- गंभीर आरोपों से घिरे रहे हैं मुख्य कार्यपालन अधिकारी
- अब आएगी सीईओ के लाडले सचिवों की बारी
-अर्जुन झा-
बकावंड समूचे बस्तर जिले में विभिन्न विभिन्न विभागों में ऐसे अधिकारियों की कमी नहीं है, जो सरकारी धन को दीमक की तरह चट करने और सरकारी योजनाओं को अपनी नाजायज कमाई का जरिया बनाए बनाए बैठे हैं। बस्तर के बकावंड जनपद क्षेत्र में भी ऐसे नासूरों की कमी नहीं है। इन्हीं में से एक सर्वाधिक चर्चित अधिकारी रहे हैं बकावंड जनपद पंचायत के
सीईओ एसएस मंडावी। अपने पूरे कार्यकाल के दौरान तरह -तरह के आरोपों से घिरे रहे श्री मंडावी से अब बकावंड जनपद पंचायत को मुक्ति मिल गई है। काफी जद्दोजहद के बाद उनका तबादला आखिरकार मोहला, मानपुर, अंबागढ़ चौकी जिले की मोहला जनपद पंचायत में हो गया है। मोहला भी अविभाजित राजनांदगांव जिले का आदिवासी बहुल विकासखंड है। समूचा मोहला, मानपुर, अंबागढ़ चौकी जिला राजनैतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। वहां मनमानी और भ्रष्टाचार को पोषित करने वाले अधिकारी – कर्मचारियों की दाल नहीं गलती। वहां के राजनेता तो पीछे रह जाते हैं, जनता ही भ्रष्ट और अपनी मर्जी के मालिक बनने की कोशिश करने वाले अधिकारियों को उनके दफ्तर में घुसकर सबक सिखाने में जरा भी पीछे नहीं रहती। अतीत बताता है कि उस जिले में ऐसी दर्जन भर से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं, जबकि करप्ट अफसरों का सरेआम पानी उतारा गया है। यही वजह है कि मोहला, मानपुर, अंबागढ़ जिले में पदस्थ अधिकारी कर्मचारी छाछ को भी फूंक फूंक कर पीते हैं। रही बात उस जिले के जनप्रतिनिधियों की, तो जन अदालत के फैसले के आगे जनप्रतिनिधियों नत मस्तक होना ही पड़ता है, वरना पांच साल में उनकी भी दुकानदारी पब्लिक बंद कर देती है। मानपुर, मोहला, अंबागढ़ चौकी जिला राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र में आता है। वर्तमान में वहां के सांसद भाजपा से संतोष पाण्डेय हैं, जो अपनी ईमानदारी, जनता के प्रति समर्पण भावना और तेज तर्रार छवि के लिए जाने जाते हैं। श्री पाण्डेय छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के करीबी और विश्वस्त नेता माने जाते हैं। अगर एसएस मंडावी ने मोहला में भी बकावंड जैसी गतिविधियां जारी रखी, तो उनकी रुसवाई होने में देरी नहीं लगेगी।बेहद चर्चित रहे हैं एसएस मंडावी
एसएस मंडावी का बकावंड में कार्यकाल विवादों से घिरा रहा है। निर्माण कार्यों में गड़बड़ी, शासकीय योजनाओं में अनियमितता, अदने से कर्मचारियों को भी स्वार्थ पूर्ति के लिए माध्यम बनाने जैसे गंभीर आरोप उन पर लगते रहे हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान पंचायत सचिवों से कांकेर के एक कांग्रेस नेता के लिए चुनावी फंड जुटाने की उनकी करतूत सुर्खियों में रही है। पंचायत सचिवों को हर निर्माण कार्य में गड़बड़ी करने की अघोषित छूट देकर उनसे रकम बटोरी गई थी। चुनावी फंड इकट्ठा करने की जिम्मेदारी तीन खास पंचायत सचिवों को दी गई थी, जिन्होंने बकावंड ब्लॉक की सभी ग्राम पंचायतों के सचिवों से लाखों रुपए एकत्रित कर सीईओ को दिए थे। बाद में यह रकम कांकेर के कथित नेता तक नहीं पहुंचाई गई और इसे लेकर सीईओ तथा कांग्रेस नेता के बीच जमकर तकरार भी हुई थी। अगर कांग्रेस राज्य की सत्ता में आई होती, तो सबसे पहले उक्त कांग्रेस नेता ही सीईओ को सबक सिखाने के लिए आगे आए होते।. ये अलग बात है कि बिल्ली के भाग्य से सिंका टूट गया। कांग्रेस सत्ता में नहीं आ पाई।अब नपेंगे पंचायत सचिव
आका की तो विदाई हो चुकी है, अब उनका मोहला मानपुर अंबागढ़ चौकी जिले में हो गया है, अब बारी उनके प्यादों यानि पंचायत सचिवों की है। सीईओ के संरक्षण में बकावंड जनपद की अधिकांश ग्राम पंचायतों में सचिवों ने निर्माण कार्यों में बेतहाशा गड़बड़ी कर जमकर अवैध कमाई की है। आलम यह हो गया था कि पंचायत सचिव सरपंचों को भी अपने पैरों की जूती समझने लगे थे। यह आलम अभी भी बरकरार है। सरपंचों को दरकिनार कर सचिव हर कार्य को अपनी मर्जी से अंजाम देते आ रहे हैं। विकासखंड की हर ग्राम पंचायत में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं।अनेक ग्राम पंचायतों में तो निर्माण कार्यों की पूरी राशि आहरित कर लेने के बाद कार्यों को आधा अधूरा छोड़ दिया गया है। ग्रामीण जनपद कार्यालय में शिकायत करते करते थक गए, मगर जब ऊपर सरपरस्त बैठा हो, तो भला कार्रवाई कैसे होगी? बहरहाल सरपरस्त आका की विदाई की तारीख मुकर्रर हो चुकी है, अब उनके चहेते सचिवों को गिन गिनकर निपटाया जाएगा, ऐसी चर्चा सियासी गालियारे में चल रही है।