानिए अगर अब बिनता घाटी और कोरली के नदी तट पर एकबार पहुंच गए, तो वहां से लौटने का मन नहीं करेगा। तो फिर देर किस बात की, तुरंत चले आइए बस्तर। यहां आकर गुजारिए कुछ हसीन पल।

     कुदरत ने छत्तीसगढ़ के बस्तर को बहुत सारी नेमतों से नवाजा है। बस्तर का कण कण प्रकृति की अनुपम गाथा सुनाते प्रतीत होते हैं। साल, बीजा, सागौन, तेंदू, खम्हार, छिंद समेत दर्जनों प्रजातियों के पेड़ों से आच्छादित जंगल, कलकल बहती नदियां, विहंगम जल प्रपात, अति प्राचीन गुफाएं, शैलचित्र एवं भित्तिचित्र, प्राचीन प्रतिमाएं, आसमान से गलबाहियां करते पहाड़ और पहाड़ों को चूमते बादल क्या कुछ नहीं दिया है प्रकृति ने बस्तर को। ऐसा लगता है कि कुदरत ने बस्तर को दिल खोलकर नेमतों से नवाजा है। बस्तर में विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जल प्रपात, तीरथगढ़ वाटरफॉल, कुटुमसर की गुफा, केशकाल घाटी का विहंगम दृश्य, बैलाडीला की पहाड़ियों पर विचरण करते कपसीले और स्याह बादलों के झुंड, प्राचीन और विशालकाय भगवान गणेश की अलौकिक प्रतिमा, दंतेवाड़ा स्थित मां दंतेश्वरी का पावन धाम, कांकेर स्थित मां कंकालिन का दिव्य दरबार के साथ ही अनगिनत दर्शनीय, रमणीय और पूज्यनीय स्थल हैं। इन जगहों पर आकर लोग अपना अतीत भूल जाते हैं, वर्तमान में खो जाते हैं और सुनहरे भविष्य का तानाबाना बुनने में मशगूल हो जाते हैं। यही वजह है कि बस्तर की हसीन वादियों में बारहों माह सैलानियों का जमघट लगा रहता है। देश के प्रायः सभी राज्यों के पर्यटकों की आमदरफ्त तो लगी ही रहती है, विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में सुकून की तलाश करते बस्तर पहुंचते हैं। सभी पर्यटक लौटते समय खूबसूरत यादें सहेजकर अपने साथ ले जाते हैं। बस्तर में अब एक नया पर्यटन स्थल सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करने लगा है। यह पर्यटन स्थल है बिनता घाटी और इस घाटी की वादियों में बसा गांव कोरली। बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर सेमहज 70 किलोमीटर दूर स्थित बिनता घाटी की छटा तो देखते ही बनती है, इंद्रावती नदी के तट पर बसे गांव कोरली का भी नजारा दिल की गहराइयों में उतर जाता है।

कोरली का खूबसूरत नजारा

बिनता घाटी के दामन में बसा गांव कोरली भले ही उपेक्षित और विकास से कोसों दूर पिछड़ा हुआ गांव है, मगर यह प्रकृति प्रदत्त उपहारों से समृद्ध है। कलकल करती इंद्रावती नदी इस गांव के पांव पखारते हुए आगे बढ़ती है। कोरली की धरा का आचमन करती है इंद्रावती। कोरली के पास नदी अदभूत स्वरूप में नजर आती है। पहाड़ों से घिरे कोरली में आकर इंद्रावती नदी ठहर सी जाती है, मानो उसे भी कोरली से लगाव हो गया हो। गर्मी के दिनों में झुलसाती गर्म हवाएं नदी के जल का स्पर्श पाते ही शीतल बयार में तब्दील हो जाती हैं। शीतल बयार से बेचैन तन मन प्रफुल्लित हो उठता है। नदी किनारे से हटने का मन ही नहीं करता। रेतीले तट पर नदी में स्नान करते ग्रामीण और बच्चे बरबस ध्यान खींच लेते हैं। यहां मगरमच्छ भी देखे जा सकते हैं। चट्टानें नदी और कोरली गांव की सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं। नदी में नौकयान की भी व्यवस्था है। डोंगियों से नौकयान का लूत्फ पुरसुकून और यादगार बन जाता है।

पर्यावरण के रखवाले हैं ग्रामीण

कोरली गांव में बमुश्किल पचास घर आबाद हैं और यहां के सारे निवासी मुरिया आदिवासी हैं। आदिवासी तो प्रकृति के पैदायशी पुजारी और रखवाले होते हैं, मगर कोरली के मुरिया आदिवासी प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के लिए जो भूमिका निभा रहे हैं, उसकी दाद देनी ही पड़ेगी। कोरली और बिनता घाटी के नजारे का लूत्फ उठाने रोज पचासों लोग विभिन्न वाहनों से पहुंचते हैं। बाहर से आने वाले लोग अपने साथ पानी की प्लास्टिक बोतलें, खाने पीने के सामानों से भरे कैरीबैग, रेपर, झिल्ली, डिपोजल गिलास आदि लेकर पहुंचते हैं। कोरली के ग्रामीण पर्यटकों से आग्रह करते रहते हैं कि रेपर, झिल्ली, पॉलीथिन बैग्स, डिस्पोजल गिलास व कचरे को जहां तहां न फेंकें, एक जगह इकट्ठा रख दें। बाद में ग्रामीण कचरे और अपशिष्ट को दूर छोड़ आते हैं। यही नहीं ये ग्रामीण पर्यटक चाहें तो उनके लिए भोजन भी तैयार कर देते हैं।